प्रधानमंत्री मोदी कोलकाता रैली का कोई जवाब नहीं दे पाए। पूरब की इस रैली का जवाब उन्होंने पश्चिम के सिलवासा में देना चाहा, लेकिन कोई नया मुहावरा ढूंढने में नाकाम रहे। प्रधानमंत्री ने इसी राग को दोहराया कि भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई के कारण सभी विपक्षी पार्टियां इकट्ठा हो गई हैं। लेकिन इस राग का जुटाई हुई भीड़ पर भी असर होता दिखायी नहीं देता। उनका यह बयान लोगों को चैंकाता नहीं है कि विपक्ष का सिर्फ मोदी ही निशाना हैं। लोग बचाओ-बचाओ के उनकी पुकार से दुखी नहीं होते हैं। वे तो इसका आनंद लेते हुए ही दिखाई देते हैं और हंसते हैं। वह सहानुभूति बटोरना चाहते हैं, लेकिन हंसी पैदा कर हैं।

कोलकाता रैली ने कई चीजें साफ कर दी हैं। यह तय हो गया है कि तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर की ओर से चलाई गई फेडरल फ्रंट की मुहिम फेल हो गई है, वह इस बहाने कांग्रेस को अलग. थलग करने में लगे थे। शुरू में ममता ने भी उन्हें समर्थन दिया था और फेडरल फ्रंट की लाइन चलाने की कोशिश की, लेकिन शरद पवार, शरद यादव और फारूख अब्दुल्ला जैसे वरिष्ठ नेताओं की सलाह से उन्होंने यह लाइन छोड़ दी। कोलकाता रैली से भाजपा विरोध को नई मजबूती मिल गई। ईवीएम के मामले को उठा कर विपक्ष ने एक ऐसा मुद्दा ढूंढ भी लिया है, जो लोकतंत्र बचाने के नारे से पूरी तरह मेल खाता है। इसने विपक्षी एकता के लिए ऐसा मुद्दा दे डाला है जिससे हर पार्टी सहमत है। भाजपा और कांग्रेस से समान दूरी रखने वाले उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक और केसीआर के अलावा इस विपक्षी एकता से कोई अलग नहीं रह गया है। कोलकाता रैली ने फेडरल फ्रंट की लाइन को दफना दिया है। यह कांग्रेस और राहुल गांधी के लिए एक बेहतर स्थिति है।

रफाल पर राहुल गांधी ने उन्हें जिस तरह घेरा है, वह रैली में फिल्म स्टार शत्रुघ्न सिन्हा के भाषण में भी दिखाई पड़ा। ‘चैकीदार चोर है‘ के नारे को दोहरा कर उन्होंने मोदी पर सीधा हमला बोला और भाजपा को अपने खिलाफ कार्रवाई करने की खुली चुनौती दी है। उनके खिलाफ कार्रवाई से पार्टी की और किरकिरी होगी। रफाल के मामले में अखबार ‘द हिन्दू’ के संपादक एन राम के नए खुलासे ने मोदी सरकार के इस दावे को कमजोर कर दिया कि नए सौदे में लड़ाकू विमान की कीमत कम है। इसने राहुल के इस आरोप को ताकत दी है कि सौदे में प्रक्रिया का उल्लंघन हुआ है।

गौर से देखें तो ममता बनर्जी के भाषण में यह दर्द झलकता है कि उन्होंने हर विपक्षी नेता के खिलाफ सीबीआई और दूसरी जाँच एजेंसियों का इस्तेमाल किस पक्षपात से किया। ममता ने कहा कि आपने किसी को नहीं छोड़ा तो लोग आपको क्यों छोड़ेंगे। यह सही है कि राजनेताओं के भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिएए लेकिन जरूरी है कि यह बदले की कार्रवाई न लगे। तृणमूल कांग्रेस से भाजपा में आकर मुकुल राय शुद्ध हो गए। ऐसे कई उदाहरण हैं। कर्नाटक में कांग्रेस विधायकों को तोड़ने की खुली कोशिश चल रही है। ऐसे में प्रधानमंत्री यह दावा कैसे कर सकते हैं कि बाकी पार्टियां सत्ता की दीवानी हैं और भाजपा का अवसरवाद से कोई लेना.देना नहीं है और वह जनता की सेवा करने वाली पार्टी हैघ्

ममता की रैली ने 2019 चुनावों के पहले राजनीतिक समीकरणों को दिलचस्प बना दिया है। उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा गठबंधन के बाद यह तय है कि ज्यादातर राज्यों में क्षेत्रीय पार्टियों के साथ कांग्रेस का गठबंधन नहीं हो पाएगा। पश्चिम बंगाल भी दुविधा की स्थिति ही है। अगर ममता और कांग्रेस साथ आ भी जाते हैं तो मुकाबला त्रिकोणीय ही होगा क्योंकि वामपंथी पार्टियां ममता के साथ नहीं आएंगी। लेकिन इससे भाजपा को कोई फायदा नहीं होगा क्योंकि ममता के खिलाफ सत्ता-विरोधी लहर का फायदा दूसरी पार्टियां ले जाएंगी। वामपंथी पार्टियों की हालत खराब जरूर है, लेकिन उन्हें मैदान से बाहर कर देने की कोशिश पूरी तरह कामयाब नहीं होनेवाली है। विचारधारा और संगठन, दोनों आधारों पर वह एक विकल्प है।

अगर गौर से देखें तो कांग्रेस उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा गठबंधन सामाजिक समीकरणों पर आधारित राजनीति और भाजपा की हिंदुत्व वाली राजनीति से अलग एक विकल्प दे रही है। यह लोकतंत्र के लिए एक अच्छी स्थिति है, खासकर वैसे में जब कोई भी पार्टी एक बेहतर शासन देने का कोई उदाहरण नहीं दे सकती। कम से कम, राहुल ताजा हवा की उम्मीद तो दे रहे हैं। उत्तर प्रदेश का त्रिकोणीय संघर्ष लोकतंत्र के लिए बेहतर है। कांग्रेस एक तीसरा विकल्प दे रही है। बिहार में सीधा मुकाबले की पूरी संभावना है। जदयू नेता नीतीश कुमार ने भाजपा के साथ समय से पहले समझौता कर एनडीए के लिए नए समीकरणों के रास्ते बंद कर दिए हैं। यह महागठबंधन का रास्ता आसान करने वाला है। लेकिन वहां भी वामपंथी पार्टियों का तीसरा गठबंधन आ सकता है। यह भी लोकतंत्र के लिए बेहतर ही होगा। (संवाद)