दिनांक 18 फरवरी 2007 को पानीपत के पास स्थित दिवाना नामक स्थान पर समझौता एक्सप्रेस में विस्फोट हुआ था जिसमें 68 लोग मारे गए थे। दिनांक 20 फरवरी को इसकी जांच के लिए एक विषेष टीम गठित की गई थी। तीन वर्ष बाद राष्ट्रीय जांच अभिकरण (एनआईए) ने इसकी जांच अपने हाथ में ली थी। इसके एक वर्ष बाद पंचकुला की अदालत मेें आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया। मार्च 2011 से मार्च 2019 तक न्यायालय में प्रकरण की सुनवाई हुई। मार्च 2011 में ही पाकिस्तान की एक महिला, जिसके पिता विस्फोट में मारे गए थे, ने यह मांग की कि पाकिस्तान के गवाहों को भी सुना जाए। इसपर अदालत ने एनआईए की राय मांगी। एनआईए ने अदालत को बताया कि उसने भारतीय उच्चायोग के माध्यम से 11 पाकिस्तानी नागरिकों को गवाही देने का नोटिस दिया था परंतु वहंा से किसी भी प्रकार की सूचना नहीं मिली। जहां तक इस महिला का सवाल है, उसका नाम गवाहों की सूची में है ही नहीं।
जिनके परिवारजन इस विस्फोट में मारे गए वे यह सवाल उठा रहे हैं कि इन मौतों के लिए कौन जिम्मेदार है? इस प्रश्न का उत्तर देते हुए एक सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी ने यह आरोप लगाया है कि इस पूरे मामले में एनआईए ने गंभीर लापरवाही बरती है। यदि आरोपी दोषमुक्त हुए हैं तो उसकी पूरी जिम्मेदारी एनआईए की है। जिस दिन पंचकुला की अदालत ने फैसला सुनाया उसी दिन अपनी प्रतिक्रिया को सार्वजनिक करते हुए विकास नारायण राय ने कहा कि इसकी जिम्मेदारी एनआईए को लेनी पडे़गी। राय वरिष्ठ पुलिस अधिकारी रहे और एक समय हरियाणा के पुलिस महानिदेशक के रह चुके हैं। राय ने कहा कि इस मामले में एनआईए की मिलीभगत स्पष्ट नजर आ रही है। यहां यह उल्लेखनीय है कि राय कुछ समय तक इस प्रकरण की जांच करने वाले विशेष जांच दल के प्रमुख थे और उनकी टीम ने उस बैग को ढूढ़ निकाला था जिसका उपयोग विस्फोट में किया गया था। राय की टीम को यह बैग मध्यप्रदेश के इंदौर शहर में मिला था।
आरोपियों का दोषमुक्त होना तो अवश्यंभावी था क्योंकि एनआईए प्रारंभ से पूरे मामले को दबाना चाहती थी। इंडियन एक्सप्रेस से टेलीफोन पर बात करते हुए राय ने कहा कि समझौता एक्सप्रेस मामले के पहले एनआईए ने इसी तरह की लापरवाही अजमेर शरीफ और हैदराबाद की मक्का मस्जिद तथा मालेगांव की घटनाआंे के मामलों मंे भी की थीं। ये सभी घटनाएं एक दूसरे से जुड़ीं थीं और उन्हीं लोगों ने कीं थीं जिनका समझौता एक्सप्रेस की घटना में हाथ था।
राय ने याद दिलाया कि मालेगांव घटना की प्रमुख अभियोजन अधिकारी ने सार्वजनिक रूप से कहा था उस पर दबाव डाला गया था कि वह मालेगांव मामले में साफ्ट रवैया अपनाए। राय ने अभियोजन अधिकारी रोहिनी सेलियन के सन् 2015 में इंडियन एक्सप्रेस को दिए गए इंटरव्यू का उल्लेख किया। इस इंटरव्यू में रोहिणी ने बताया था कि उनसे लगातार यह कहा जा रहा था कि वे इस मामले में ज्यादा दिलचस्पी न लें। अंततः उन्हें मालेगांव मामले की अभियोजन टीम से हटा दिया गया। बाद में अत्यधिक आधी-अधूरी चार्जशीट दाखिल की गई और अंततः सभी आरोप वापिस ले लिए गए। क्या एनआईए से यह नहीं पूछा जाना चाहिए कि क्यों इन सभी मामलों में आरोपी दोषमुक्त हो गए? क्या एनआईए इनके दोषमुक्त होने की जिम्मेदारी से बच सकता है? एनआईए ने जो भी सबूत एकत्र किए और गवाहों के जो भी बयान लिए उनका समर्थन अदालत में नहीं किया। यदि एनआईए के पास कुछ और सबूत थे तो उसे उन्हें अदालत में पेश करना था। मैं नहीं समझता कि एनआईए ने ऐसा किया। इससे यह संदेह होता है कि एजेंसी व आरोपियोें की मिलीभगत थी। स्पष्ट है एजेंसी ने अत्यंत लापरवाही से जांच की। यदि आप निचली अदालत के निर्णय के विरूद्ध अपील नहीं कर रहे हैं तो इसका अर्थ यह है कि आप अपनी जांच के नतीजों के संबंध में आश्वस्त नहीं हैं। यदि आप जांच के नतीजों से संतुष्ट नहीं थे तो आपको पूरक आरोपपत्र दाखिल करना था। आरोपियों को सजा दिलवाने की जिम्मेदारी जांच एजेंसी की होती है। अदालत में मामला वर्षों तक चला। इस दौरान एजेंसी के रवैये में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं हुआ। एजेंसी अभी भी मानती है कि जिन्हें गिरफ्तार किया गया था वे ही आरोपी हैं।
अदालत के निर्णय के बाद इंडियन एक्सप्रेस के संवाददाता ने विस्फोट से प्रभावित लोगों से बात की। जिन लोगों से उसने बात की उनमें एक ऐसा दंपत्ति भी था जिसके पाच बच्चे इस विस्फोट में मारे गए थे।
इस दंपत्ति ने बताया कि उनसे मुकदमे में गवाही देने के लिए कतई नहीं कहा गया। इसी तरह की शिकायतें अन्य प्रभावित लोगों ने भी कीं थीं। अदालत ने जिन लोगांे को दोषमुक्त घोषित किया है उनमें स्वामी असीमानंद भी शामिल हैं जो एक कट्टर संघी कार्यकर्ता हैं।
एक प्रत्यक्षदर्षी ने बताया कि ट्रेन में दो व्यक्ति मेरे सामने बैठे थे। जब पुलिस वालों ने उनसे पूछा कि वे कहां जा रहे हैं तो उन्होंने बताया कि वे अहमदाबाद जा रहे हैं। इस पर पुलिस वालों ने उनसे कहा कि यह ट्रेन तो लाहौर जा रही है। वे दोनों लोग विस्फोट के दस-पन्द्रह मिनट पहले ट्रेन से उतर गए थे। विस्फोट के बाद मैंने कहा कि मैं उन्हें पहचान सकता हूं परंतु मेरी किसी ने नहीं सुनी। इस बात से यह सिद्ध होता है कि जांच एजेंसी ने प्राप्त सबूतों एवं गवाहों की जानबूझकर अनदेखी की।
बाद में विस्तृत फैसला पढ़ने पर यह पता लगाकि स्वयं न्यायाधीश ने एनआईए की जोरदार शब्दों में खिंचाई की है। विस्तृत निर्णय गुरूवार को मीडिया को उपलब्ध करवाया गया। विशेष न्यायालय के न्यायाधीश ने अपने निर्णय में कहा है कि जांच में एक नहीं सैकड़ों गलतियां की गईं हैं। इन्हीं गलतियों और कमियों के चलते आरोपी दोषमुक्त हुए।
आरोपियों की पहचान के लिए पहचान परेड तक नहीं कराई गई। न ही उस बैग की विस्तृत जांच की गई जिसमें रखकर विस्फोटक पदार्थ ले जाया गया था। जो सबूत मिले थे उन्हें भी सावधानी से नहीं रखा गया। अभियोजन की ओर से न तो ऐसे मौखिक और ना ही दस्तावेजी सबूत पेश किए गए जिनसे यह सिद्ध हो पाता कि विस्फोट करने वालो का असली इरादा क्या था। कुल मिलाकर मामले में या तो पूरी तरह लापरवाही और ढिलाई बरती गई या फिर आरोपी दोषमुक्त हो सके इस इरादे से जानबूझकर ऐसा किया गया। (संवाद)
समझौता पर फैसलाः उठ रहे हैं अनेक सवाल
एल एस हरदेनिया - 2019-04-02 11:53
समझौता एक्सप्रेस में हुए विस्फोट में 68 लोग मारे गए थे। परंतु इस अपराध के लिए जिन आरोपियों पर मुकदमा चलाया गया था उन्हें अदालत ने निर्दोष पाया। अदालत के फैसले के बाद अनेक प्रश्न उठ रहे हैं।