यह पहला मौका है जब भारत को ओआईसी की बैठक में विशेष अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया है। ओआईसी दुनिया के 56 इस्लामी देशों का सबसे बड़ा संगठन है। दुनिया की तीसरी बडी मुस्लिम आबादी भारत में रहती है, इसके बावजूद मुस्लिम देशों के इस संगठन ने भारत को हमेशा नजरअंदाज किया है। भारत को इस संगठन की सदस्यता देना तो दूर, पर्यवेक्षक का दर्जा भी नही दिया गया। जबकि पर्यवेक्षक के तौर पर रूस, थाईलैंड और कई छोटे-मोटे अफ्रीकी देशों को हमेशा बुलाया जाता है। ऐसे में सवाल है कि इस बार ही भारतीय विदेश मंत्री को विशेष अतिथि के तौर पर क्यों बुलाया गया और भाषण देने के लिए क्यों कहा गया? भारत सरकार इस निमंत्रण पर अपनी पीठ थपथपा रही है। इसे अपनी कूटनीति की कामयाबी बता रही है। विदेश मंत्रालय ने ओआईसी के इस न्योते को भारत में 18 करोड से भी ज्यादा मुसलमानों की मौजूदगी और इस्लामिक जगत में भारत के महत्व को रेखांकित करने वाला स्वागतयोग्य कदम बताया है। लेकिन मामला इतना सीधा-सपाट नहीं हैं।

दरअसल, दुनिया के इस्लामी देश पुलवामा में हुए आतंकवादी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध जैसे हालात बनने से रोकना चाहते हैं। पाकिस्तानी नेतृत्व चाहे जो कहता रहे लेकिन हकीकत यह है कि वह भी अपनी जर्जर होती अर्थव्यवस्था के चलते युद्ध से बचना चाहता है। इसीलिए उसने इस बार आईसीओ के सम्मेलन में भारत को बुलाने की पहल का विरोध नहीं किया था, हालांकि अब उसके कुछ सांसद उस बैठक का बहिष्कार करने की मांग कर रहे हैं।

1969 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कृषि मंत्री फखरुद्दीन अली अहमद को इस संगठन के सालाना सम्मेलन में शिरकत करने के लिए मोरक्को भेजा था, लेकिन पाकिस्तान के फौजी तानाशाह याह्या खान की तिकडमों के चलते निमंत्रण पाने के बावजूद फखरुद्दीन अली अहमद उस सम्मेलन में भाग नहीं ले सके थे। उसके बाद पिछले 50 सालों के दौरान जब भी इस संगठन का सम्मेलन हुआ, उसमें कश्मीर को लेकर भारत की भर्त्सना हुई। इस बार भारत को जो निमंत्रण मिला है, उसके लिए माना जा रहा है कि वह सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात की पहल पर मिला है। वैसे पिछले साल बांग्लादेश की शेख हसीना सरकार ने भारत को पर्यवेक्षक का दर्जा देने का प्रस्ताव किया था।

अब आईसीओ के सम्मेलन में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को पाकिस्तानी विश्लेषकों के प्रचार का करारा जवाब देना होगा। लेकिन असल सवाल है कि क्या वे अपने भाषण में पुलवामा के हमले के लिए पाकिस्तान को नाम लेकर जिम्मेदार ठहराएंगी? यदि वे ऐसा करेंगी तो निश्चित ही उनका विरोध होगा। यदि वे पाकिस्तान का नाम नहीं लेंगी तो वे अपनी ही सरकार की कमजोरी जाहिर करेंगी, जो अभी तक कह रही है कि पुलवामा कांड के लिए पाकिस्तान ही जिम्मेदार है और उसने बदले की कार्रवाई भी कर दी है, हालांकि उसने साफ कहा है कि उसका निशाना पाकिस्तान का सैनिक या असैनिक ठिकाना नहीं था, बल्कि आतंकियों का अड्डा था। भारतीय विदेश मंत्री ने अगर वहां पुलवामा कांड के संदर्भ में पाकिस्तान का नाम लेने से परहेज किया तो उनका वहां जाना और भाषण देना वैसा ही जबानी जमा-खर्च हो जाएगा, जैसा सऊदी शाहजादे की भारत-यात्रा के दौरान हुआ और जैसा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा-परिषद द्वारा पारित निंदा प्रस्ताव में हुआ।

गौरतलब है कि सऊदी शाहजादे मोहम्मद बिन सलमान ने अपनी पाकिस्तान यात्रा के दौरान खस्ताहाल इस्लामाबाद को बीस अरब डॉलर की आर्थिक सहायता देने की घोषणा की और साथ ही आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान की खुलकर आलोचना करने से परहेज किया। सऊदी अरब और पाकिस्तान ने जो साझा विज्ञप्ति जारी की उसमें संयुक्त राष्ट्र द्वारा सूचीबद्ध किए गए आतंकवादी मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित किए जाने की मांग पर राजनीति करने के विरूद्ध चेतावनी भी दी गई थी। चीन पहले ही इस मांग से असहमति जता चुका है। भारत के लिए यह घटनाक्रम चिंता का विषय था। इसी संदर्भ के मद्देनजर अरब के शाहजादे की भारत यात्रा की अलग-अलग व्याख्याएं की गई। एक यथार्थपरक निष्कर्ष यह भी है कि सऊदी अरब पाकिस्तान के साथ अपनी निकटता खत्म करने नहीं जा रहा है क्योंकि दोनों के बीच ऐतिहासिक रिश्ते हैं। अलबत्ता सऊदी शाहजादे ने भारत को आश्वस्त किया है कि सऊदी अरब के संसाधनों का भारत के खिलाफ इस्तेमाल नहीं होगा और साथ ही सऊदी अरब में पनपने वाली जेहादी विचारधारा और वहां सक्रिय भारत विरोधी तत्वों के खिलाफ सऊदी हुकूमत कार्रवाई करेगी। इस समूची पृष्ठभूमि के मद्देनजर इस्लामी देशों के विदेश मंत्रियों के सम्मेलन में भाग लेने के लिए भारतीय विदेश मंत्री को मिले न्योते के खास मायने हैं। सुषमा स्वराज को वहां पुलवामा कांड और जम्मू-कश्मीर में सीमा पार से चलाई जा रही आतंकवादी गतिविधियों का मुद्दा अपने समकक्ष मंत्रियों से बातचीत के दौरान भी उठाना होगा। ऐसे समय में जब भारत सरकार कश्मीर घाटी में हुर्रियत समेत अन्य अलगाववादी संगठनों और आतंकवादियों के खिलाफ सख्ती से पेश आने की नीति पर अमल कर रही है, उस समय इस्लामी देशों का समर्थन नई दिल्ली के लिए काफी अहमियत रखता है। लेकिन यह देखना होगा कि पाकिस्तान स्थित आतंकी अड़डे पर भारत द्वारा की गई बमबारी का क्या असर उस सम्मेलन पर पड़ता है। भारत की कूटनीति कसौटी पर है। (संवाद)