स्थानीय लोगों को रोजगार के शेयर में एक निश्चित हिस्सा तय करने की घोषणा करने वाले कमलनाथ कोई पहले मुख्यमंत्री नहीं हैं। गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपानी ने भी घोषणा की थी कि वहां निजी क्षेत्र में पैदा होने वाले रोजगार का 80 फीसदी हिस्सा स्थानीय लोगों को भी मिलेगा। महाराष्ट्र सरकार ने भी कुछ इसी तरह की नीति अपना रखी है। कमलनाथ की घोषणा पर हल्ला मचाने वालों को यह पता होना चाहिए कि अंतर राज्य प्रवास करने वाले देशों में भारत का प्रदर्शन बेहद खराब है।

कमलनाथ को यह भी एहसास है कि भाजपा की चुनौती मध्य प्रदेश में अधिक विकट है। संख्या के खेल में हार के बावजूद, भाजपा का वोट शेयर कांग्रेस की तुलना में 0.1 प्रतिशत अधिक था और पार्टी का पूरे राज्य में मजबूत आधार है। 10 सीटों में से कई में, जीत का अंतर 1,000 वोटों से कम था। इनमें से सात में कांग्रेस जीती।

अन्य तीन सीटों में से दो पर कम 350 और 121 वोटों का अंतर तय किया गया। मध्यप्रदेश की 14 सीटों में कांग्रेस तीसरे स्थान पर रही और पांच सीटों पर उसका प्रदर्शन बहुत खराब रहा। वर्तमान लोकसभा में, 29 में से केवल दो सीटें कांग्रेस के पास हैं- पहली खुद कमलनाथ और दूसरी ज्योतिरादित्य सिंधिया की।

अगर हाल के विधानसभा चुनावों के नतीजों को लोकसभा चुनाव 2019 के चुनावों के रूप में लिया जाता है, तो कांग्रेस कम से कम 10 भाजपा की सीटें छीन सकती है।

अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में कमलनाथ की पहली चुनौती न केवल इस बढ़त को बनाए रखना है, बल्कि यदि संभव हो तो इसे सुधारना भी होगा। यह एक आसान काम नहीं होगा। सुशासन प्रदान करने के अलावा, उन्हें मालवा, ग्वालियर, महाकौशल और विंध्य क्षेत्रों में पार्टी संगठन को तैयार करना होगा। विभिन्न गुटों में उनकी वरिष्ठता और स्वीकार्यता उन्हें एक बेहतर स्थिति प्रदान करना है।

लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए एक पेचीदा सवाल, बसपा के साथ गठबंधन के मुद्दे पर फिर से विचार करना होगा। यह एक तथ्य है कि पिछले चुनाव में यदि दोनों के बीच गठबंधन हो गया होता, तो दोनों पार्टियांे को बहुत फायदा हुआ होता।

हालांकि 2008 में सात की तुलना में बीएसपी 2018 मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में केवल दो सीटें जीत सकी, लेकिन इसने तीन राज्यों में दस सीटें जीतकर अपने प्रदर्शन में सुधार किया है, जो 2013 में जीती गई सीटों से दो अधिक है। । बीएसपी और समाजवादी पार्टी जैसे क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन का मुद्दा कांग्रेस के लिए 2019 की चुनावी रणनीति के तहत भाजपा के खिलाफ महागठबंधन बनाने के लिए अधिक प्रासंगिक है।

कमलनाथ सरकार द्वारा किसानों के लिए ऋण माफी और राज्य के उद्योगों में स्थानीय लोगों को अधिक नौकरियों की घोषणा एक अच्छी शुरुआत हो सकती है। हालांकि, यह सुनिश्चित करना होगा कि ये वादे तुरंत और प्रभावी रूप से लागू किए जाएं।

कृषि ऋण माफी को लागू करने के लिए 22 सदस्यीय समिति का गठन करके मध्य प्रदेश के सीएम ने दिखा दिया है कि वह अपनी घोषणा के प्रति ईमानदार है। अगर कांग्रेस को राज्य में अपने लाभ को मजबूत करना हैए तो उसे इन लोकलुभावन उपायों से आगे जाना होगा,।

उनका पहला काम अब राज्य में विभिन्न क्षेत्रों और सामाजिक समूहों का प्रतिनिधित्व करने के अलावा प्रशासनिक कौशल और राजनीतिक समझ रखने वाले लोगों को लेकर मंत्रिपरिषद को तैयार करना है। इसके बाद उन्हें अपनी सरकार के लिए एक रोड मैप तैयार करना होगा, जिसमें कांग्रेस के चुनावी वादे को समयबद्ध कार्ययोजना में बदलना होगा।

मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भाजपा के नुकसान के प्रमुख कारणों में से एक था कृषि संकट। राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वादा किया गया ऋण की राहत का लाभ सीमांत किसानों को मिले। यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि खरीफ की फसल किसानों से वादा किए गए न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी जाए।

नौकरियों के लिए, राज्य के उद्योगों का 70 प्रतिशत मध्य प्रदेश में रोजगार के लिए पर्याप्त नहीं है। सरकार को यह सुनिश्चित करना है कि राज्य के युवा बेहतर कौशल से लैस हों और उन्हें रोजगारपरक बनाये जायं।

मध्य प्रदेश भाजपा का सबसे पुराना पारंपरिक गढ़ है और पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान के नेतृत्व वाला विपक्ष मजबूती के साथ वहां मौजूद है। उसे नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। इसके अलावा मध्य प्रदेश में कांग्रेस सरकार को पता चल जाएगा कि उसके पास समय बहुत कम है। चार महीनों से भी कम समय में, आम चुनावों की आचार संहिता लागू हो जाएगी। कमलनाथ को वास्तव में समय के खिलाफ दौड़ लगानी होगी। (संवाद)