दरअसल इसे संयोग कहें या कुछ और कि 2002 में जब से राजस्थान की विधानसभा सवाई मान सिंह टाउन हॉल से जयपुर के ज्योतिनगर में नई इमारत में स्थानांतरित हुई, उसके बाद से ही 13वीं विधानसभा को छोड़कर कभी भी विधानसभा में 200 विधायकों की संख्या को बरकरार नहीं रखा जा सका। कभी कोई विधायक अपने पद से इस्तीफा दे देता है, किसी को जेल की सजा हो जाती है तो कभी किसी के निधन के चलते सीट खाली हो जाती है और इसके चलते विधानसभा में एक या दो सीटें अधिकांश समय खाली ही रहती हैं।

विधानसभा को भूतिया बताने वाले राजस्थान के आम नागरिक नहीं हैं बल्कि वो ‘माननीय’ हैं, जिन्हें जनता अपना प्रतिनिधि चुनकर विधानसभा में भेजती है। भाजपा की वसुन्धरा सरकार में जनजाति क्षेत्रीय विकास मंत्री रहे नंदलाल मीणा और सरकारी मुख्य सचेतक कालूलाल गुर्जर भी मानते रहे हैं कि विधानसभा भवन में बुरी आत्माओं का साया होने की बात समय-समय पर सामने आई है। विधायकों द्वारा 14वीं विधानसभा के अंतिम सत्र के अंतिम दिन विधानसभाध्यक्ष से आग्रह भी किया गया था कि भवन का शुद्धिकरण कराया जाए।

दरअसल बताया जाता है कि जयपुर के लालकोठी क्षेत्र में नया विधानसभा भवन जिस जमीन पर बना है, वहां पहले कभी श्मशान व कब्रिस्तान हुआ करते थे। विधानसभा भवन से करीब 200 मीटर दूर मोक्षधाम है तथा भवन निर्माण के लिए मोक्ष धाम की कुछ जमीन भी अधिगृहीत की गई थी। 16.96 एकड़ क्षेत्रफल में फैले 145 फुट ऊंचे सात मंजिला विधानसभा भवन के सभाकक्ष में 260 सदस्यों के बैठने की क्षमता है। परिसर की तीन मंजिले पूरी तरह वातानुकूलित हैं। इस नए विधानसभा परिसर का निर्माण नवम्बर 1994 में शुरू हुआ था, जो 2001 में बनकर तैयार हुआ। बताया जाता है कि निर्माण कार्य के दौरान करीब आधा दर्जन मजदूरों की भी विभिन्न कारणों से मौत हो गई थी।

कितना अजीब इत्तेफाक रहा कि तत्कालीन राष्ट्रपति के आर नारायणन को 25 फरवरी 2001 को नई विधानसभा का उद्घाटन करना था किन्तु अचानक वे बीमार हो गए और बगैर उद्घाटन के ही 11वीं विधानसभा नए परिसर में शुरू कर दी गई। उसी वर्ष कांग्रेस सरकार में कैबिनेट मंत्री भीखा भाई की मौत हो गई और फिर अजमेर से विधायक किशन मोटवानी तथा भीमसेन चौधरी का भी देहांत हो गया। 2003 में तत्कालीन कैबिनेट मंत्री राम सिंह बिश्नोई दुनिया छोड़कर चले गए। 12वीं विधानसभा में 25 मई 2004 को भाजपा विधायक भंवर सिंह द्वारा इस्तीफा दिए जाने के बाद सदस्यों की संख्या 199 रह गई। उपचुनाव होने के बाद विधायकों की संख्या फिर से 200 हो गई मगर 22 अक्तूबर 2004 को लूनी से कांग्रेस विधायक राम सिंह बिश्नोई की मौत के पश्चात् फिर से यह संख्या एक कम होकर 199 रह गई। उपचुनाव के बाद 28 जनवरी 2005 को लूनी से जोगाराम पटेल चुन लिए गए। उसी वर्ष एक विधायक अरूण सिंह की मृत्यु हो गई और आंकड़ा फिर गड़बड़ा गया।

हालांकि 13वीं विधानसभा में ऐसा कुछ नहीं हुआ किन्तु 2011 में कांग्रेस सरकार में कैबिनेट मंत्री महिपाल मदेरणा और विधायक मलखान सिंह को चर्चित भंवरी देवी हत्या प्रकरण में जेल जाना पड़ा। उसी साल भाजपा के एक विधायक राजेन्द्र राठौड़ को भी एक एनकाउंटर मामले में जेल जाना पड़ा। 2013 में कांग्रेस विधायक बाबूलाल नागर तथा अप्रैल 2017 में बसपा विधायक बी एल कुशवाहा को जेल जाना पड़ा जबकि सितम्बर 2017 में भाजपा विधायक कीर्ति कुमारी की स्वाइन फ्लू से तथा फरवरी 2018 में भाजपा विधायक कल्याण सिंह की कैंसर से मौत के बाद से विधायकों में भय का माहौल व्याप्त है। 2018 में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले रामगढ़ से बसपा प्रत्याशी लक्ष्मण सिंह के निधन के बाद उस सीट पर चुनाव स्थगित हो गए थे और इस प्रकार दिसम्बर 2018 में नई विधानसभा का आगाज 200 के बजाय केवल 199 विधायकों से हुआ। हालांकि पिछले दिनों हुए उपचुनाव के बाद इस सीट को भरा जा चुका है लेकिन विधानसभा के कुछ सदस्यों को हमेशा यह डर सताता रहता है कि कहीं किसी विधायक के साथ कोई अनहोनी न हो जाए। (संवाद)