लंबे समय से कांग्रेस कार्यकत्र्ताओं और छोटे स्तर के नेताओं की यह मुखर माग हुआ करती थी कि प्रियंका को राजनीति में सक्रिय हो जाना चाहिए और उनका नेतृत्व करना चाहिए। सच कहा जाय, तो एक औसत कांग्रेसी की पसंद प्रियंका गांधी थीं न कि राहुल गांधी, लेकिन परिवार ने राहुल को ही राजनीति में सक्रिय करने का निर्णय किया। उसके बावजूद भी प्रियंका को राजनीति मंे सक्रिय करने की मांग जारी रही। दावे से कुछ नहीं कहा जा सकता कि खुद प्रियंका ही राजनीति में सक्रिय नहीं होना चाहती थीं या सोनिया- राहुल यह नहीं चाहते थे कि प्रियंका राजनीति में उतर कर कांग्रेस जनों में पार्टी नेतृत्व को लेकर भ्रम पैदा होने दें। कारण चाहे जो भी रहा हो, प्रियंका गांधी ने काफी दबाव के बाद भी अपने आपको कांग्रेस की राजनीति में सक्रिय नहीं दिखाया। उनकी सक्रियता सिर्फ अपनी मां और भाई के लोकसभा क्षेत्र तक ही सीमित रही।
अब प्रियंका राजनीति में वैसे समय में आई हैं, जब राहुल गांधी ने कांग्रेस की बागडोर अपने हाथ में पूरी तरह संभाल ली है। 2014 के बाद लगातार चुनाव हारने वाली कांग्रेस राहुल की अध्यक्षता में पंजाब, मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में अपनी सरकारें गठित कर चुकी हैं। गुजरात में भारतीय जनता पार्टी को इसने कड़ी टक्कर दी और कर्नाटक में चुनाव हारने के बाद भी भाजपा की सरकार वहां कांग्रेस ने नहीं बनने दी। यानी पार्टी के अध्यक्ष बनकर राहुल ने कांग्रेस को हार की मनोस्थिति से उबार दिया है और आज उनके नेतृत्व पर न तो कांग्रेस के अंदर से और न ही बाहर से किसी प्रकार का सवाल उठ रहा है।
मतलब प्रियंका का प्रवेश राहुल की विफलता के काल में नहीं बल्कि सफलता के काल में हुआ है। इसलिए कांग्रेस के अंदर से ऐसा कोई स्वर नहीं उठने वाला है कि पार्टी की कमान प्रियंका को सौंपा जाय। राहुल गांधी का नेतृत्व अब आंतरिक चुनौती से परे है और प्रियंका गांधी को पार्टी का महासचिव बनाकर एक कठिन चुनौती भरा काम सौंप दिया गया है, जिस पर खरी उतरने के बाद ही उनके राजनैतिक कैरियर पर सफलता की चमक देखी जा सकती है। और वह चुनौती पूर्ण काम है उत्तर प्रदेश में मृतप्राय कांग्रेस को जिंदा करना। हालांकि दिलचस्प बात यह भी है कि उन्हें पूरे उत्तर प्रदेश का प्रभार नहीं दिया गया है, बल्कि सिर्फ उत्तर प्रदेश का दिया गया है।
वैसे भी उत्तर प्रदेश बहुत बड़ा राज्य है। आबादी के लिहाज से यह देश का सबसे बड़ा प्रदेश है और लोकसभा सीटों के लिहाज से केन्द्र की राजनीति पर दबदबा उसी का होता है, जिसका उत्तर प्रदेश की राजनीति पर दबदबा होता है। सवाल यह उठता है कि क्या प्रियंका गांधी पूर्वी उत्तर प्रदेश में वह चमत्कार कर पाएंगी, जिसकी उम्मीद उनसे पार्टी कर रही हैं? इस समय तो कंाग्रेस पूर्वी उत्तर प्रदेश में क्या, पूरे प्रदेश में चैथे नंबर की पार्टी बन गई है। 2014 के बाद लोकसभा के हुए तीन उपचुनावों मंे से दो में कांग्रेस ने भी अपने उम्मीदवार दिए थे। उन दोनों का जमानत जब्त होने के अधिकतम वोट वाले आंकड़े से भी काफी कम वोट आए थे। तीसरे उपचुनाव कैराना में तो कांग्रेस ने अपने उम्मीदवार ही नहीं उतारे थे, अन्यथा वहां भी मुश्किल से उसे 10 या 20 हजार वोट मिलते।
जहां तक उत्तर प्रदेश की बात है, कांग्रेस अपने इतिहास के सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। 80 लोकसभा सीटों में से उसके पास मात्र दो सीटें हैं और उन दोनों सीटों पर भी उसे पिछले चुनाव में समाजवादी पार्टी का मौन समर्थन हासिल था। अब तो यह भी कहा जा रहा है कि यदि रायबरेली और अमेठी में सपा-बसपा गठबंधन अपने उम्मीदवार खड़े कर दें और वहां तिनतरफा मुकाबला हो जाय, तो उन दोनों सीट पर भी कांग्रेस की हार हो जाएगी। उनमें एक सीट पर तो खुद राहुल गांधी हैं और दूसरी सीट पर उनकी मां सोनिया गांधी हैं, जो शायद अगला लोकसभा चुनाव अपने स्वास्थ्य कारणों से नहीं लड़ सकें और उनकी जगह उनकी बेटी प्रियंका गांधी रायबरेली से पार्टी प्रत्याशी हों।
उत्तर प्रदेश में इस समय दो ध्रुवीय राजनीति बन गई है। एक ध्रव पर भारतीय जनता पार्टी है, तो दूसरे ध्रुव पर सपा-बसपा गठबंधन। इस सीधी लड़ाई को तिकोनी लड़ाई में बदलने की चुनौती प्रियंका गांधी के सामने है। उत्तर प्रदेश में पार्टी की सबसे मुश्किल घड़ी है और वैसे में सबकी नजरें प्रियंका गांधी पर टिकी हुई हैं। अनेक लोग उनमें इन्दिरा गांधी वाली छवि देखते हैं, लेकिन वे कैसी नेता हैं, इसके बारे में कोई कुछ नहीं जानता। इसका कारण यह है कि उनके विचारों को लोगों ने नहीं सुना है और वे किस प्रकार की राजनीति करती है, इसके बारे में भी लोगों को कोई जानकारी नहीं हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रियंका गांधी को भारतीय राजनीति की कितनी समझ है, इसका पता लगना भी अभी बाकी है। राहुल गांधी तो एक लंबे प्रशिक्षण के बाद एक समझदार नेता के रूप में देश के सामने आ चुके हैं, लेकिन प्रियंका गांधी का अभी यह साबित करना बाकी है। देखना दिलचस्प होगा कि पूर्वी उत्तर प्रदेश में उनका सिक्का चल पाता है या नहीं। (संवाद)
सक्रिय राजनीति में प्रियंका
क्या उत्तर प्रदेश मे चलेगा उनका सिक्का?
उपेन्द्र प्रसाद - 2019-01-25 11:32
प्रियंका गांधी आखिरकार कांग्रेस की सक्रिय राजनीति मे खुलकर सामने आ ही गई। सक्रिय तो वह पहले भी थी, लेकिन उनकी चुनावी सक्रियता अमेठी और रायबरेली तक ही सीमित थी। पर्दे के पीछे से भी वह निर्णय प्रक्रिया में हिस्सा लेती थी। पिछले दिनों तीन राज्यों के कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों के नाम तय करने में वह शामिल थीं, लेकिन उनकी यह सक्रियता एकतरफा ही थीं। चूंकि वह घोषित रूप से राजनीति मंे सक्रिय नहीं थीं, इसलिए उनका कांग्रेस के नेताओं और कार्यकत्र्ताओं से कोई सीधा संबंध नहीं था। अब चूंकि वे कांग्रेस की एक महासचिव बन गई हैं और पूर्वी उत्तर प्रदेश में पार्टी को संभालने की जिम्मेदारी मिल गई है, तो वह सबकुछ एकतरफा तरीके से नहीं कर पाएंगी, बल्कि उन्हें कांग्रेस नेताओं और कार्यकत्र्ताओं की पहुंच के अन्दर अपने आपको रखना होगा।