यह हमारे राजनैतिक शासक वर्ग की विफलता ही मानी जाएगी कि गुर्जर आरक्षण की समस्या अभी भी हमारे सामने मौजूद है। ये गुर्जर ओबीसी में शामिल होने की मांग नहीं करते। सच तो यह है कि पहले दिन से ही ये ओबीसी की सूची में शामिल हैं। उनकी समस्या यह है कि ओबीसी में होने के बावजूद उन्हें आरक्षण का लाभ नहीं मिलता। ओबीसी आरक्षण का लाभ तो अन्य अनेक जातियों को भी नहीं मिलता है, लेकिन गुर्जरों की खासियत यह है कि शैक्षिक रूप से पिछड़े होने के बावजूद वे आर्थिक रूप से कुछ संपन्न हैं और संगठित भी हैं। उनकी संख्या भी ठीकठाक है।

ओबीसी के रूप में आरक्षण पाने में अपने शैक्षिक पिछड़ेपन के कारण असमर्थ होने के कारण उन्होंने अपनी जाति को अनुसूचित जनजाति में शामिल कराने का आंदोलन किया था। उनके समाज सामाजिक हैसियत रखने वाले मीणा समुदाय के लोग अनुसूचित जनजाति में शामिल हैं और इसके कारण उनकी बहुत तरक्की हो गई है और गुर्जर अपने को उनकी पीछे पाने लगे। तब उन्होंने मांग शुरू की कि उन्हें भी मीणा समुदाय की तरह अनुसूवित जनजाति का दर्जा दे दिया जाय। गुर्जरों को जम्मू और कश्मीर व हिमाचल प्रदेश में अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिला हुआ है। इसलिए उनका कहना था कि जब जम्मू और कश्मीर व हिमाचल प्रदेश में उन्हें अनुसूचित जनजाति माना जा सकता है, तो राजस्थान में क्यों नहीं।

पर गुर्जरों और उनके नेताओं को अहसास हो गया कि उनका अनुसूचित जनजाति में शामिल होना संभव नहीं है, क्योंकि इसके लिए संविधान संशोधन कर अनुसूचित जाति की अनुसूची में बदलाव की जरूरत है, जो आसान काम नहीं है। इसके अलावा राजस्थान के मीणा समुदाय के लोगों ने भी गुर्जरों के अनुसूचित जनजाति में शामिल होने का विरोध शुरू कर दिया था और दोनों समुदायों के बीच खूनी संघर्ष की स्थिति बनने लगी थी।

उसके बाद गुर्जरों ने अपनी मांग में परिवर्तन कर दिया और अपने व कुछ अन्य जातियों के लिए ओबीसी के तहत ही एक उपवर्ग बनाकर आरक्षण की मांग करने लगे। ओबीसी को वहां 21 फीसदी आरक्षण मिल रहा था। उनकी मांग पूरी करते हुए सरकार ने उन्हें अलग से 5 फीसदी आरक्षण दे भी दिया था, लेकिन उसके कारण कुल आरक्षण का प्रतिशत 50 से ज्यादा हो गया था, इसलिए अदालत ने उस निर्णय को निरस्त कर दिया और गुर्जरों के हाथ कुछ नहीं लगा। बाद में राजस्थान सरकार ने उन्हें एक प्रतिशत का आरक्षण दे दिया और यह भी व्यवस्था कर दी कि एक प्रतिशत आरक्षण के अलावा वे पहले की तरह 21 फीसदी वाले आरक्षण की श्रेणी में भी बने रहेंगे।

लेकिन एक प्रतिशत आरक्षण बहुत कम है और गुर्जर एक बार फिर मांग कर रहे हैं कि उन्हें 5 फीसदी आरक्षण दिया जाय। उनकी मांग पर राजस्थान टाल मटोल कर रही है और केन्द्र के पाले में गंेद डाल रही है, जबकि राज्य सरकार खुद उनकी समस्या का समाधान करने में सक्षम है। इस समय ओबीसी को राजस्थान में 21 फीसदी और गुर्जर व अन्य केा 1 फीसदी आरक्षण मिल रहे हैं। इस 22 फीसदी को पिछड़ा वर्ग और अति पिछड़ा वर्ग में विभाजित कर गुर्जर समस्या का समाधान निकाला जा सकता है, जो कठिन नहीं है।

सच कहा जाय, तो गुर्जरो की समस्या जाट को ओबीसी में शामिल करने से शुरू हुई। जाट पहले ओबीसी नहीं थे। लेकिन आंदोलन कर उन्होंने अपने आपको ओबीसी में शामिल करवा लिया। कुछ जिलों को छोड़कर राजस्थान के जाट न केवल प्रदेश की सूची में बल्कि केन्द्र की सूची में भी ओबीसी हैं। वे आर्थिक, सामाजिक और शेक्षिक रूप में पिछड़े नहीं हैं और ओबीसी के लिए घोषित रिक्तियों में से 80 से 90 फीसदी पर वे अकेले कब्जा कर लेते हैं। एक बार तो पुलिस एएसआई के लिए ओबीसी की 32 रिक्तियों में तो 31 पर जाटों ने ही कब्जा कर लिया था। उनके कारण गुर्जर ही नहीं, बल्कि अन्य ओबीसी जातियां भी आरक्षण का लाभ नहीं उठा पातीं।

जाटो के कारण राजस्थान में सामान्य श्रेणी से भी ज्यादा कट आॅफ ओबीसी का होता है और ज्यादा ज्यादा अंक लाने वाले ओबीसी विफल हो जाते हैं, जबकि सामान्य श्रेणी के अभ्यर्थी सफल हो जाते हैं और कई जाट अभ्यर्थी भी आरक्षण के कारण नुकसान में रहते हैं। अब चूंकि समस्या जाटों के कारण है, तो उचित तो यह होगा कि जाटों को ओबीसी की सूची से बाहर कर दिया जाय और उन्हें आर्थिक आधार पर 10 फीसदी आरक्षण वाले क्लब में डाल दिया। लेकिन ऐसा करने का जाट भारी विरोध करेंगे, इसलिए यह व्यवहारिक नहीं है।

इस समस्या का यह हल हो सकता है कि बिहार और झारखंड के कर्पूरी फाॅर्मूले की तर्ज पर राजस्थान की ओबीसी जातियों को पिछड़ेपन के आधार पर दो श्रेणी में डाल दिया जाय। जाट, यादव, माली सैनी व अन्य उन्नत जातियों की एक अलग श्रेणी बना दी जाय और उनके लिए एक निश्चित आरक्षण का प्रतिशत तय कर दिया जाय। गुर्जर व अन्य जातियों को जो शैक्षणिक पिछड़ेपन के कारण जाट जैसी उन्नत जातियों से प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाते हैं, उनके लिए अलग से श्रेणी बनाकर अलग से आरक्षण का प्रतिशत तय कर दिया जाय। यह 22 फीसदी आरक्षण के विभाजन से ही संभव हो सकता है। तब गुर्जरों को भी आरक्षण का लाभ मिलने लगेगा और उनका असंतोष भी समाप्त हो जाएगा। (संवाद)