दरअसल शपथ ग्रहण के करीब नौ दिन बाद ही जिस प्रकार मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत द्वारा नए उपमुख्यमंत्री बनाए गए सुदिन धवलीकर को बर्खास्त करने का कठोर निर्णय लेना पड़ा, उससे स्पष्ट हो गया है कि सरकार का संकट अभी टला नहीं है। उनकी बर्खास्तगी से पहले पासा फैंकते हुए भाजपा द्वारा उनकी पार्टी के शेष दोनों विधायकों को भाजपा में शामिल करा लिया गया। मुख्यमंत्री का कहना है कि धवलीकर गठबंधन सरकार में होने के बावजूद सरकार विरोधी गतिविधियों में लिप्त थे, जिनके भाई दीपक धवलीकर शिरोडा से विधानसभा उपचुनाव लड़ रहे हैं, जो बार-बार आग्रह के बाद भी नाम वापस लेने के लिए तैयार नहीं हुए, इसीलिए सुदिन धवलीकर को बर्खास्त करने का फैसला लिया गया। 26 मार्च को आधी रात के समय भाजपा में शामिल हुए एमजीपी के दो विधायकों में से एक दीपक पावसरकर, जो पहली बार दक्षिण गोवा जिले के सैनवोरडेम से विधायक बने थे, धवलीकर की जगह कैबिनेट मंत्री बनेंगे। हालांकि जिस प्रकार एमजीपी के दो विधायकों को भाजपा में शामिल करा लिया गया, उससे सरकार को समर्थन दे रहे दूसरे सहयोगी दल गोवा फारवर्ड पार्टी (जीएफपी) में भी चिंता का माहौल व्याप्त हो गया है। जीएफपी अध्यक्ष तथा उपमुख्यमंत्री विजय सरदेसाई ने कहा भी है कि अगर दलबदल जारी रहा तो हम सहानुभूति खो देंगे, जिससे सहयोगी दलों में संदेह पैदा होगा और भविष्य में ऐसी घटनाओं से लोगों की सद्भावना कम हो जाएगी।
कुल 40 सदस्यीय गोवा विधानसभा में पर्रिकर के निधन के बाद 36 विधायक बचे हैं। अक्तूबर 2018 में कांग्रेस के दो विधायकों ने इस्तीफा देकर भाजपा का दामन थाम लिया था जबकि पूर्व उपमुख्यमंत्री तथा भाजपा विधायक फ्रांसिस डिसूजा का निधन हो गया था और पर्रिकर के निधन के बाद सदस्यों की संख्या घटकर 36 रह गई है। ऐसे में पार्टी को बहुमत के लिए 19 के आंकड़े की जरूरत थी लेकिन जिस प्रकार कांग्रेस-एनसीपी के 15 मतों के मुकाबले भाजपा को 20 मत मिले, उससे एक बार भले ही उसका संकट टल गया है किन्तु आने वाले दिनों में उसकी चुनौतियां बढ़ने वाली हैं। भाजपा के पास अपने कुल 12 विधायक थे, जिनमें स्पीकर मतदान में हिस्सा नहीं ले सकते। पार्टी को सरकार बनाने के लिए गोवा फाॅरवर्ड पार्टी (जीएफपी) के तीन विधायकों, महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी (एमजीपी) के तीन तथा तीन निर्दलीय विधायकों के समर्थन की सख्त जरूरत थी और इसीलिए भाजपा को दोनों सहयोगी पार्टियों के प्रमुखों को उपमुख्यमंत्री बनाने पर विवश होना पड़ा। सरकार बनाने के एवज में इस छोटे से राज्य को दो-दो उपमुख्यमंत्री तथा सहयोगी दलों के कुछ विधायकों को मंत्रीपद देने पड़े लेकिन अब एक उपमुख्यमंत्री को बर्खास्त कर उसकी पार्टी के दो विधायकों को भाजपा में शामिल कराने के बाद भाजपा विधायकों की संख्या 14 हो गई है और सिर्फ 36 सदस्यीय गोवा विधानसभा में मंत्रिपरिषद में कुल 12 मंत्री हो गए हैं।
पर्रिकर के निधन के पश्चात् राज्य में राजनीतिक अस्थिरता का दौर शुरू होने की आशंकाएं बलवती होने लगी थी क्योंकि एक ओर जहां पार्टी के भीतर ही नेतृत्व को लेकर गंभीर सवाल उठ रहे थे, वहीं कुछ सहयोगी दल ऐसे थे, जो विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के सबसे बड़ी पार्टी के रूप में सामने आने के बाद भी केवल पर्रिकर के नाम पर ही भाजपा को सरकार बनाने के लिए समर्थन देने आगे आए थे। हालांकि पर्रिकर के निधन के बाद एमजीपी के सुदिन धवलीकर मुख्यमंत्री पद की दौड़ में शामिल हुए थे किन्तु बताया जाता है कि भाजपा मुख्यमंत्री की कुर्सी किसी छोटे दल को सौंपने को किसी भी कीमत पर तैयार नहीं हुई और धवलीकर तथा जीएफपी के विजय सरदेसाई दोनों को मनाकर उन्हें उपमुख्यमंत्री बनाकर अपनी सरकार बचाने में सफल रही लेकिन धवलीकर की उपमुख्यमंत्री पद से बर्खास्तगी के जरिये भाजपा ने एक प्रकार से मुख्यमंत्री पद की दावेदारी को लेकर भावी चुनौती खत्म करने की भी कोशिश की है। तीन खाली हुई विधानसभा सीटों पर 23 अप्रैल को उपचुनाव होगा, जिसके नतीजे 23 मई को आएंगे। ये नतीजे भी गोवा की राजनीतिक स्थिरता का फैसला करने में अहम भूमिका निभाएंगे।
प्रमोद सावंत को मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा भले ही गोवा में अपनी सरकार बनाने में सफल हुई है लेकिन सही मायनों में सावंत को चुनौतियों के नए दौर में मुख्यमंत्री पद के रूप में कांटों भरा ऐसा ताज मिला है, जिसे संजोकर रखना उनके लिए इतना सहज नहीं होगा। 2017 के चुनाव में कांग्रेस को 17 सीटें मिली थी जबकि भाजपा सिर्फ 13 सीटें ही जीत सकी थी लेकिन अगर वह उसके बावजूद राज्य में अपनी सरकार बनाने में सफल हुई थी तो यह सब मनोहर पर्रिकर की शख्सियत की बदौलत ही था क्योंकि उन्हीं के नाम पर क्षेत्रीय दल भाजपा को समर्थन देने को सहमत हुए थे और इसके लिए देश के रक्षामंत्री पद से मुक्त कर पर्रिकर को गोवा का मुख्यमंत्री बनाना पड़ा था। हालांकि सावंत भी पर्रिकर की ही भांति आम आदमी की छवि वाले शिक्षित और विनम्र शख्स माने जाते रहे हैं। पर्रिकर ही उन्हें राजनीति में लाए थे और उन्होंने ही सावंत को गोवा विधानसभा का अध्यक्ष बनाया था। कुल 12 लाख की आबादी वाले गोवा राज्य की राजनीति को ध्यान से देखें तो गोवा विधानसभा अस्थिरता का रिकाॅर्ड स्थापित करती रही है और ऐसे में मुख्यमंत्री पद पर नजरें गड़ाये सहयोगी दलों को साथ लेकर संतुलन बनाए रखना सावंत के लिए इतना आसान नहीं होगा।
दो बार विधायक बन चुके सावंत कभी आयुर्वेद चिकित्सक के रूप में कार्य किया करते थे और करीब 11 साल पहले ही सक्रिय राजनीति में आए थे। उन्हें पर्रिकर की ही बदौलत देश के सबसे कम उम्र के विधानसभाध्यक्ष बनने का गौरव हासिल हुआ था लेकिन इस तथ्य को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि सहयोगी दलों के जिन दो दिग्गजों को भाजपा की सरकार बनाने के एवज में उपमुख्यमंत्री पद का लालच देकर समर्थन लिया गया, वे राजनीतिक अनुभव के मामले में सावंत से बहुत आगे हैं। ऐसे में छोटी-मोटी खट-पट के चलते ही मौजूदा सरकार के अस्तित्व पर खतरा मंडराने की संभावनाएं हर कदम पर पहले से ही बरकरार थी और इसी परिप्रेक्ष्य में धवलीकर की बर्खास्तगी को देखा जा सकता है। यह तथ्य भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि गोवा वह राज्य है, जो अपनी राजनीतिक अस्थिरता के लिए कुख्यात रहा है।
फिलहाल स्थिति यही है कि एक सहयोगी दल को भाजपा द्वारा दलबदल के सहारे भले ही एक प्रकार से खत्म कर दिया गया हो किन्तु जिन परिस्थितियों में सावंत के नेतृत्व में दूसरा दल भाजपा सरकार को अपना समर्थन दे रहा है, वह अपनी हर प्रकार की मांगें मनवाने के लिए कदम-कदम पर दबाव की राजनीति का इस्तेमाल करेगा और ऐसे में स्पष्ट है कि सावंत की राह में कांटे ही कांटे बिछे हैं, जिस पर उन्हें हर कदम संभालकर रखना होगा। इन हालातों में उपमुख्यमंत्रियों तथा सहयोगी मंत्रियों पर नजर रखते हुए गोवा को विकास के पथ पर अग्रसर रखने के लिए अपनी शर्तों पर फैसले लेना उनके लिए संभव नहीं होगा। हालांकि गोवा में दलबदल के हालिया घटनाक्रम के बाद उस दल में बेचैनी का माहौल व्याप्त है। बहरहाल, अब यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार के भीतर और बाहर उत्पन्न होने वाली तमाम चुनौतियों से सावंत किस प्रकार निपटेंगे और पर्रिकर की बीमारी के दौरान बेलगाम हुई नौकरशाही की लगाम कसने में किस हद तक सफल होंगे। राज्य की 38 फीसदी ईसाई अल्पसंख्यक आबादी को साथ लेकर चलना, खनन माफियाओं पर नियंत्रण करना और कैसिनो जैसे अवरोधों से पार पाना भी सावंत के लिए बड़ी चुनौती साबित होगा। (संवाद)
गोवा में चुनौतियों का नया दौर
प्रमोद सावंत को मिला है कांटों का ताज
योगेश कुमार गोयल - 2019-03-28 08:57
गोवा में मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर के निधन के चंद घंटों बाद रातों-रात तत्कालीन विधानसभाध्यक्ष प्रमोद सावंत को मुख्यमंत्री बनाया गया और विधानसभा में बहुमत भी साबित कर दिया गया, उससे भाजपा ने गोवा में नेतृत्व को लेकर मंडराता संकट तो सुलझा लिया लेकिन गोवा के मौजूदा घटनाक्रम को देखें तो राज्य में पार्टी के लिए चुनौतियों तो अभी शुरू हुई है।