प्रदेश में संपूर्ण टीकाकरण की स्थिति में सुधार होने के साथ ही बाल स्वास्थ्य में सुधार दिखाई देने लगा है। यद्यपि कुपोषण एक बड़ी समस्या है, जिसकी वजह से बच्चों में सामान्य बीमारियों से भी प्रतिरोध करने की क्षमता कम हो जाती है। शिशु एवं बाल मृत्यु में खसरा एक बड़ा कारण है, लेकिन टीकाकरण कर इससे बचा जा सकता है। साल 2016 में मध्यप्रदेश में 2369, 2017 में 1102 और 2018 में 1364 खसरा के मामले सामने आए थे। 2016 की तुलना में देखा जाए, तो इसमें काफी सुधार है।
यदि एनएफएचएस 4 (2015-16) के आंकड़ों को देखा जाए, तो मध्यप्रदेश में संपूर्ण टीकाकरण वाले बच्चों की संख्या 53.6 फीसदी है, जो कि एनएफएचएस 3 (2005-06) मुकाबले 13 फीसदी ज्यादा था। यानी 10 सालों में औसतन हर साल संपूर्ण टीकाकरण के दायरे में आने वाले 1.3 फीसदी बच्चे रहे हैं। खसरे के टीकाकरण की स्थिति देखा जाए, तो यह 79.6 फीसदी था। लेकिन इसके बाद पिछले दो सालों में लगातार टीकाकरण अभियानों से समुदाय में आई जागरूकता से इसमें व्यापक सुधार आया है। यही वजह है कि रूटीन टीकाकरण के अलावा अलग-अलग समय पर अभियानों के माध्यम से टीकाकरण के दायरे में सौ फीसदी बच्चों को लाने का प्रयास किया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि 2015 में वैश्विक स्तर पर 1,34,200 मृत्यु में से भारत में 49,200 मृत्यु हुई थी, जो कुल वैश्विक मृत्यु का लगभग 36 फीसदी है। इस बीमारी से बच जाने के बाद भी बच्चों में निमोनिया एवं डायरिया होने का खतरा ज्यादा रहता है।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, मध्यप्रदेश के निदेशक निशांत वरवडे का कहना है कि अभियान की सारी तैयारियां हो चुकी है। इस अभियान से मध्यप्रदेश के 2.32 करोड़ बच्चों को स्कूल, आंगनवाड़ी एवं स्वास्थ्य केन्द्रों के माध्यम से चार फेस में टीकाकरण किया जाएगा। मीजल्स और रूबेला टीके की सभी स्वास्थ्य सेवाएं एवं दैनिक टीकाकरण चेक अप बिलकुल निःशुल्क कराया जायेगा। इसके अलावा अभियान की जिला एवं राज्य स्तरीय निगरानी को भी एक महत्वपूर्ण भाग के रूप में देखा जा रहा है। प्रदेश टीकाकरण अधिकारी डॉ. संतोष शुक्ला का कहना है कि खसरा और रुबेला टीकाकरण कार्यक्रम खसरा एवं रूबेला बच्चों एवं महिलाओं के लिए बहुत ही खतरनाक है। गर्भवती महिला को यदि रूबेला होता है, तो मरा हुआ बच्चा पैदा हो सकता है। रूबेला के कारण बच्चों में आंख एवं कान की बीमारी, दिल की बीमारी एवं मानसिक मंदता की बीमारी हो सकती है। खसरा बच्चों में अपंगता एवं मृत्यु का एक बड़ा कारण है।
यूनिसेफ इस अभियान में तकनीकी सहयोग कर रहा है। मध्यप्रदेश के संचार विशेषज्ञ अनिल गुलाटी का कहना है कि खसरा और रूबेला टीकाकरण अभियान का प्रचार-प्रसार में सोशल मीडिया को भी शामिल किया गया है, ताकि अधिकतम लोगों तक अभियान से जुड़ी जानकारियां एवं खसरा व रूबेला के खतरों से जुड़ी जानकारियों को पहुंचा जा सके। (संवाद)
खसरा और रूबेला टीकाकरण से कोई भी बच्चा छूट न पाए
टीकाकरण की सफलता बच्चों को बीमारियों से रखेगी दूर
राजु कुमार - 2019-01-14 18:25
कल से मध्यप्रदेश में खसरा और रूबेला टीकाकरण अभियान का शुभारम्भ होने जा रहा है। अभियान अगले एक माह तक चलाया जाएगा। यह देशव्यापी मीजल्स और रूबेला टीकाकरण अभियान का हिस्सा है। अभियान के तहत 9 माह से 15 वर्ष तक के सभी बच्चों को टीका लगाया जाएगा। इसमें सरकारी एवं निजी शालाओं, अस्पताल एवं अन्य संस्थाओं को शामिल किया गया है, जिससे कि कोई बच्चा छूटने न पाए। मध्यप्रदेश आज भी देश के उन राज्यों में शुमार है, जहां कुपोषण, शिशु मृत्यु दर एवं बाल मृत्यु दर ज्यादा है। निमोनिया, डायरिया, खसरा जैसी बीमारियां भी बच्चों की मृत्यु का सबसे बड़ा कारण है। लेकिन पिछले दो-तीन सालों से बाल स्वास्थ्य एवं पोषण में सुधार दिखाई दे रहा है। इसका एक बड़ा कारण है टीकाकरण के प्रति लोगों में आई जागरूकता।