लेकिन मोदी सरकार ने बजट पेश करने के मामले में अनेक परंपराएं बदली हैं। सबसे पहले तो उसने लेखानुदान को ही इतिहास की चीज बना दिया। पहले जब कभी बजट पेश किया जाता था, तो उसके साथ ही लेखानुदान भी पास कराया जाता था। उसका कारण यह था कि बजट तो फरवरी के अंतिम दिन पेश होता था, लेकिन उसे पास होते होते मई महीना बीतने लगता था, जबकि पिछले साल के बजट के अनुसार 31 मार्च तक ही खर्च करने के लिए सरकार अधिकृत होती थी।

मोदी सरकार ने फरवरी के अंतिम दिन के बदले फरवरी के पहले दिन बजट पेश करने की परंपरा डाल दी और यह व्यवस्था भी कर डाली कि 31 मार्च के पहले ही बजट संसद द्वारा पास भी कर लिया जाय। अब चूंकि 31 मार्च के पहले ही बजट पास होने लगे, तो फिर अप्रैल और मई महीने के खर्च के लिए केन्द्र सरकार को अधिकृत करने वाले लेखानुदान की जरूरत ही नहीं रह गई। जाहिर है, प्रत्येक साल बजट के साथ साथ लेखानुदान पास करने की परंपरा समाप्त हो गई।

इसके अलावा मोदी सरकार ने रेल बजट अलग से पेश करने की परंपरा को भी समाप्त कर दिया। 1920 के दशक से ही यह परंपरा चल रही थी। इसके कारण बजट सत्र में दो बजट पेश और पास किए जाते थे- आम बजट और रेल बजट। लेकिन अब सिर्फ एक ही बजट पेश होता है, जिसे हम केन्द्रीय बजट के नाम से जानते हैं। रेलवे का बजट अब केन्द्रीय बजट का ही हिस्सा होता है और जिसे वित्त मंत्रालय तैयार करता है और वित्त मंत्री संसद में पेश करते हैं। रेल मंत्री और मंत्रालय की भूमिका अब केन्द्रीय बजट तैयार कर रही टीम को सहायता करने या सुझाव देने तक सीमित रह गई है।

इन बदलावों के साथ साथ अब मोदी सरकार चुनावी साल में चुनाव के पहले लेखानुदान के बदल पूर्ण बजट पेश कर सकती है, जिसमें वह सबकुछ होगा, जो एक पूर्ण बजट में होता है। मसलन राजस्व और खर्च से संबंधित वे सारी नीतियां होंगी, जिनसे राजकोष प्रभावित होती है। फरवरी की पहली तारीख को पेश होने वाले बजट में हम केन्द्र सरकार की उन राजकोषीय नीतियों को देखेंगे, जो लुभावनी और लोकप्रियतावादी होती हैं।

आगामी लोकसभा चुनाव में जीत हासिल करने के लिए भारतीय जनता पार्टी हरसंभव प्रयास कर रही है। और ऐसे में यह उम्मीद करना भी गलत है कि आगामी बजट का इस्तेमाल वह इसके लिए नहीं करे। तीन हिन्दी राज्यों में मिली हार और उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के एक साथ आ जाने के बाद भाजपा गहरे सदमे में है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भी पता है कि उनकी जीत आसान नहीं है और अब भाजपा को अपने चुनाव चिन्ह पर बहुमत लाना तो असंभव ही दिख रहा है। इसलिए आगामी बजट में लोगों को तोहफे की बरसात हो सकती है।

चर्चा है कि निजी आयकर की सीमा को वर्तमान ढाई लाख रुपये से बढ़ाकर 5 लाख रुपये किया जा सकता है। 50 हजार रूपये के स्टैंडर्ड डिडक्शन के साथ यह सीमा वास्तव में अभी 3 लाख है। चुनाव जीतने के लिए सरकार ऐसा निर्णय कर सकती है और चुनाव के बाद किसी भी सरकार के लिए इसे वापस लेना संभव नहीं हो पाएगा। इधर दो वर्षो में आयकर देने वालों और आयकर रिटर्न दाखिल करने वालों की संख्या काफी बढ़ी है। तीन लाख से पांच लाख की राशि पर महज 5 फीसदी की दर से ही टैक्स लगाया जाता है। इसलिए आयकर देने की सीमा 5 लाख रुपये कर देने से सरकार को राजस्व की ज्यादा हानि भी नहीं होगी और इससे वोटों की फसल अच्छी काटी जा सकती है।

इसके अलावा ग्रामीण और कृषि क्षेत्र को भी सरकार चैंकाने वाले उपहार दे सकती है। यह सच है कि उपहार देने के लिए पैसे भी चाहिए और सरकार के संसाधनों की अपनी सीमा है। जीएसटी से होने वाला कलेक्शन अपने अनुमान से डेढ़ लाख करोड़ रुपये कम हुआ है, हालांकि निजी और काॅर्पोरेट आयकर से होने वाले राजस्व कलेक्शन ने करीब 18 फीसदी की वृद्धि हुई है। कुल मिलाजुलाकर केन्द्र सरकार की राजकोषीय सेहत ऐसी नहीं है कि लोगों के ऊपर उपहार लुटाए, लेकिन यदि चुनाव जीतना है तो कुछ न कुछ करना होगा और पैसे कहीं से लाने होगे। पैसे का एक स्रोत भारतीय रिजर्व बैंक हो सकता है, जिसकी सरप्लस आय से एकत्र संपत्ति पर केन्द्र सरकार की नजर है।

गौरतलब हो कि कुछ दिन पहले भारतीय रिजर्व बैंक और केन्द्र सरकार के बीच बहुत तनातनी हुई थी और उसके पीछे कारण तो रिजर्व बैंक का वह भंडार, जिसका एक हिस्सा केन्द्र सरकार पाना चाहती थी, लेकिन रिजर्व बैंक उसके लिए तैयार नहीं था। कहते हैं कि उस तनाव के कारण ही रिजर्व बैंक के गवर्नर ऊर्जित पटेल को अपना पद छोड़ना पड़ा और अब इस पद पर कोई और हैं और उम्मीद की जा रही है कि वे केन्द्र सरकार का रिजर्व बैंक के भंडार का दरवाजा खोल दें।

जीएसटी में कटौती कर सरकार पहले से ही लोकप्रियतावादी कदम उठा रही है, हालांकि इसके कारण राजकोष को नुकसान भी हो रहा है। आगामी बजट में वह अब प्रत्यक्ष करों मंे भी कटौती करेगी, हालांकि काॅपोरेट कर में कटौती की संभावना कम है। लोक लुभावन योजनाओं की घोषणाएं भी की जा सकती है और किसानों के लिए विशेष राहत पैकेज का इंतजाम हो सकता है। इसके अलावे और भी बहुत कुछ ऐसा मिल सकता है, जिसके बारे में शायद हम अभी सोच भी नहीं सकते। (संवाद)