जब गीता मुखर्जी अपनी आंखों में आंसू भरकर महिला आरक्षण के विरोधियों से विरोध त्यागने की गुहार लगा रही थीं, तो उस समय सोनिया गांधी ने राजनीति में प्रवेश भी नहीं किया था। यह कहना गलत नहीं होगा कि सोनिया के दृढ़ संकल्प के कारण ही राज्य सभा से महिला आरक्षण विधेयक को पारित होने में सफलता मिली। वहां से पारित हो जाने के बाद यह कहना सही नहीं होगी कि महिला आरक्षण अब हकीकत बन ही जाएगा, क्योकि उसकी असली परीक्षा तो अभी बाकी ही है।
सच कहा जाए तो महिला आरक्षण विधेयक की असली परीक्षा तो लोकसभा में होनी है। इसके सबसे बड़े विरोधी तो लोकसभा में हैं, राज्य सभा में तो उनके अनुयायी इसका विरोध कर रहे थे। लालू, मुलायम और शरद की तिकड़ी का संयुक्त विरोघ एक साथ लोकसभा में इसके खिलाफ देखा जाएगा और उनके विरोध का दरकिनार कर इस विधेयक को पारित करवाना निश्चय ही बहुत ही बड़ा चुनौती भरा काम होगा।
राज्य सभा में महिला आरक्षण के विरोधियों की संख्या कम थी। समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल वहो इसका विरोध कर रहे थे। जनता दल (यू) के 5 सांसदों ने इसका वहां समर्थन कर दिया था, क्योकि नीतीश की यही इच्ठा थी। लेकिन लोकसभा में जनता दल (यू)) के सासंदों के विरोध का भी इसको सामना करना पड़ेगा। राज्य सभा में मतदान के दौरान ही यूपीए में भी दरार दिखाई पड़ी। ममता बनर्जी की पार्टी ने मतदान में भाग न लेकर इस विधेयक से अपना मतभेद जाहिर कर दिया। लोकसभा में मतदान के समय उनका क्या रुख रहता है, इसके बारे में सरकार आश्वस्त नहीं रह सकती।
लोकसभा और राज्यसभा में इस विधेयक के मतदान को लेकर एक और अंतर है। राज्य सभा के सांसदों का इस विधेयक में कुछ भी दांव पर नहीं लगा हुआ है, क्योंकि आरक्षण राज्यसभा में नहीं, बल्कि लोकसभा और विधानसभाओं में किया जा रहा है। लोकसभा के जो सांसद इस विधेयक को पारित करने वाले हैं, वे सबके सब इस विधेयक से प्रभावित हाने वाले हैं, क्योकि महिला आरक्षण विधेयक के पारित होने के बाद लोकसभा सांसदो का एक तिहाई अगला चुनाव लड़ने के काबिल ही नहीं रह जाएगी, क्योंकि उनकी सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हो जाएंगी। जाहिर है इस विधेयक से पुरुष सांसद अपने भविष्य को लेकर आशंकित हैं और उनकी वह आशंका महिला आरक्षण विधेयक को पारित होने को और भी चुनौतीपूर्ण बना देगी।
लोकसभा से पारित होने के बाद यह विधेयक सभी विधानसभाओं में पारित होने के लिए जाएगा। यदि हम पार्टियों के समर्थन को देखें तो राज्य विधानसभाओं में उत्तर प्रदेश को छोड़कर और सभी जगह इसे पाहरत होने में परेशानी नहीं होनी चाहिए। सभी राज्य सरकारों की पार्टियों ( बहुजन समाज पार्टी को छोड़कर) ने इसका समर्थन कर रखा है। जनता दल (यू) इसके खिलाफ है, लेकिन नीतीश कुमार का समर्थन इसे मिल चुका है। इसलिए बिहार में भी इसे पारित होने में दिक्कत नहीं होगी। देश की 28 राज्य विधानसभाओं के बहुमत से इसे पास होना है। जाहिर है विधानसभाओं में कोई खाय समस्या नहीं आएंगी।
लेकिन लोकसभा में इसे पारित कराना आसान नहीं होगा। कांग्रेस और भाजपा के लोकसभा सांसद इस विधेयक से उत्पन्न अपने डर को अभिव्यक्त करने लगे हैं। भाजपा के सांसद तो खुले आत पार्टी व्हिप के उल्लंघन की बात भी करने लगे हैं। ममता बनर्जी पर पश्चिम बंगाल की राजनीति का दबाव पड़ने लगा है और वहां के मुस्लिम नेताओं के असंतोष का असर उन पर देखा जा सकता है। वामपंथी दल इस विधेयक का समर्थन कर रहे हैं। ममता की समस्या उनसे अपने को अलग करने की भी है। उनके विरोध से इस विधेयक पर ही नहीं, बल्कि केन्द्र सरकार की स्थिरता पर भी खतरा पैदा हो जाएगा। (सवाद)
महिला आरक्षण विधेयक: असली परीक्षा तो अभी बाकी है
कल्याणी शंकर - 2010-03-13 05:58
यदि कम्युनिस्ट नेता गीता मुखर्जी आज जिंदा होतीं, तो वह बहुत ही खुश होतीं। राज्य सभा से महिला विधेयक के पास होने के बाद उनकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहता। संयुक्त मोर्चे की सरकार के दौरान महिला आरक्षण विधेयक पर बनी स्थार्इ्र समिति की वह सदस्य थीं। जब संसद में महिला आरक्षण विधेयक का विरोध हो रहा था, तो उन्होंने अपनी आंखों में आंसू भरकर विरोधियों से अनुरोध किया था कि वे इसका विरोध न करें।