लेकिन 35 साल की एक महिला ने न्याय के मंदिर के प्रधान पुजारी पर ही अपने परिवार को बर्बाद करने का आरोप लगाया है। उसने यह भी कहा है कि उसके साथ यौन हिंसा हुई। यौन हिंसा का मामला भले ज्यादा सनसनीखेज हो, लेकिन वह आरोप उतना बड़ा नहीं है, जितना बड़ा आरोप उस महिला के परिवार के सदस्यों को एक एक कर प्रताड़ित करने का है और दाने दाने को मुहताज करने की स्थिति पैदा करने का है।
वह महिला मूल रूप से राजस्थान की है। वह सुप्रीम कोर्ट में कार्यरत थी लोअर डिविजन क्लर्क के रूप में। उसका पति दिल्ली पुलिस में है। पति का बड़ा और छोटा भाई भी पुलिस में ही है। पति के एक और छोटे भाई को उस महिला ने प्रधान न्यायाधीश से पैरवी सिफारिश कर सुप्रीम कोर्ट में ही नौकरी लगवा रखी थी। उसका वह देवर विकलांग है और प्रधान न्यायाधीश गोगोई ने ही अपने विवेकाधिकार का इस्तेमाल कर उसने सुप्रीम कोर्ट में नौकरी लगवा दी थी।
लेकिन पुलिस और सुप्रीम कोर्ट में नौकरी कर रहे इस परिवार पर आफत का पहाड़ टूट पड़ा। महिला को नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया। सुप्रीम कोर्ट की नौकरी में प्रोबेशन पर काम कर रहे उसके देवर को भी नौकरी से निकाल दिया गया। महिला के पति को निलंबित कर दिया गया। उसके देवर को भी पुलिस से निलंबित कर दिया गया। उसके ज्येठ (पति के बड़े भाई) को पनिसमेंट पोस्टिंग दे दी गई। शायद उसे भी निलंबित कर दिया जाता, पर उसके पहले ही महिला ने सुप्रीम कोर्ट के लगभग दो दर्जन जजों से गुहार लगाते हुए अपने और अपने परिवार की सुरक्षा की मांग कर दी और उसके बाद भारतीय न्यायपालिका के सामने एक ऐसा संकट खड़ा हो गया है, जैसा पहले कभी खड़ा नहीं हुआ था।
प्रधान न्यायाधीश जस्टिस गोगोई न्यायपालिका को खतरे में बता रहे हैं। यह खतरा तो वास्तविक है, इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती, लेकिन खतरा किधर से है? उनका कहना है कि कुछ बेहद पावरफुल शक्तियां न्यायपालिका को कमजोर करने में लगी हुई हैं। जस्टिस गोगोई ने अपने ऊपर लगाए गए तमाम आरोप को गलत बताया है। हो सकता है कि वे सच बोल रहे हों, लेकिन महिला और उसके परिवार के साथ जो अन्याय हुआ है, वह भी तो गलत नहीं लगता। महिला के साथ यौन हिंसा हुई या नहीं, यह कहना तो बहुत ही कठिन है, क्योंकि लोग अपना केस मजबूत करने के लिए गलत बयानी का सहारा भी लेते हैं, लेकिन यह तो सच है कि उस महिला को सुप्रीम कोर्ट की नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया और वह भी उसे स्पष्टीकरण का उचित मौका दिए बिना। कोर्ट में बरसों मामले घिसटते हैं और उसके पीछे सबसे बड़ा तर्क दिया जाता है कि आरोपित को अपनी सफाई का पूरा मौका दिए बिना अदालत फैसला नहीं कर सकती, लेकिन सुप्रीम कोर्ट अपने स्टाफ को अपनी बात रखने का मौका दिए बिना ही नौकरी से बर्खास्त कर देता है, तो हम क्या कहें कि उस महिला के साथ न्याय हुआ या अन्याय?
क्या यह महज संयोग की बात थी कि एक ही परिवार के पांच सदस्यों में से दो को नौकरी से बर्खास्त, दो को निलंबित हो एक को पनिसमेंट पोस्टिंग दे दिया जाता है और वह भी कुछ दिनों के ही अंतराल में? यह तभी संभव है, जब कोई बहुत ही ताकतवर व्यक्ति या संस्था उस परिवार के पीछे अपनी पूरी ताकत से लगा हुआ हो। उस महिला का आरोप है कि वह ताकतवर व्यक्ति प्रधान न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई हैं। जस्टिस गोगाई इससे न केवल इनकार करते हैं, बल्कि वह भी एक बेहद ताकतवर व्यक्ति, समूह या संस्था की ओर इशारा करते हुए कहते हैं कि वह न्यायपालिका को कमजोर करना चाहता है।
जस्टिस गोगोई इशारों में बता रहे हैं, जबकि वह महिला साफ साफ जस्टिस गोगाई का नाम ले रही है। महिला के खिलाफ यौन हिंसा हुई या नहीं, इसका पता शायद कभी नहीं चले, लेकिन किन परिस्थितियों वे वह बर्खास्तगी हुई और निलंबन हुए, इसका पता तो चल ही सकता है। महिला ने यह भी आरोप लगाया है कि जस्टिस गोगाई की पत्नी ने उसे जमीन पर लिटाकर अपने पैर में उसकी नाक रगड़बाई थी। अपनी नौकरी बचाने के लिए उस महिला ने वह भी कर डाला था। लेकिन उसके बाद उसके और उसके परिवार के सदस्यों पर एक के बाद एक नौकरी गंवाने के संकट आने लगे।
जांच से ही पता चलेगा कि उसके पीछे कौन लोग थे। क्या महिला के परिवार के लोगों की नौकरियां लेने वाले लोग वे हैं, जिनकी ओर जस्टिस गोगाई इशारा कर रहे हैं? वे लोग जस्टिस गोगाई के खिलाफ भूमिका दिसंबर के महीने से ही तैयार कर रहे थे, ताकि उन पर ऐन मौके पर हमला किया जा सके? इस सवालों के जवाब आने जरूरी हैं।
पर सवाल उठता है कि जांच करेगा कौन और करवाएगा कौन? सत्ता में बैठे लोग एक सुर से उस महिला को गलत बता रहे हैं, जबकि सच्चाई यह है कि उसके परिवार के पांच लोगों की नौकरियों पर चंद दिनों के अंतर ही आंच आए। उस महिला ने मांग की है कि सुप्रीम कोर्ट से सेवानिवृत जजों से ही जांच हो। जस्टिस गोगाई को यह मांग मान लेनी चाहिए। आज पूरे तंत्र की विश्वसनीयता खतरे में है। इस खतरे से इसको बचाने की जरूरत है। (संवाद)
प्रधान न्यायाधीश पर यौन हिंसा का आरोप
खतरे में में पूरे तंत्र की विश्वसनीयता
उपेन्द्र प्रसाद - 2019-04-22 14:07
आजादी के बाद यह अपने किस्म की पहली घटना है। सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश पर उनके मातहत काम करने वाली एक महिला स्टाफ ने न केवल अपने खिलाफ प्रधान न्यायाधीश के हाथों यौन हिंसा का आरोप लगाया है, बल्कि पूरे परिवार को बर्बाद कर देने का भी आरोप लगाया है। न्यायपालिका व्यवस्था का वह अंग है, जहां लोग अपने खिलाफ हो रहे अन्याय से राहत पाने के लिए फरियाद के साथ जाते हैं। वे न्याय की याचना करते हैं और यदि उनके साथ अपराध हो गया हो, तो अपराधियों को दंड दिलाने के लिए अदालत की शरण लेते हैं।