पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का राजद और एनसीपी के साथ गठबंधन था। राजद 27, कांग्रेस 12 और एनसीपी 1 सीटों पर चुनाव लड़ रहे थे। अब एनसीपी के तारिक अनवर कांग्रेस में आ गए हैं। इस लिहाज से अभी राजद का 27 और कांग्रेस का 13 का दावा बनता है। जीतन राम मांझी, शरद यादव, उपेन्द्र कुशवाहा, मुकेश सहनी, सीपीआई, सीपीएम, सीपीएमएल और बसपा के भी संभावित महागठबंधन में शामिल होने की संभावना के साथ साथ राजद और कांग्रेस से उम्मीद की जाती है कि वे पिछले लोकसभा चुनाव केी तुनला में कम सीटें लड़ें। राजद तो इसके लिए तैयार है और अपनी 7 सीटों की कुर्बानी देना चाहता है, लेकिन कांग्रेस अपनी 12 सीटों से नीचे उतरने के लिए तैयार नहीं है। और इसके कारण ही महागठबंधन पर संकट पैदा हो गया है।

उधर तेजस्वी यादव ने भी एक भूल कर दी, जिसके कारण कांग्रेस ने अपने रुख को और भी कड़ा कर दिया है। वे मायावती के जन्मदिन की पूर्व संध्या पर मायावती को बधाई देने पहुंच गए और उनका पैर छूते हुए एक फोटोशूट करवा लिया। यही नहीं, उनके समर्थकों ने मायावती को महागठबंधन का प्रधानमंत्री उम्मीदवार भी कहना शुरू कर दिया है। कहा जा रहा है कि तेजस्वी मायावती की बहुजन समाज पार्टी को गोपालगंज लोकसभा की सीट गठबंधन के तौर पर देना चाहते हैं। इसके कारण कांग्रेस के कान और भी खड़े हो गए हैं। तेजस्वी ने कांग्रेस पर दबाव बनाने के लिए मायावती के साथ फोटोशूट कराया था और उनके समर्थन मायावती की जाति के वोट पाने के लिए उनका नाम प्रधानमंत्री उम्मीदवार के रूप में ले रहे हैं, लेकिन इसके कारण कांग्रेस की नाराजगी बढ़ गई है और वहां के स्थानीय नेता अब महागठबंधन के अंदर 20 सीटों की मांग करने लगे हैं।

कांग्रेस के स्थानीय नेताओं द्वारा 20 सीटों की मांग और केन्द्रीय नेतृत्व द्वारा 12 से कम पर नहीं आने के जिद के कारण बिहार के महागठबंधन का भविष्य अनिश्चित हो गया है। इस महागठबंधन में इतनी पार्टियां शामिल हो गई हैं और उनकी मांगें इतनी बढ़ी हुई हैं कि उन्हें संतुष्ट करना तेजस्वी के लिए आसान नहीं है। हां, यदि कांग्रेस महागठबंधन से बाहर रह जाय, तो फिर उन छोटी छोटी पार्टियों की सीटों की भूख को शांत किया जा सकता है, लेकिन यदि कांग्रेस गठबंधन से बाहर रह गई, तो फिर उसे महागठबंधन कहना ही गलत होगा।

इस बीच कांग्रेस के कुछ नेता तेजस्वी के राजद को छोड़कर अन्य भाजपा विरोधी दलों का गठबंधन करने की बातें भी करने लगे हैं। उपेन्द्र कुशवाहा द्वारा राहुल गांधी को प्रधानमंत्री उम्मीदवार कहना और उनके नेतृत्व में ही चुनाव में जाने की मंशा व्यक्त करना यह जाहिर करता है कि तेजस्वी से उनका सुर अलग है। तेजस्वी मायावती को राहुल गांधी से ज्यादा महत्व देना चाहते हैं। इसके पीछे मायावती के प्रति कोई सम्मान की भावना नहीं है, बल्कि सीधा खेल यह है कि मायावती की जाति का वोट किस तरह हासिल किया जाय। मायावती की जाति का वोट वहां 5 प्रतिशत है, जो ज्यादातर बसपा के उम्मीदवारों को ही मिलता रहता है, भले उन उम्मीदवारों की जमानते ही क्यों न जब्त हो जायं। तेजस्वी इस बात को समझते हैं और इसलिए मायावती के प्रति भक्तिभाव दिखाना चाहते हें।

लेकिन कांग्रेस की अपनी अलग राजनीति है। तीन हिन्दी राज्यों में जीत के बाद वह उत्तर प्रदेश और बिहार में एक बार फिर प्रासंगिक होना चाहती है। इसके लिए ही उसने प्रियंका कार्ड खेल दिया है। उत्तर प्रदेश में वे सभी या लगभग सभी सीटों पर चुनाव लड़ रही है और शायद बिहार में भी उसकी पहली प्राथमिकता भाजपा को हराना नहीं, बल्कि अपने आपकों मजबूत करना है। यही कारण है कि मजबूत समझे जाने वाले राजनीतिज्ञों को पार्टी में लिया जा रहा है। आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद कांग्रेस में शामिल हो गई हें। उधर बाढ़ के बाहुबली अनंत सिह बिना कांग्रेस में शामिल हुए अपने आपको मुंगेर लोकसभा क्षेत्र का कांग्रेस उम्मीदवार बता रहे हैं और अपना चुनाव प्रचार भी शुरू कर दिया है। कांग्रेस तारिक अनवर को पहले ही पार्टी में शामिल कर चुकी है। पप्पू यादव भी कांग्रेस के दरवाजे पर खड़े हैं। उनकी पत्नी पहले से ही कांग्रेस की लोकसभा सांसद हैं। कीर्ति झा आजाद का कांग्रेस में शामिल होना तय है। शत्रुघ्न सिन्हा भी राजग की जगह कांग्रेस के टिकट से चुनाव लड़ना ज्यादा पसंद कर रहे हैं। वैशाली से रामविलास पासवान की लोकजनशक्ति पार्टी के लोकसभा सांसद रमा सिंह भी कांग्रेस का दामन थामने वाले हैं।

जिस तरह से कांग्रेस लोकसभा चुनाव लड़ने की आकांक्षा रखने वाले मजबूत उम्मीदवारों को जगह दे रही है, उससे साफ लगता है कि वह ज्यादा से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है और उसे राजद के साथ सीट साझा करने में दिलचस्पी नहीं हैं। यदि उसके महत्वाकांक्षी उम्मीदवारों को महागठबंधन मे जगह नहीं मिली, तो कांग्रेस खुद एक तीसरा मोर्चा वहां तैयार कर सकती है, जो राजद और नीतीश- भाजपा गठबंधन के खिलाफ हो सकता है। समय बीतने के साथ इसकी संभावना बढ़ती जा रही है। राजद अपनी सीटों की संख्या बहुत कम करके ही इस संभावना को असंभव बना सकता है। पर सवाल यह है कि क्या राजद यह उदारता दिखा सकेगा? (संवाद)