बहरहाल, इस बार उन्होंने मोदी के पक्ष में बयान देकर सबकौ चकित कर दिया। यह तो सबको पता है कि उनकी समाजवादी पार्टी ने मायावती की बहुजन समाज पार्टी के साथ उत्तर प्रदेश में गठबंधन कर लिया है। उनके बेटे अखिलेश यादव, जो समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष हैं, किसी भी कीमत पर मोदी और उनकी भाजपा को हराना चाहते हैं। इसके लिए उन्होंने मायावती के साथ बराबरी का समझौता कर लिया है, जबकि उनकी पार्टी मायावती की पार्टी से बहुज ज्यादा मजबूत है।
इतना ही नहीं, अखिलेश यादव उस गठबंधन में कांग्रेस को शामिल करने के लिए और भी त्याग करने को तैयार हैं, हालांकि मायावती की दिलचस्पी भाजपा को हराने की उतनी नहीं है, जितनी अखिलेश यादव की है। माया की नजर लोकसभा सीटें जीतने पर नहीं, बल्कि लोकसभा की ज्यादा से ज्यादा सीटों पर टिकट बांटने में है, क्योंकि वे खुल्लमखुल्ला घोषणा करके टिकट बेचती हैं और जितना ज्यादा टिकट वह बेचेंगी, उतना ज्यादा पैसे उन्हें मिलेंगे। यही कारण है कि अखिलेश की तरह भाजपा को किसी भी कीमत पर हराने का जज्बा उनमें नहीं हैं।
मायावती की अपनी राजनीति स्पष्ट है और अखिलेश की भी अपनी राजनीति स्पष्ट है, लेकिन उन दोनों के बीच मुलायम सिंह यादव ने नरेन्द्र मोदी को जो आशीर्वाद दे डाला, वह जाहिराना तौर पर अखिलेश यादव के लिए बज्रपात से कम नहीं प्रतीत होता है। बेटा भाजपा को हराने के लिए त्याग कर रहा है। अपनी पार्टी के नेताओं को नाराज कर रहा है और जिन सीटों पर उनकी पार्टी के नेताओं को लड़ना चाहिए, वे सीटें मायावती को दे रहा है। और दूसरी तरफ बाप उसी भाजपा के सत्ता में फिर से वापसी की कामना कर रहा है।
कहने वाले कह रहे हैं कि अधिक उम्र हो जाने के कारण मुलायम सिंह यादव अब पूरी तरह से होशो हबाश में रहकर बात करने में सक्षम नहीं हैं और वे जो कह रहे हैं, उसे गंभीरतपूर्वक नहीं लिया जाना चाहिए। लेकिन वैेसे लोगों को पता होना चाहिए कि मुलायम सिंह यादव ने अबतक जो भी निर्णय लिए हैं, वे अखिलेश यादव के मोह से ही प्रेरित है। उन्होंने वैसा कभी भी कुछ नहीं किया है, जो बेटे अखिलेश के खिलाफ जाता हो। उनके नजदीकी रहे अमर सिंह का कहना है कि समाजवादी पार्टी पर नियंत्रण के विवाद के दौरान मुलायम सिंह ने ऐसा कुछ किया, जिससे पार्टी का नियंत्रण उनके बेटे के पास चला गया। एक टीवी न्यूज चैनल से बात करते हुए अमर सिंह ने कहा था कि निर्वाचन आयोग जब वह मुलायम सिंह के साथ पार्टी पर नियंत्रण का दावा लेकर गए थे, तो मुख्य निर्वाचन आयुक्त से मुलायम ने अकेले में कुछ बात की थी, जिसे उनके साथ शिष्टमंडल के अन्य सदस्य को अंधेरे में रखा गया। अमर सिंह को यकीन है कि उन्होंने मुख्य निर्वाचन आयुक्त से कहा होगा कि फैसला अखिलेश के पक्ष में दे दो।
मुलायम का पुत्र मोह शिवपाल सिंह के संदर्भ में भी दिखाई पड़ता है। जब शिवपाल और अखिलेश के बीच वर्चस्व की लड़ाई चल रही थी, तो बाहर से वे अपने भाई के साथ थे, लेकिन अंदर ही अंदर अपने बेटे के साथ। अपने भाई शिवपाल के साथ रहकर उन्होंने सुनिश्चित किया कि भाई को सीमा से बाहर नहीं जाने दें और अंत में जीत तो बेटे का ही होना था। अखिलेश को पटखनी देने के लिए जब शिवपाल ने मुलायम को खुद मुख्यमंत्री बन जाने के लिए कहा था, तो इसके लिए वे तैयार नहीं हुए थे और कहा था कि कुछ महीनों के लिए कौन मुख्यमंत्री बनता है।
यह तो पुरानी बात हुई। ताजा मामलों में भी उनका पुत्रमोह देखा जा सकता है। उनके भाई शिवपाल ने अपनी अलग पार्टी बना ली है। मुलायम न तो उस पार्टी के साथ हैं और न ही उसका विरोध कर रहे हैं। वे शिवपाल की पार्टी के कार्यक्रम में एकाध बार शामिल भी हुए हैं, लेकिन वे उसके कार्यक्रम में जब जब शामिल हुए हैं, अपने बेटे के पक्ष में ही बोला है। वे शिवपाल के कायक्रम में जाकर समाजवादी पार्टी के पक्ष मे बोलते हैं और कभी कभी तो युवाओ को राजनीति के नेतृत्व पर हावी होने की अपील भी करने लगते हैं।
ऐसी पृष्ठभूमि में यह मानने का पूरा आधार है कि मुलायम का मोदी प्रेम पुत्र मोह से प्रेरित हो सकता है। उनका पुत्र खनन घोटाले में जांच का सामना कर रहा है। सीबीआई पूछताछ कर सकती है और उनके खिलाफ मुकदमा भी दर्ज हो सकता है। मुकदमा दर्ज होने के बाद यदि जमानत नहीं मिली, तो अखिलेश जेल भी जा सकते हैं। बहुत संभव है कि एक पुत्रप्रेमी बाप के नाते नेताजी ने मोदी से कुछ डील की हो।
जब मोदी की मुलायम प्रशंसा कर रहे थे, तो उन्होंने यह भी कहा कि मोदीजी के पास वे जब जब कोई काम लेकर गए, मोदीजी ने उन्हें कभी निराश नहीं किया और उनकी बात मान ली। मोदी के फिर से प्रधानमंत्री बनने की कामना के पीछे का सबसे बड़ा कारण मुलायम ने यही बताया था। तो क्या यह माना जाए कि बेटे को खनन घोटाले की जांच से बचाने की गुहार मुलायम ने मोदी से लगा रखी है और इस जांच से बचाने का उन्हें कोई आश्वासन भी मिला है और उसके कारण ही उनका मोदी प्रेम उमड़ रहा है और वे चाहते हैं कि वे एक बार फिर देश के प्रधानमंत्री बनें। (संवाद)
मुलायम का मोदी प्रेम
इसके पीेछे अखिलेश से पुत्रमोह तो नहीं?
उपेन्द्र प्रसाद - 2019-02-14 12:09
वर्तमान लोकसभा के सत्र के अंतिम दिन समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने एक बार फिर देश को चौंका दिया है। इस तरह के झटके देने की उनकी पुरानी परंपरा रही है। एक झटका उन्होंने 2008 में उस समय दिया था, जब उन्होंने अमेरिका के साथ भारत के परमाणु मसले पर अपने वामपंथी दोस्तों को धोखा देते हुए मनमोहन सरकार का साथ दे दिया था। उसके कारण मनमोहन की सरकार बच गई थी और वामपंथियों की इतनी फजीहत हुई थी कि 2009 के लोकसभा चुनाव में उनकी बुरी हार दर्ज हो गई।