जाहिर है, इस पर विवाद समाप्त हो जाना चाहिए था, क्योंकि निर्वाचन आयोग ने साबित कर दिया है कि मशीनों द्वारा की गई मतगणना पर कोई सदेह नहीं किया जा सकता और आयोग आगे भी इसी प्रणाली का अपना कर चुनावी मशीनो ंकी गणना को सत्यापित करता रहना चाहता है। लेकिन विपक्षी पार्टियां चाहती हैं कि 50 फीसदी बूथों की पर्चियों की गणना की जाय। निर्वाचन आयोग द्वारा अपनी यह मांग ठुकराए जाने के बाद वे इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में ले गए हैं। वहां भी निर्चाचन आयोग अपनी जिद पर अड़ा हुआ है कि वह एक विधानसभा क्षेत्र के एक ही बूथ की पर्चियों की गिनती कर उसके आंकड़ों से उस बूथ के मशीनों से निकले आंकड़े का मिलान करेगा, क्योंकि इतना करने मात्र से ईवीएम के बारे में किया गया संदेह समाप्त हो जाता ळें

अभी देश में लोकसभा के चुनाव हो रहे हैं। आयोग कह रहा है कि लोकसभा क्षेत्र में पड़ने वाले सभी विधानसभाओं के एक एक बूथों की वीवीपीएटी पर्चियां गिनने की उसकी योजना है। वह 50 फीसदी बूथों की पर्चियों को गिनने से इसलिए इनकार कर रहा है कि ऐसा करने से चुनावी नतीजे निकलने मे ज्यादा समय लग जाएगा। आगामी 23 मई को लोकसभा के चुनावी नतीजे आने है। आयोग कह रहा है कि यदि 50 फीसदी बूथों की पर्चियों को गिनना पड़े तो नतीजे घोषित करने में कम से कम 5 दिन और लग जाएंगे यानी 28 मई के पहले सारे चुनावी नतीजे नहीं आ पाएंगे।

ईवीएम के पहले मतदान बैलट पेपर से हुआ करते थे और सभी मतपत्रों की गिनती की जाती थी। उन सारे मतपत्रों की गिनती में भी 5 दिन नहीं लगते थे। इसलिए निर्वाचन आयोग के इस दावे मे दम नहीं कि 50 फीसदी बूथों की पर्चियां गिनने में 5 दिल लगेंगे। हां, इतना कहा जा सकता है कि दो या तीन दिन जरूर लगेंगे। यह भी सच है कि पर्चियों की गिनती के लिए ज्यादा स्टाॅफ की जरूरत पड़ेगी और उस पर ज्यादा खर्च आएगा। स्टाॅफ ही नहीं, सुरक्षा कर्मियों का भी ज्यादा समय तक मतगणना केन्द्रों की सुरक्षा के लिए मुस्तैद रखना पड़ेगा। मतदान केन्द्रों के आस पास तनाव की अवधि भी ज्यादा बढ़ जाएगी और उसके कारण अनेक जगहों पर कानून व्यवस्था की समस्या भी पैदा हो सकती है। और यह सब कर हासिल क्या किया जाएगा? शायद कुछ भी नहीं, क्योंकि लाॅटरी द्वारा जब बूथ की पहचान की जाती है, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि किसी भी बूथ की पर्ची गिनी जा सकती है और उसके द्वारा मशीनों पर किए जा रहे संदेह समाप्त हो सकते हैं।

लेकिन ईवीएम मशीनों के विरोधी एक बूथ की गिनती से संतुष्ट नहीं हैं। कुछ लोग तो यह भी प्रस्ताव कर रहे थे कि सारे बूथों की वीवीपीएटी पर्चियों की गिनती की जाय आय उसकी गणना के बाद जो नतीजे आते हैं, उन्हें जारी किए जाएं ।तो सवाल उठता है कि जब सारी पािर्चयों की ही गणना की जानी है, तो फिर मशीनों से गणना की जरूरत ही क्यों? मशीनों का इस्तेमाल सिर्फ वोटिंग के लिए किया जाय और मशीन खुद वोटिंग को दर्ज ही नहीं करे, क्योंकि वीवीपीएटी पर्चियों के रूप में वोटिंग दर्ज तो हो ही रहा है।

इस तरह के प्रस्ताव रखने वाले निश्चय ही अतिसंशयवादी हैं। हमारे सामने असली मुद्दा संशय को दूर करना है और यदि एक ही बूथ से संशय दूर हो जाता है, तो फिर सारे या 50 फीसदी बूथों की पर्चियों को गिनने की क्या जरूरत? जाहिर है, निर्वाचन आयोग का कहना गलत नहीं है। मतदान कराना और उसके नतीजे निकालना उसकी जिम्मेदारी है और उसकी जिम्मेदारी यह भी है कि उसके द्वारा जारी किए गए नतीजों पर उंगली उठने की गुंजायश नहीं रहे। इसलिए अपनी जगह पर ठीक रहने के बावजूद आयोग को थोड़ा चलीला रुख अपनाना चाहिए और उन बूथों की संख्या अपनी तरफ से ही बढा देनी चाहिए, जिनकी वीवीपीएटी पर्चियों की गिनती होनी है।

एक विधानसभा क्षेत्र में औसतन 250 से 300 बूथ होते हैं। इतने में एक बूथ की पर्ची की गिनती इस समय आयोग करता है। संशयवादियों का संशय दूर करने के लिए आयोग को चाहिए कि वह 50 बूथों में से एक किसी एक बूथ की पहचान पर्चियों की गिनती के लिए लाॅटरी के द्वारा करे और उसकी गिनती कर मिलान कर दे। इतना कर देने से भी संशयवादियों को संतुष्ट किया जा सकता है। इस पद्धति के द्वारा यदि मिलान की दर सौ फीसदी पाई जाती है, तो फिर संशयवादियों के इरादे पर ही लोग संशय करने लगेंगे। हां, यदि इस मिलान के क्रम में मशीन और पर्चियों के आंकड़े अलग अलग आने लगें, तब बात दूसरी होगी। तब तो शत प्रतिशत बूथों की पर्चियों की गणना की मांग में भी दम दिखाई पड़ेगा। लेकिन जबतक शतप्रतिशत मिलान होता रहता है, तब तक ज्यादा बूथों की पर्चियां गिनने की जरूरत नहीं। प्रत्येक 50 बूथों में से किसी एक बूथ की पर्चियों की गिनती काफी है। जाहिर है, बीच का रास्ता निकालना उचित रहेगा। (संवाद)