जैसा कि पहले से ही उम्मीद की जा रही थी यह बजट आगामी चुनाव को ही समर्पित होगा। चालू बजट सत्र के समाप्त होने के कुछ दिनों के बाद ही आगामी लोकसभा चुनाव की तारीखें घोषित कर दी जाएंगी और चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। ऐसे समय में सत्तारूढ़ दल की पहली प्राथमिकता अगला चुनाव जीतना ही हो सकता है और इस बजट में वह सबकुछ करने की कोशिश की गई है, जो चुनाव में जीत हासिल करने में मददगार हो सकता है।

प्रभारी वित्तमंत्री पीयूष गोयल ने यह बजट पेश किया, क्योंकि अरुण जेटली बीमार हैं और वे इस समय बिना किसी विभाग के मंत्री हैं। श्री गोयल ने बजट पेश करते हुए अपने आपको एक ऐसे वित्तमंत्री के रूप में पेश किया, जिसे सरकारी खजाने की ही नहीं, बल्कि देश की जनता की भी चिंता है। अन्यथा पिछले कुछ सालों से तो वित्तमंत्री देश की आर्थिक समस्याओं से नहीं, बल्कि सरकार की वित्तीय समस्याओं से ही जूझते दिखाई पड़ते थे और सरकारी वित्तीय संकट को दूर करने के लिए देश की अर्थव्यवस्था को ही संकट में डालने मे कोई झिझक नहीं दिखाते थे। अपने कड़े राजकोषीय घाटे को वे अच्छे भविष्य के लिए कड़वे घूंट की संज्ञा दे दिया करते थे।

लेकिन पीयूष गोयल सरकार के वित्तीय संकट को नहीं, बल्कि देश के लोगों के आर्थिक संकट को दूर करते दिखाई पड़े और उन्होंन समाज के दो वर्गों को कुछ ऐसी रियायतें दी, जो अब तक के भारत के राजकोषीय इतिहास में न तो कभी देखा गया और न ही कभी सुना गया। पहला वर्ग किसानों का है, जो अभी भी देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं, हालांकि कुल राष्ट्रीय आय में उनका योगदान अब लगभग 10 फीसदी तक ही रह गया है। देश के सकल घरेलू उत्पाद में उनका घटता योगदान उनकी बदहाली की कहानी है, जो उनकी आत्महत्याओं में हमें जबतक सुनने को मिलती है। आत्महत्याएं सीमांत किसान ही करते हैं और उनको राहत पहुंचाते हुए उन्हें 6 हजार रूपये सालाना सरकारी सहायता देने की घोषणा की गई है। घोषणा अच्छी है, लेकिन उन किसानों की पहचान सही तरीके से हो पाएगी, इसे देखना बाकी है।

वित्त मंत्री के आकलन के अनुसार 75 हजार करोड़ रुपये सालाना इस योजना पर खर्च होंगे। यानी 75 हजार करोड़ रुपये राजकोष से गांवों की ओर स्थानांतरित होंगे। चूंकि सीमांत किसानों की उपभोग की भूख तीव्र होती है, इसलिए उस रकम को लगभग पूरे के पूरे बाजार में खर्च किए जाने की संभावना है और इसलिए मांग पक्ष की मजबूती के साथ यह विकास दर को भी बढ़ाने की क्षमता रखते हैं। लिहाजा, यह सिर्फ किसानों के हित में नहीं हैं, बल्कि पूरी अर्थव्यवस्था और बाजार के हित में भी है और उम्मीद करनी चाहिए कि सरकार यह रकम सही हाथों तक पहुंचा पाएगी, क्योंकि प्रशासनिक भ्रष्टाचार अभी भी एक बहुत बड़ी चुनौती है, हालांकि डिजिटल युग में इसे कम कर दिए जाने की पूरी गुंजायश है।

सवल यह भी उठता है कि क्या 6 हजार रूपये सालाना होने वाली आय से किसानों की आत्महत्याएं रुक जाएंगी? इस सवाल का जवाब सकारात्मक नहीं हो सकता, क्योंकि किसानों की आत्महत्याओं के लिए नई आर्थिक नीतियों की पूरी दिशा और दशा ही जिम्मेदार है। इनके कारण उपभोक्तावादी की संस्कृति विकसित हो गई है और उसके कारण सामाजिक मूल्य भी उपभोक्तावादी हो गए हैं। साथ साथ शिक्षा और स्वास्थ्य पर बढ़ते खर्च भी किसान परिवारों के लिए घातक साबित हो रहे हैं। स्वास्थ्य पर बढ़ता खर्च उन्हें भयंकर गरीबी की ओर धकेल देता है और वे अपने आपको लाचार और समाज में मिसफिट महसूस करने लगते हैं। अपने बच्चों की शिक्षा के लिए वे निजी स्कूलों में भारी धनराशि खर्च करने का दबाव झेलते हैं और यह दबाव भी उनकी आत्महत्या का कारण बनता है। उनकी फसलों के दामों की अनिश्चितता भी उनके लिए घातक हो जाती है।

इसलिए चुनावी जीत के दृष्टिकोण से तो करीब 12 करोड़ किसानों को दी गई यह सरकारी सहायता लाभप्रद हो सकती है और उन किसानों के लिए भी राहत का कारण बन सकती है, लेकिन उनकी दुर्दशा को समाप्त करने के लिए आर्थिक नीतियों की दिशा को ही बदलने की जरूरत है। और इसके लिए वर्तमान बजट में केन्द्र सरकार ने शायद ही कुछ किया है। स्वास्थ्य के लिए आयुष्मान योजना का खूब ढिंढोरा पीटा जा रहा है, लेकिन इसका लाभ समाज में शायद ही कहीं देखने को मिलता है, हालांकि जबतब बताया जाता है कि इतनी संख्या में लोग इससे लाभान्वित हो रहे हैं। सरकारी शिक्षा को बेहतर और सस्ता बनाने की बात भी बजट भाषण से गायब है।

किसानों के अलावा वेतनभोगी और आयकर के दायरे में आने वाले परिवारों की संख्या भी महत्वपूर्ण है। खुद वित्तमंत्री ने कहा है कि 6 करोड़ से भी ज्यादा लोग आयकर रिटर्न दाखिल करने लगे हैं। उनका एक हिस्सा तो टैक्स देने की सीमा से पहले से ही नीचे था, लेकिन इस सीमा को वर्तमान ढाई लाख से बढ़ाकर एकाएक 5 लाख कर देने का निर्णय निश्चय ही साहसभरा निर्णय है। इसके कारण रिटर्न दाखिल करने वाले लोगों की बहुत बढ़ी संख्या अब टैक्स की देनदारी से ही मुक्त हो जाएगी और जो टैक्स देंगे भी, तो उनपर पड़ा टैक्स का भार कम हो जाएगा, क्योंकि 5 लाख की आय तक उन्हें भी टैक्स नहीं देना होगा। इसके अलावा भी वे अन्य जगहों पर निवेश कर आयकर की छूट के साढ़े 6 लाख के दायरे को वे प्राप्त कर सकते हैं।

चुनाव के लिए समर्पित इस बजट को पेश करते हुए वित्त मंत्री ने पिछले 5 साल की अपनी सरकार की सफलताओं के आंकड़े भी पेश किए, हालांकि उनकी विश्वसनीयता संदिग्ध है। (संवाद)