वर्तमान भारत में इतिहास की चर्चा जोरों पर है। वर्तमान एवं भविष्य की बात करते-करते राजनेता इतिहास से खिलवाड़ करने लगे हैं। ऐसे में इतिहासकारों की भूमिका अहम हो जाती है, जब वे सही परिप्रेक्ष्य में इतिहास की व्याख्या कर भविष्य की राह दिखाए। भारतीय इतिहास कांग्रेस एक ऐसा आयोजन है, जिसमें देश के वरिष्ठ एवं विख्यात इतिहासकार शिरकत कर इतिहास की तथ्य आधारित व्याख्या करते हैं, जो बेहतर समाज एवं देश के लिए जरूरी है। 79वें भारतीय इतिहास कांग्रेस में एक ओर महात्मा गांधी और भारत का निर्माण विषय पर विख्यात इतिहासकार एवं चिंतक अपने विचार व्यक्त किए, तो दूसरी ओर अलीगढ़ हिस्ट्रोरियंस सोसायटी द्वारा भारत के निर्माण में अशोक, अकबर, राम मोहन राय और जवाहर लाल नेहरु के योगदान को रेखांकित किया गया। भारतीय इतिहास कांग्रेस के आयोजन के तीन दिनों में प्राचीन इतिहास, मध्यकालीन इतिहास, आधुनिक इतिहास, समासामयिक इतिहास और पुरातत्व पर 700 से ज्यादा शोध-पत्र पढ़े गए।
अधिवेशन में पूर्व उप राष्ट्रपति एम. हामिद अंसारी ने ‘महात्मा गांधी एंड द मेकिंग ऑफ द इंडियन नेशन’ पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि भारत का सांस्कृतिक इतिहास प्राचीन है, लेकिन राजनीतिक दृष्टि में आधुनिक भारत का निर्माण आजादी के आंदोलन से शुरू होता है। इसमें भारत की बहुलता एवं विविध पहचान को परिभाषित किया गया और इसकी अभिव्यक्ति के लिए मंच प्रदान किया। एक ओर भारत की विरासत थी, तो दूसरी ओर आधुनिक सिद्धांत राजनीतिक एवं कानूनी बहस में व्यक्त किए जा रहे थे। इन दोनों धाराओं ने महात्मा गांधी के विचारों पर प्रभाव डाला।
श्री अंसारी आज के एक महत्वपूर्ण मुद्दे को महात्मा गांधी के हवाले से रेखांकित किया। उन्होंने कहा भारतीय दंड संहिता की धारा 124 ए, जो कि देशद्रोह से जुड़ा हुआ है, उसे आजादी के आंदोलन में बड़े-बड़े आंदोलनकारियों ने झेला था। आजाद भारत में 1951 में ही प्रथम प्रधानमंत्री नेहरु ने इसकी आलोचना करते हुए व्यावहारिक एवं ऐतिहासिक रूप से अत्यधिक आपत्तिजनक बताया था, लेकिन वह कानून में बना रहा और आज अक्सर उन लोगों के खिलाफ इस्तेमाल किया जाता है, जो सत्तासीनों के विचारों के विपरीत विचार रखते हैं। इसके साथ ही आज हमारी बहुलतावादी समाज के कमजोर किया जा रहा है, जबकि गांधीवादी विचारों के अनुरूप सहिष्णु एवं अहिंसक समाज होना चाहिए। इस विषय पर बोलते हुए गांधीवादी प्रो. पुरुषोत्तम अग्रवाल ने कहा कि हिंसा से लाए गए बदलाव में अहिंसक एवं शांत समाज की कल्पना नहीं कर सकते। अहिंसा के साथ ही हमारा अस्तित्व जुड़ा हुआ है। इतिहासकारों के ये विचार वर्तमान के लिए रोशनी है, जब हर तरफ अहिंसक आवाजों को दबाया जा रहा है और बहुलतावादी संस्कृति पर चोट किया जा रहा है।
गांधी जी पर आयोजित सत्र में गांधीवादी सुश्री अनुराधा शंकर ने कस्तूरबा गांधी के योगदान पर शोध आधारित अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि आजादी के आंदोलन में महिलाओं को आंदोलन से जोड़ने में कस्तूरबा गांधी का महत्वपूर्ण योगदान था। दूसरे इतिहासकारों ने भले ही कस्तूरबा पर कम लिखा हो, लेकिन महात्मा गांधी ने अपनी आत्मकथा में इस बात को स्वीकार किया है।
हाल के वर्षों में भाजपा, खासतौर से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा भारत के प्रथम प्रधानमंत्री नेहरु के योगदान को सार्वजनिक रूप से नकारा जाता रहा है। लेकिन इतिहासकार इस बात से वाकिफ नहीं रखते और वे साफ तौर पर मानते हैं कि आधुनिक भारत के निर्माण में नेहरु का बड़ा योगदान था। भारत के निर्माण में जवाहरलाल नेहरु के योगदान पर बोलते हुए इतिहासकार प्रो. आदित्य मुखर्जी ने कहा कि आजाद भारत के निर्माण में नेहरु की दूरदृष्टि एवं विचारों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। नेहरु ने समाज में वैज्ञानिक चेतना की बढ़ाने की बात की थी, तो आज के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मिथकों को थोप रहे हैं। आजादी के तुरंत बाद नेहरु को सांप्रदायिक शक्तियों से जूझना पड़ा था। उन्होंने वैश्विक शांति के लिए गुटनिरपेक्ष आंदोलन को महत्व दिया। विख्यात इतिहासकार प्रो. इरफान हबीब ने कहा कि अशोक के पहले भारत की अवधारणा ही नहीं थी। प्रो. इरफान ने गांधी जी पर आयोजित सत्र में आधुनिक भारत के निर्माण में महात्मा गांधी के योगदान का उल्लेख किया। इतिहासकार शिरीन मूस्वी ने भारत को बनाने में अकबर के योगदान को रेखांकित किया। उन्होंने बताया कि एक बड़े राष्ट्र को संचालित करने के लिए कई व्यवस्थाओं को ईजाद किया।
अधिवेशन में मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने अपने संबोधन में मौजूदा समय में उन शक्तियों की ओर इशारा किया, जो इतिहास को मिथ और मिथक के आधार पर फिर से लिखना चाहते हैं। उन्होंने कहना था कि इतिहास तथ्यों, दस्तावेजी साक्ष्यों तथा वैज्ञानिक प्रकृति के तथ्यों पर आधारित होना चाहिए। उल्लेखनीय है कि उनके कार्यकाल में ही आज से 18 साल पहले भोपाल में 62वां भारतीय इतिहास कांग्रेस हुआ था। अधिवेशन में यह बात उभर कर आई कि आज इतिहास की समझ और उसे तथ्यों से अलग किसी ख़ास विचारधारा के दायरे में परिभाषित करने की कोशिश हो रही है, जो कि भारतीय लोकतांत्रिक परंपरा की विरोधाभासी है। अधिवेशन में मध्यप्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री जीतू पटवारी ने कहा कि इतिहास तथ्यों, तर्कों और सच्चाई के साथ भूत और वर्तमान के बीच सेतु का काम करता है। धार्मिक आधार पर इतिहास को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत करना गलत है। हम मिथक आधारित इतिहास नहीं, तथ्यों के आधार पर इतिहास को प्राथमिकता देंगे। निश्चय ही उच्च शिक्षा मंत्री का यह वक्तव्य हमें आश्वस्त करता है कि इतिहास को सही परिप्रेक्ष्य में देखने के लिए वैज्ञानिक चेतना को बढ़ावा दिया जाएगा। (संवाद)
किसी खास विचारधारा के लिए नहीं होता इतिहास
इतिहास में तथ्य, साक्ष्य और वैज्ञानिक दृष्टिकोण महत्वपूर्ण
राजु कुमार - 2019-03-01 11:19
इतिहास एवं इतिहासकारों के लिए प्रतिष्ठित भारतीय इतिहास कांग्रेस का आयोजन लंबे अरसे के बाद भोपाल में किया गया। तीन दिन तक चले 79वें भारतीय इतिहास कांग्रेस में देश के प्रतिष्ठित इतिहासकारों सहित लगभग एक हजार लोगों ने हिस्सा लिया। यह आयोजन कई मायने में महत्वपूर्ण रहा। पिछले साल 28 से 30 दिसंबर को सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय में आयोजित होने वाले 79वें भारतीय इतिहास कांग्रेस को पुणे विश्वविद्यालय ने अंतिम समय में मेजबानी करने से इनकार कर दिया था। पुणे विश्वविद्यालय के इनकार के बाद बरकतउल्ला विश्वविद्यालय ने इसकी मेजबानी स्वीकारी थी। पुणे विश्वविद्यालय ने यह कहते हुए इनकार किया था कि उसके पास फंड की कमी है और इतने प्रतिभागियों को ठहराने का इंतजाम नहीं हो पा रहा है। अंतिम समय पर इस तरह के इनकार को इतिहासकारों ने राजनीतिक दबाव में लिया गया निर्णय बताया था। वरिष्ठ इतिहासकार प्रो. इरफान हबीब ने कहा था कि इस आयोजन से इनकार के पीछे मेजबानों ने कानून-व्यवस्था को एक बड़ा कारण बताया था। पुणे के इनकार के बाद मध्यप्रदेश सरकार ने इस आयोजन के लिए सहमति दी और भोपाल स्थित बरकतउल्ला विश्वविद्यालय ने मेजबानी स्वीकार की।