श्री शर्मा ने मामले की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए तुरंत स्थानीय लोगों से सम्पर्क साधा और इस घटना पर जानकारी हासिल की। उन्होंने बताया कि क्षेत्र के डीएफओ (वन्य प्राणी) को इसके हर पहलू की जांच करने को कहा गया है।
इनकी सामूहिक मौत आखिर क्यों हुई, इसकी सही-सही जानकारी तो पोस्टमार्टम के बाद ही मिल पायेगी, लेकिन इस बीच सिर्फ अटकलें ही लगायी जा सकती हैं। मसलन, सामूहिक रूप से इन्होंने कोई जहरीला पदार्थ खा लिया होगा ये अचानक किसी बीमारी से ग्रस्त हो गये होंगे, सड़ी-गली और विषैले जीवाणुओं वाले खाद्य पदार्थ इनके आहार बने होंगे आदि।
चाहे कारण जो हो, यह स्थिति अत्यन्त खतरनाक है। न सिर्फ वन्य प्राणियों के लिये बल्कि मानव जीवन के लिये भी। ध्यान रहे कि बर्ड फ्लू का संकट भारत समेत दुनिया के अनेक देशों पर छाया हुआ है। यदि इनकी मौत संक्रामक जानलेवा बीमारी से हुई है और यह अन्य पक्षियों में भी फैलने लगी तो विनाश लीला की मात्र कल्पना ही की जा सकती है।
यदि मांसाहार से इनकी मौत हुई है तो जाहिर है कि अन्य पशुओं में विषाणु या जीवाणु हो सकते हैं। यदि पशु जगत में ऐसी स्थिति फैली तो भी अकल्पनीय विनाश की चपेट में अनेक मौतें हो सकती हैं।
कारणों का सही-सही पता लगाना और भी महत्वपूर्ण इसलिये भी है क्योंकि कौवों को सड़ी-गली चीजों से इंफेक्शन आसानी से नहीं होता और वे ऐसी ही चीजें खाकर जीवित रहते हैं। उनकी सामूहिक मौत इस बात का संकेत है कि वे भी इन विषाणुओं-जीवाणुओं को नहीं पचा पाये और मौत के मुंह में समा गये। जब इनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी काम न आयी तो मानव समेत अन्य अधिकांश प्राणी बड़ी आसानी से इसके शिकार हो सकते हैं।
गिद्ध और कौवों की सामूहिक मौत की यह घटना कोई सामान्य घटना नहीं है। गिद्धो और कौवों पर संकट से समस्त जीवधारियों जिसमें मानव भी शामिल हैं, पर संकट आसकता है, जिस तथ्य से हमारे पूर्वज भी वाकिफ थे। इसलिये कई धर्मों में इनकी रक्षा को अनुष्ठान का रूप दिया गया। गिद्ध और पारसी धर्म में संबंध जग जाहिर है। सनातन धर्म के उपनिषदों में इनकी चर्चा है।
जहां तक कौंवों का सवाल है, इनकी महत्व तो हिन्दुओं को मालूम ही है जिसके तहत मान्यता यह है कि इन्हें भोजन कराने से यमराज और नरक का भय नहीं रह जाता, न सिर्फ स्वयं के लिये बल्कि पितरो के लिये भी। इसी मान्यता के कारण श्राद्ध के समय कौवों को भोजन कराने की परम्परा है।
कौवों को इतना महत्व इसलिये दिया गया कि यदि कौवे अपना आस्तत्व नहीं बचा सके तो संभव है अन्य अधिकांश जीवनधारियों का आस्तत्व संभव नहीं हो पायेगा।
विदित हो कि गत गुरुवार की रात और शुक्रवार की सुबह वृंदावन कालोनी के पास भारम पहाड़ से सटी वृक्षावालियों में बड़ी संख्या में चील-कौवे मृत पाये गये थे।
भारत
चील-कौवों की सामूहिक मौत की जांच का आदेश, नये संकट का अंदेशा
ज्ञान पाठक - 2010-03-14 03:14
रांची। यहाँ झारखण्ड की राजधानी वाले शहर की चिरौंदी नामक स्थान के निकट वृन्दावन कालोनी से सटे भारम पहाड़ के पास कल सुबह चील और गिद्ध के साथ कौंवों की हुई सामूहिक मौत पर झारखंड के प्रधान मुख्य वन संरक्षक श्री ए.के. सिंह ने मुख्य वन संरक्षक (वन्य प्राणी) एस.के शर्मा को जांच का आदेश दिया है।