उल्लेखनीय है कि 19 सितम्बर 1960 को विश्व बैंक की मध्यस्थता के बाद भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल अयूब खान ने भारत-पाकिस्तान के बीच सिंधु जल समझौते पर मुहर लगाई थी। इस संधि के अनुसार भारत सिंधु, झेलम, चिनाब, सतलुज, ब्यास और रावी नदी का पानी पाकिस्तान को देगा। विशेषज्ञों के अनुसार इस समझौते से भारत को एकतरफा नुकसान होता रहा है क्योंकि उसे सभी छह नदियों की जल व्यवस्था का सिर्फ 20 फीसदी पानी ही मिला है। संधि के तहत भारत को 3.3 करोड़ एकड़ फीट (एमएएफ) जबकि पाकिस्तान को 80 एमएएफ पानी देना तय हुआ और संधि के इन प्रावधानों के लेकर सदैव विवाद की स्थिति बनी रही है कि ये नदियां भारत से बहने के बावजूद पाकिस्तान को भारत से ज्यादा पानी मिलता है, जिस कारण भारत में इस पानी का सिंचाई में भी सीमित उपयोग ही हो पाता है। यही पानी पाकिस्तान की कृषि आधारित अर्थव्यवस्था के लिए कितना जरूरी है, यह इसी से स्पष्ट है कि वहां की अर्थव्यवस्था में सेवा क्षेत्र के बाद कृषि सबसे बड़ा घटक है, जो उसके जीडीपी का 21 फीसदी है। बता दें कि अभी तक इन नदियों का 90 प्रतिशत से भी अधिक पानी पाकिस्तान को मिलता रहा है, जिसमें बहुत बड़ा हिस्सा भारत का स्वयं का है। हालांकि सिंधु जल संधि के बाद दोनों देशों के बीच 1965, 1971 तथा 1999 में तीन युद्ध भी हुए और भारत में सैंकड़ों आतंकी हमले हुए तथा हर बार पाकिस्तान को दिया जाने वाला अपने हिस्से का पानी रोकने की मांग उठी किन्तु सिंधु जल संधि पिछले 58 साल से बगैर किसी रूकावट के यथावत जारी रही। 2002 में तो जम्मू-कश्मीर विधानसभा में भी इस संधि को खत्म करने की मांग उठी थी किन्तु पाकिस्तान की कमर तोड़ने के लिए इस दिशा में कुछ नहीं हुआ।

दोनों देशों में इन सभी 6 नदियों के पानी पर ही करीब 30 करोड़ लोगों का जीवन निर्भर है और इससे पाकिस्तान का 47 फीसदी और भारत का 39 फीसदी हिस्सा सीधे प्रभावित होता है। ऐसे में तय है कि भारत द्वारा अपने हिस्से का पानी पाकिस्तान में जाने से रोकने का निर्णय लेने के बाद पाकिस्तान का बूंद-बूंद पानी के लिए तरसना तय है। पानी न मिलने से करोड़ों लोग प्यासे रह जाएंगे। तीन नदियों का पानी पाकिस्तान को देना बंद कर देने से पाकिस्तान की खेती-बाड़ी तथा पानी पर आधारित तमाम उद्योग-धंधे तबाही के कगार पर पहुंच जाएंगे क्योंकि इससे विशेषकर पश्चिमी पंजाब की 17 लाख एकड़ खेती तो पूरी तरह बर्बाद हो जाएगी। पाकिस्तान के जितने भागों में भी खेती-बाड़ी होती है, उसका करीब 80 फीसदी हिस्सा इन तीन नदियों से ही सिंचित होता है। वहां के मैदानी भागों की सिंचाई रावी, ब्यास, सतलुज और इसकी सहायक नदियों पर ही निर्भर है और इन नदियों में पानी नहीं होने का सीधा सा अर्थ है कि उसके अधिकांश हिस्से सिंचाई से वंचित रहने के चलते वहां कृषि उत्पादन ठप्प हो जाएगा, जिसके उसके भूखे मरने की नौबत भी आ सकती है। वहां करीब 45 फीसदी मजदूरों का रोजगार कृषि कार्यों से ही जुड़ा है। पाकिस्तान में जाने वाले पानी को रोके जाने से उसका बड़ा क्षेत्र रेगिस्तान में तब्दील हो जाएगा। पानी की उपलब्धता न होने के चलते उसकी कई पनबिजली परियोजनाओं पर खतरा मंडराएगा, जिससे वहां बड़े पैमाने पर बिजली संकट भी पैदा हो सकता है। पहले से ही भारी-भरकम वैश्विक कर्ज के बोझ तले दबे पाकिस्तान के लिए यह झटका निश्चित रूप से असहनीय होगा।

अब यह भी जान लेते हैं कि सिंधु जल संधि आखिर है क्या? जब भारत-पाकिस्तान बंटवारे के दौरान पंजाब का विभाजन हुआ था, तब इसका पूर्वी भाग भारत के पास रहा जबकि पश्चिमी क्षेत्र पाकिस्तान के हिस्से में आया। बंटवारे के दौरान सिंधु नदी घाटी और इसकी विशाल नदियों का भी विभाजन किया गया। इन नदियों के पानी के लिए पाकिस्तान पूर्ण रूप से भारत पर ही निर्भर था। सिंधु नदी घाटी की महत्ता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि ब्रिटिश शासनकाल के दौरान दक्षिण पंजाब में सिंधु नदी घाटी पर बड़ी नहर का निर्माण कराया गया था, जिससे वह क्षेत्र दक्षिण एशिया का एक प्रमुख कृषि क्षेत्र बन गया था। पूर्वी और पश्चिमी पंजाब के मुख्य अभियंताओं के बीच पानी का बहाव बनाए रखने के उद्देश्य से 20 दिसम्बर 1947 को एक समझौता हुआ, जिसके तहत भारत को बंटवारे से पहले तय किया पानी का निश्चित हिस्सा 31 मार्च 1948 तक पाकिस्तान को देते रहना तय हुआ और जब यह समय सीमा खत्म होते ही 1 अप्रैल 1948 को भारत ने दो नहरों का पाकिस्तान जाने वाला पानी रोक दिया तो पाकिस्तान की करीब 17 लाख एकड़ जमीन बंजर हो गई थी।

1960 में विश्व बैंक की मध्यस्थता के बाद दोनों देशों के बीच सिंधु जल समझौता हुआ, जिसके तहत सिंधु नदी घाटी की नदियों को पूर्वी और पश्चिमी नदियों में विभाजित किया गया। समझौते के तहत सतलुज, ब्यास, रावी, सिंधु, झेलम और चेनाब नदियों के पानी का बंटवारा किया गया। पूर्वी नदियों सतलुज, ब्यास और रावी का ज्यादातर पानी भारत के हिस्से में आता है जबकि पश्चिमी नदियों सिंधु, झेलम और चेनाब का ज्यादातर पानी पाकिस्तान के हिस्से आता है। पश्चिमी नदियों का पानी पाकिस्तान में कई प्रोजेक्ट और सिंचाई के लिए इस्तेमाल होता है और इनके बहाव पर भारत का नियंत्रण सीमित है। समझौते में कहा गया कि कुछ अपवादों को छोड़कर भारत पूर्वी नदियों का पानी बेरोकटोक इस्तेमाल कर सकता है जबकि बिजली बनाने और कृषि कार्यों के लिए पश्चिमी नदियों के पानी के इस्तेमाल का कुछ सीमित अधिकार भी भारत को दिया गया। भारत पश्चिमी नदियों के पानी से अपनी 7 लाख एकड़ जमीन में लगी फसलों की सिंचाई कर सकता है। संधि के प्रावधानों के अनुसार सिंधु नदी घाटी के कुल पानी का केवल 20 फीसदी का उपयोग ही भारत द्वारा किया जा सकता है। भारत हालांकि इन नदियों के पानी को अपने इस्तेमाल के लिए रोक सकता है लेकिन इसकी सीमा 36 लाख एकड़ फीट तय की गई है। विशेषज्ञों के अनुसार अगर इतना पानी भी रोक लिया गया तो पाकिस्तान के हालात बद से बदतर होते देर नहीं लगेगी।

भारत द्वारा पानी रोके जाने के कदम के खिलाफ पाकिस्तान वैश्विक मंचों पर भारत के खिलाफ आवाज उठा सकता है किन्तु इससे उसे कुछ हासिल होगा, इसकी संभावना नगण्य ही है क्योंकि भारत ने किसी संधि का उल्लंघन नहीं किया है बल्कि सिर्फ अपने हिस्से का पानी पाकिस्तान जाने से रोकने का ही निर्णय लिया है। हालांकि जहां तक संधि की बात है तो किसी भी संधि के तहत किसी दूसरे देश को हमारे संसाधनों के इस्तेमाल का हक तभी तक है, जब तब दोनों के बीच दोस्ताना संबंध रहें और पाकिस्तान का बरसों से भारत के प्रति जो दुश्मनी भरा रवैया रहा है, उसके चलते भारत को ऐसी किसी भी संधि को ढ़ोते रहने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। इसके लिए चीन का उदाहरण समीचीन होगा, जिसने राष्ट्रीय हितों का हवाला देते हुए अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के उस फैसले को मानने से इन्कार कर दिया था, जिसमें करीब साढ़े तीन लाख वर्ग किलोमीटर में फैले दक्षिण चीन सागर क्षेत्र पर बीजिंग के दावे को खारिज करते हुए फिलीपींस के अधिकारों को मान्यता प्रदान की दी थी किन्तु चीन ने अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के फैसले को मानने से इन्कार कर दिया।

हालांकि जिस समय भारत-पाकिस्तान के बीच जल संधि हुई थी, तब दोनों देशों के बीच युद्ध जैसे कोई हालात नहीं थीे किन्तु 1965 से लेकर अब तक पाकिस्तान ने अपनी सेना और अपने ही पाले-पोसे आतंकियों के जरिये जो छद्म युद्ध छेड़ रखा है, उसके चलते भारत चाहे तो राष्ट्रीय हित में इस संधि को कभी भी खत्म कर सकता है। चूंकि ये नदियां भारत का हिस्सा हैं और आतंक के जरिये पाकिस्तान भारत में लंबे अरसे से तबाही मचाता रहा है, ऐसे में भारत अगर और कड़े कदम उठाते हुए इस संधि को ही निरस्त कर दे तो पाकिस्तान भूखा-प्यासा मर जाएगा। भारत अभी तक अपने हिस्से का पानी भी पाकिस्तान में बहने देता था किन्तु फिलहाल भारत द्वारा अपने ही हिस्से का पाकिस्तान की ओर बहता पानी रोकने के फैसले से ही पाकिस्तान में खलबली मच गई है। ऐसे में कल्पना की जा सकती है कि भारत अगर सिंचाई तथा बिजली प्रोजेक्ट्स के लिए इस संधि को तोड़ते हुए इन नदियों के पूरे पानी का इस्तेमाल स्वयं करने का फैसला कर ले तो पाकिस्तान की क्या दुर्दशा होगी।(संवाद)