मौजूदा सांसद पी के कुन्हालीकुट्टी, जो लीग के राष्ट्रीय सचिव भी हैं, वे मलप्पुरम से पार्टी के उम्मीदवार होंगे। अगर कोई अप्रत्याशित घटना नहीं हुई, तो यह आईयूएमएल स्ट्रॉन्गमैन के लिए जीतना एकदम आसान होगा। देखना सिर्फ यह है कि 1,70,000 से अधिक मतों के बहुमत से उनकी जो जीत हुई थी, वह आंकड़ा कम हो सकता है या नहीं। सभी विधानसभा क्षेत्र जो मलप्पुरम लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के अंदर आते हैं, मुस्लिम लीग के पास हैं। यही कारण है कि कुन्हालीकुट्टी आत्मविश्वास से लवरेज हैं और अपनी जीत के प्रति पूरी तरह आश्वस्त हैं।
पोन्नानीः यह एक और मुस्लिम लीग का गढ़ है। पार्टी के उम्मीदवार ई टी मोहम्मद बशीर ने पिछली बार इसे जीता था। लेकिन पिछली बार उन्हें यहां पसीना बहाना पड़ा था और उनकी जीत की मार्जिन 20 हजार तक सीमित हो गई थी। उसके पहले वाले चुनाव में वे 80 हजार मतों से जीते थे।
दूसरे शब्दों में कहा जाय तो पोन्नानी मुस्लिम लीग के लिए पहले ही तरह अजेय नहीं रहा। वह मल्लपुरम की तरह लीग के लिए पूरी तरह सुरक्षित नहीं है। अगर एलडीएफ एक मजबूत उम्मीदवार खड़ा करता है, तो बशीर को अपनी सीट बरकरार रखने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी।
पलक्कड़ः माकपा का एक पारंपरिक गढ है़। सांसद एम बी राजेश क एक बार फिर जीत जाने की पूरी संभावना है। वे निर्वाचन क्षेत्र में बेहद लोकप्रिय होने के कारण एक और जीत के हकदार हैं। एक और प्लस प्वाइंट यह है कि संसद के भीतर और बाहर दोनों जगह उनका प्रदर्शन काफी प्रभावशाली रहा है। ऐसा नहीं है कि यूडीएफ के पास माकपा का खेल बिगाड़ने का मौका नहीं है। लेकिन यह बिल्कुल आसान नहीं होगा। भाजपा ने भी इस निर्वाचन क्षेत्र में गहरी जड़ें जमा ली हैं। लेकिन सबरीमाला के बावजूद, स्थानीय भाजपा में गुटबाजी को देखते हुए पार्टी किसी भी रूप में जीत की स्थिति में नहीं है।
अलथुरः मालाबार क्षेत्र की यह सीट सीपीएम की एक और निश्चित सीट है। माकपा पिछले कुछ चुनावों में यहां से जीतती रही है। वर्तमान सांसद पी के बीजू ने 2014 में 37,000 से अधिक मतों से जीत दर्ज की थी। हालांकि, रिपोर्ट है कि बीजू को एक और मौका नहीं दिया जा सकता है। कथित तौर पर सबरीमाला आंदोलन के बाद माकपा मजबूत उम्मीदवार की तलाश कर रही है।
त्रिशूरः यह पिछले लोकसभा चुनाव में सीपीआई की यह अकेली जीती हुई सीट है। सीपीआई के सीएन जयदेवन ने यहां 2014 में 37,000 से अधिक मतों के आरामदायक बहुमत से जीत दर्ज की थी। लेकिन संसद में उनकी लगातार अनुपस्थिति को देखते हुए, जयदेव को इस बार पार्टी द्वारा दुबारा टिकट नहीं दिया जा सकता है। पार्टी पूर्व मंत्री केपी राजेंद्रन पर यहां दांव लगा सकती है। कोई शक नहीं, राजेंद्रन एक अच्छे उम्मीदवार हैं, और निर्वाचन क्षेत्र में एक जाना माना चेहरा हैं। लेकिन अगर कांग्रेस केपीसीसी के पूर्व प्रमुख वी एम सुधीरन या टीएन प्रतापन जैसे दिग्गजों को मैदान में उतारती है, तो राजेंद्रन को मुश्किल हो सकती है।
सीपीआई के लिए सीट को बनाए रखने वाले सबसे अच्छे व्यक्ति, पिनाराई मंत्रालय में कृषि मंत्री, वी एस सुनील कुमार, हो सकते हैं, जो त्रिशूर में बेहद लोकप्रिय हैं। एक मंत्री के रूप में उनका प्रदर्शन शानदार है। अगर सुनील, जिसे पार्टी कार्यकर्ताओं द्वारा प्यार से ंद सुनीलेतन ’(बड़ा भाई सुनील) कहा जाता है, अगर उम्मीदवार बनते हैं, तो सीपीआई सीट बरकरार रख सकती है। बड़ी बात यह है कि क्या उन्हें राज्य मंत्रिमंडल से अलग करने की पार्टी सोच सकती है?
कांग्रेस का एक मजबूत गढ़ चाकुकुडी निर्वाचन क्षेत्र है। 2014 में एलडीएफ समर्थित एक निर्दलीय उम्मीदवर ने कांग्रेस उम्मीदवार को आश्चर्यजनक रूप से पराजित कर दिया था। उस समय कांग्रेस ने एक रणनीतिक भूल कर दी थी। त्रिसुर के सांसद पी के चाको को यहां से अपना उम्मीदवार बना दिया था और यहां के सांसद धनपलन को त्रिसूर से लड़ा दिया था। इसका असर यह हुआ कि पीसी चाको चुनाव हार गए और कांग्रेस का यह गढ़ ढह गया।
जहां तक एर्नाकुलम की बात है, तो यह परंपरागत रूप से कांग्रेस के अनुकूल रहा है। पार्टी के मजबूत खिलाड़ी, के वी थॉमस पिछले दो कार्यकाल से यहां से जीत रहे हैं। इस बार, थॉमस मास्टर, जैसा कि उन्हें निर्वाचन क्षेत्र में कहा जाता है, पार्टी के उम्मीदवार होंगे। हालांकि, ऐसा नहीं है कि माकपा के पास कांग्रेस से सीट जीतने का कोई मौका नहीं है। माकपा के उम्मीदवार वी विश्वनाथ मेनन यहां से कभी जीते थे। सीपीआई (एम) समर्थित निर्दलीय सेबेस्टियन पॉल भी यहां से जीत चुके हैं। (संवाद)
मलप्पुरम में यूडीएफ आरामदायक स्थिति में
मध्य केरल में होगा घमसान
पी श्रीकुमारन - 2019-02-23 11:07
तिरुअनंतपुरमः कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के लिए मुस्लिम बहुल मलप्पुरम जिले में स्थिति बेहतर बनी हुई है। इसका कारण यह है कि यह हयोगी, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग का गढ़ है।