आमजन तो क्या, खेल जगत की कई महत्वपूर्ण हस्तियां भी खेल के मैदान में पाकिस्तान का बहिष्कार करने का खुलकर समर्थन करती दिखाई दी हैं। वैसे वल्र्ड कप में भारत का इतिहास रहा है कि उसने भले ही हर बार यह खिताब नहीं जीता हो किन्तु वह वल्र्ड कप में पाकिस्तान से कभी नहीं हारा। हालांकि अगर भारत विश्व कप में पाकिस्तान के साथ नहीं खेलता है तो उसे दो अंक गंवाने पड़ेंगे और ऐसे में पाकिस्तान किसी अन्य टीम से मुकाबला हारने के बाद भी अपने खाते में ये अंक जुड़ने के चलते अगले दौर के लिए क्वालीफाई कर लेगा। इन्हीं दो अंकों के चलते भारतीय खेल जगत दो खेमों में बंटा है। सचिन तेंदुलकर सहित एक खेमा चाहता है कि भारत को मैच न खेलने की वजह से दो अंक गंवाने के बजाय पाकिस्तान को मैदान में हराना चाहिए जबकि दूसरा खेमा चाहता है कि विश्व कप में जीतने से बड़ा भारतीय टीम के लिए देश का आत्मसम्मान और देश की सुरक्षा का मामला है और पाकिस्तान के साथ न खेलकर पूरी दुनिया को एक कड़ा संदेश दिया ही जाना चाहिए। हालांकि गृहमंत्री राजनाथ सिंह अपनी निजी राय व्यक्त करते हुए कह चुके हैं कि चाहे जितना भी नुकसान हो, भारत को विश्व कप में पाकिस्तान के साथ नहीं खेलना चाहिए।

वैसे समय की मांग फिलहाल तो यही है कि क्रिकेट मैच में हार-जीत के बारे में सोचने के बजाय हम अब पाकिस्तान का खेल के मैदान में भी पूर्ण बहिष्कार करें। देखा जाए तो खेल के मैदान में यदि हम पाकिस्तान को हरा भी दें तो उससे पाकिस्तान का क्या बिगड़ जाएगा? इससे भारत से आतंक का खूनी खेल खेलने की उसकी फितरत बदलने वाली नहीं है। हम पिछले दिनों पाक प्रायोजित आतंकवाद के चलते पुलवामा में अपने 44 वीर जवान खो चुके हैं और ऐसे ही आतंकी हमलों के चलते देश में आए दिन सैन्य बलों सहित आम नागरिक शहीद हो रहे हैं, ऐसे में अगर विश्व कप में पाकिस्तान से न खेलने के कारण हमें दो अंक गंवाने भी पड़े तो पाकिस्तान के खूनी खेल का बदला लेने के लिए देश की सुरक्षा और आत्मसम्मान के समक्ष यह बहुत छोटी चीज होगी। इससे पहले 2003 के वल्र्ड कप में इंग्लैंड की टीम ने भी सुरक्षा कारणों से जिम्बाब्वे में खेलने से इनकार कर दिया था और उसे अपने चार प्वाइंट्स खोने पड़े थे लेकिन इंग्लैंड को उसका कोई पछतावा नहीं था।

फिलहाल बीसीसीआई हो या सीओए अथवा खेल जगत से जुड़ी अन्य हस्तियां, सभी ने पाकिस्तान के साथ खेलने या न खेलने का निर्णय पूरी तरह सरकार पर छोड़ दिया है। इससे पहले 1999 में जब कारगिल युद्ध चल रहा था, तब भी ऐसे ही हालात पैदा हुए थे और मैच रद्द करने की मांग उठी थी लेकिन उस वक्त इंग्लैंड में खेले गए विश्व कप में भारत ने पाक को धूल चटाई थी। मैच वाले दिन कारगिल में तीन पाकिस्तानी जवान मारे गए थे जबकि तीन भारतीय अधिकारी भी वीरगति को प्राप्त हुए थे। 1999 के बाद तो पाकिस्तानी टीम कई बार भारत में भी खेलने आई। हालांकि पहले भी दोनों देशों के बीच लंबे-लंबे समय तक मैच नहीं खेले गए। 18 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद 1978 में दोनों के बीच क्रिकेट संबंधों की पुनः शुरूआत हुई थी। वैसे दोनों देशों ने 2008 के मुम्बई हमलों के बाद से कोई भी द्विपक्षीय सीरीज नहीं खेली है और पाकिस्तान को विश्व के सर्वाधिक लोकप्रिय क्रिकेट टूर्नामेंट आईपीएल से भी बाहर रखा गया है।

अब बात करते हैं विश्व कप में भारत और पाकिस्तान में खेले जाने वाले मैच को लेकर दुनिया भर में रोमांच की। भारत और पाकिस्तान के बीच खेले जाने वाले मैच राष्ट्रभक्ति की भावना से ओत-प्रोत रहे हैं और ऐसे मैचों के दौरान दोनों देशों के खेल प्रेमियों का जो बर्ताव देखा जाता रहा है, उसके चलते दोनों के बीच खेले जाने वाले मैचों को ‘बिना गोलियों वाला युद्ध’ की संज्ञा दी जाती रही है। दरअसल क्रिकेट प्रतिद्वंद्विता के लिए विख्यात भारत-पाक के बीच खेले जाने वाले विश्व कप मैच को विश्वभर में करीब एक अरब लोग देखते हैं। इस बार भी इस मैच को लेकर खेल प्रेमियों में कितना उत्साह है, यह आईसीसी के प्रबंध निदेशक स्टीव एलवर्थी के इस खुलासे से सहजता से समझा जा सकता है कि 25 हजार की क्षमता वाले ओल्ड ट्रेफर्ड स्टेडियम में खेले जाने वाले इस मैच को देखने के लिए करीब पांच लाख टिकटों के आवेदन आईसीसी के पास आए, जिसके लिए दुनियाभर से खेल प्रेमियों ने आवेदन किया। इंग्लैंड तथा आॅस्ट्रेलिया के बीच होने वाले मैच के लिए ढ़ाई लाख से भी कम आवेदन मिले जबकि विश्व कप फाइनल के लिए तो सिर्फ 270000 टिकटों के ही आवेदन आए। स्टीव एलवर्थी भारत-पाक मुकाबले को दुनिया का सबसे बड़ा स्पोर्टिंग ईवेंट बताते हैं। आंकड़ों पर नजर डालें तो 2015 के विश्व कप के दौरान भारत-पाक मैच की टिकटें महज 12 मिनट में ही बिक गई थी जबकि 2011 के विश्व कप सेमीफाइनल में दोनों टीमों के बीच हुए मैच को 988 मिलियन दर्शकों ने टीवी पर देखा था।

फिलहाल बीसीसीआई पाकिस्तान को विश्व कप से बाहर कराने की कोशिशों में जुटा है किन्तु खेल विशेषज्ञों के मुताबिक ऐसा हो पाना संभव नहीं है क्योंकि पाकिस्तान करीब सात दशकों से टेस्ट क्रिकेट खेल रहा है और 1992 में विश्व कप भी जीत चुका है। भारत के पास आईसीसी में बहुमत भी नहीं है और अगर आईसीसी में इस मामले पर वोटिंग होती है तो भारत की हार निश्चित है लेकिन अगर बीसीसीआई पाकिस्तान को विश्व कप से बाहर करने के लिए जिद पर अडिग रहता है तो आईसीसी के लिए विकट समस्या अवश्य उत्पन्न होगी क्योंकि बीसीसीआई की अनदेखी करना इतना आसान नहीं है। पहला कारण तो यही कि टीम इंडिया दो बार पचास ओवरों वाला विश्व कप तथा एक बार टी-20 विश्व कप जीत चुकी है। इसके अलावा फिलहाल वह आईसीसी रैंकिंग में टेस्ट में नंबर वन और वनडे में दूसरे पायदान पर है तथा विश्व कप जीतने के सबसे प्रबल दावेदारों में से एक है। दूसरी ओर चूंकि बीसीसीआई दुनिया का सर्वाधिक अमीर और लोकप्रिय क्रिकेट बोर्ड है, इसलिए अगर बीसीसीआई ने उसकी मांग न माने जाने पर कड़ा फैसला लेते हुए विश्व कप के बहिष्कार का ही निर्णय ले लिया तो दुनियाभर के खेल प्रेमियों के लिए विश्व कप का सारा मजा ही किरकिरा हो जाएगा। बहरहाल, भारत पाकिस्तान के बीच आज जो तनावपूर्ण संबंध हैं, ऐसे में अहम सवाल यही उठ रहा है कि उस पाकिस्तान के साथ कोई भी मैच आखिर क्यों खेला जाए, जो हर कदम पर हमारी पीठ में छुरा घोंपकर हमें लहुलूहान करता रहा है? (संवाद)