विपक्ष ने अवामी लीग द्वारा बड़े पैमाने पर धांधली का आरोप लगाया है और कहा है कि सत्तारूढ़ लीग ने धमकियों का भी सहारा लिया है। दूसरी तरफ अवामी लीग ने विपक्षी आरोप को ठुकराते हुए बताया कि मतदान के दिन मारे गए 19 व्यक्तियों में से अधिकांश उनके कार्यकर्ता थे। विपक्ष ने मांग की है कि चुनावों को चुनाव आयोग द्वारा रद्द घोषित की जाए और फिर से दुबारा मतदान हो। यह मांग निश्चित रूप से सत्तारूढ़ गठबंधन द्वारा स्वीकार नहीं की जाने वाली है जो अपनी जीत पर जश्न मना रही है।

अधिकांश विदेशी मीडिया ने विपक्ष द्वारा धांधली के आरोपों की रिपोर्टिंग की है। यहां तक कि ढाका का डेली स्टार, जो सत्तारूढ़ प्रतिष्ठान के अनुकूल माना जाता है, ने मतदान के दिन इस तरह के दृश्य की रिपोर्टिंग की।

“देश के किसी भी चुनाव में शायद ही कभी ऐसा देखा गया है - प्रमुख विपक्षी दल का पता लगाना एक वास्तविक चुनौती थी, सिवाय बैलट पेपर पर अपने चुनावी चिन्ह के।’’

‘‘बीएनपी के कुछ पोलिंग एजेंट, पोस्टर, समर्थक या वफादार मतदाता शायद ही ढाका के मतदान केंद्रों में द डेली स्टार द्वारा देखे जा सके। मानो कल राष्ट्रीय चुनाव के दिन उनमें से कोई चमत्कार कर दिया हो।’’

“सभी जगह बीएनपी की राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी सत्तारूढ़ अवामी लीग ही देखी जा रही थी। अवामी लीग की उपस्थिति सभी जगहों पर इतनी अधिक थी कि लग रहा था मानों चुनाव में एक पार्टी को छोड़कर किसी और ने भाग ही नहीं लिया।’’

बांग्लादेश के पूर्व राष्ट्रपति हुसैन मोहम्मद इरशाद की जाति पार्टी, जो सत्तारूढ़ मोर्चे की एक घटक थी, 20 सीटें जीतकर दूसरे स्थान पर रही।

क्या यह चुनाव दो प्रमुख राजनीतिक मोर्चों के टकराव की राजनीति को समाप्त कर सकेंगेे? यह सवाल उठना स्वाभाविक है। उनमें एक पक्ष तो अवामी लीग है और दूसरा बीएनपी है। गौरतलब है कि बीएनपी की नेता बेगम खालिदा जिया दस साल की जेल की सजा काट रही हैं बांग्लादेश के राजनैतिक पर्यवेक्षकों को लगता है कि टकराव के समाप्त होने की संभावना नही ंके बरारबर है। एक साक्षात्कार में प्रख्यात लेखक और बौद्धिक अकबर अली खान ने कहा है, “इस चुनाव में दो मोर्चों ने भाग लिया। दोनों मोर्चों में लंबे समय से संघर्ष की राजनीति चल रही है। वर्तमान चुनाव के साथ संघर्ष समाप्त नहीं हुआ है। टकराव की वही राजनीति जारी है। इसलिए, हम टकराव की इसी राजनीति के साथ 2019 में प्रवेश कर रहे हैं। यह हमारे लिए दुर्भाग्यपूर्ण है कि किसी भी राजनीतिक दल ने इस टकराव की तीव्रता को कम करने की पहल नहीं की।”

पाकिस्तान और चीन दोनों ही बांग्लादेश की राजनीतिक स्थिति को करीब से देख रहे हैं। आईएसआई द्वारा धन और सामग्री के साथ कट्टरपंथी ताकतों की मदद करने की खबरें आई हैं। अगर हताशा चरमपंथी वर्गों को भूमिगत कर देती है, तो यह प्रधानमंत्री शेख हसीना के लिए चिंता का कारण हो सकता है। हेराफेरी के आरोप को खारिज भी नहीं किया जा सकता।

शेख हसीना जीत गई हैं। उनकी पार्टी और उनके मोर्चे को लगातार तीसरी बार सत्ता में वापसी हुई है। लेकिन उसके विरोधियों ने हार स्वीकार नहीं किया है चुनाव परिणामों को मानने से इनकार कर रहे हैं। वे कैसे प्रतिक्रिया करते हैं और वे क्या करते हैं, यह देखा जाना बाकी है। (संवाद)