उसके कुछ दिनों के बाद पति राॅबर्ट वडेरा ने कहा कि प्रियंका वाराणसी से चुनाव लड़ सकती हैं। अभी कुछ दिन पहले खुद प्रियंका ने कहा कहा कि वह वाराणसी से प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ना चाहती हैं और उन्हें राहुल गांधी की सहमति का इंतजार है। यानी वह साफ साफ शब्दों में कह रही थीं कि उन्हें वाराणसी से चुनाव लड़ना है और राहुल को यह निर्णय लेना है कि वह वहां से लड़ें या न लड़ें। राहुल से जब पूछा गया तो उन्होंने बताया कि प्रियंका और वाराणसी को लेकर निर्णय लिया जा चुका है, लेकिन क्या निर्णय लिया गया है, यह बताने से उन्होंने इनकार कर दिया। बस कहा कि इस पर संशय थोड़े समय के लिए बना रहने दें।
लेकिन संशय समाप्त करते हुए कांग्रेस ने वाराणसी से एक बार फिर अजय राय को मैदान में उतार दिया। अजय राय 2014 के लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस के उम्मीदवार थे और वे तीसरे स्थान पर रहे थे। वहां से उनकी जमानत जब्त हो गई थी और एक लाख मत भी नहीं मिले थे। दूसरे स्थान पर आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल थे, जिन्हें 2 लाख से ज्यादा वोट मिले थे। जाहिर है, अजय राय को वहां का उम्मीदवार बनाना कांग्रेस और राहुल के लिए महज औपचारिकता से ज्यादा कुछ भी नहीं है।
अनेक सीटों पर कांग्रेस औपचारिकता निभाने के लिए चुनाव लड़ रही हैं। इसलिए वाराणसी में भी यदि वह ऐसा कर रही है, तो इसमें कुछ गलत भी नहीं है। लेकिन गलत यह है कि प्रियंका गांधी ने यह घोषणा कर दी थी कि वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ना चाहती हैं और राहुल गांधी ने उन्हें वह चुनाव लड़ने से मना कर दिया। लड़ने की इच्छा और लड़ने की मनाही, ये दोनों यदि परदे के पीछे ही रहतीं, तो कोई बात नहीं थी, लेकिन दोनों सार्वजनिक रूप से हुई, इसलिए इससे कांग्रेस की राजनीति का पता चलता है। इससे पता चलता है कि कांग्रेस के शिखर नेतृत्व की परिपक्वता का स्तर क्या है।
वाराणसी से प्रधानमंत्री मोदी को नहीं हराया जा सकता। इतना तो स्पष्ट है। पिछली बार बहुत ज्यादा मतों से मोदी वहां से जीते थे। इस बार तो वह सिर्फ वहीं से चुनाव लड़ रहे हैं। जाहिर है अपनी ताकत का अच्छी तरह आकलन कर वह चुनाव लड़ रहे हैं। यदि हार की थोड़ी भी संभावना होती तो वह एक और सुरक्षित सीट से चुनाव लड़ रहे होते। वैसे भी वाराणसी पिछले कुछ चुनावों से भाजपा का मजबूत गढ़ रहा है। इसलिए उनके विरोधियों को भी इस बात की कभी उम्मीद नहीं रही होगी कि वाराणसी से उन्हें हराया जा सकता है।
इसलिए जब प्रियंका वाराणसी से लड़ने के लिए ताल ठोंक रही थी, तो उन्हें पता था कि वह चुनाव जीतने के लिए ताल नहीं ठोंक रही है। वह अपना राजनैतिक कद ऊंचा करने के लिए ताल ठोंक रही हैं। उनके वहां से चुनाव लड़ने से वाराणसी का चुनाव बहु चर्चित हो जाता। प्रियंका के राजनैतिक विचार लोगों के सामने बेहतर तरीके से आते। आसपास के इलाको में भी कांग्रेस कार्यकत्र्ताओं का उत्साह बढ़ता और पार्टी के वोट बढ़ते। क्या पता, कांग्रेस के हार रहे कुछ उम्मीदवार जीत भी जाते।
और यदि प्रियंका गांधी हार भी जाती, तो क्या होता? एक राजनैतिक विश्लेषक का कहना है कि इससे प्रियंका राजनैतिक मौत हो जाती। इससे बेहूदा विश्लेषण और कुछ नहीं हो सकता। देश के अनेक पराजित नेताओं ने इतिहास बनाए हैं। कांशीराम बसपा के शुरुआती दिनों में देश के बड़े बड़े नेताओं के खिलाफ लड़ते थे और सभी में अपनी जमानतें जब्त करवाते थे। जितने भी हाइप्रोफाइल चुनाव होते थे, उसमें कांशीराम उम्मीदवार बन जाते थे। वे खुद तो बड़ी रैली या सभा आयोजित करने में समर्थ नहीं थे, लेकिन दूसरे नेताओं की रैलियों के पहुंच जाते थे और उसके समापन के बाद सड़क किनारे खड़े होकर अपने हाथ में माइक और लाउड स्पीकर लेकर रैली से वापस जा रहे लोगों को संबोधित करते थे। उनको पता होता था कि जीतेंगे नहीं, लेकिन अपनी पार्टी खड़ी करने के लिए वे अपनी जमानतें जब्त करवाते थे।
यदि प्रियंका हार भी जातीं, तो इससे न तो उनका कुछ नुकसान होता और न ही कांग्रेस का। इससे दोनों को फायदा होता। प्रियंका एक नेता के रूप में निखरती और कांग्रेस के कार्यकत्र्ताओं के मनोबल बढ़ने के कारण कम से कम पूर्वी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को ज्यादा मत मिलते। लेकिन राहुल गांधी को यह रास नहीं आया। दावे से यह नहीं कहा जा सकता कि राहुल गांधी प्रियंका को लेकर किसी तरह के हीनताबोध से ग्रस्त हैं, लेकिन इससे तो यह पता चलता ही है कि वे राजनैतिक रूप से अभी भी अपरिपक्व हैं। इसी अपरिक्वता के कारण उन्हें उनके विरोधी पप्पू कहा करते थे। अब उन्हें ऐसा कहना कम हुआ है, क्योंकि उन्होंने कुछ मौके राजनैतिक कौशलता का परिचय दिया है। लेकिन प्रियंका को मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ने से रोककर उन्होंने इस धारणा को मजबूत किया है कि वे अभी भी राजनैतिक पप्पू हैं। (संवाद)
वाराणसी से प्रियंका का पलायन
क्या राहुल अभी भी राजनैतिक पप्पू हैं?
उपेन्द्र प्रसाद - 2019-04-26 13:07
प्रियंका गांधी का लगभग घोषणा करके वाराणसी से चुनावी रण से भाग खड़ा होना पार्टी के रूप में कांग्रेस की राजनैतिक अपरिपक्वता का एक ताजा सबूत है। प्रियंका गांधी पिछले कई दिनों से कह रही थीं कि वह वाराणसी से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ना चाहती हैं। सबसे पहले उन्होंने रायबरेली की एक सभा में सवाल पूछते हुए ऐसा कहा था। रायबरेली के मतदाता नारा लगा रहे थे कि प्रियंका अपनी मां के क्षेत्र से ही चुनाव लड़ें और मां सोनिया का विश्राम दे दें। तब प्रियंका गांधी ने मतदाताओं से पूछा था कि उन्हें रायबरेली से क्यों और वाराणसी से क्यों नहीं चुनाव लड़ना चाहिए। ऐसा कहकर उन्होंने रायबरेली के मतदाताओं को शांत कर दिया था।