संक्रमित वैक्सीन का खुलासा उस वक्त हुआ था, जब 7 अगस्त 2018 को उत्तर प्रदेश में मिर्जापुर के एक गांव में एक बच्चे के पैरों में कुछ दिक्कत होने पर उसकी जांच के दौरान उसमें पोलियो वायरस ‘पीवी-2’ होने की पुष्टि हुई थी। उसके बाद कई और जिलों से भी ऐसे ही मामले सामने आने के बाद बच्चों को पिलाई गई पोलियो वैक्सीन की कसौली स्थित केन्द्रीय प्रयोगशाला में जांच कराई गई तो यह चैंकाने वाला मामला सामने आया था क्योंकि इन सभी वैक्सीन में पीवी-2 विषाणु मौजूद था।
बच्चों को आजीवन विकलांग बना देने वाली पोलियो जैसी भयानक बीमारी से बचाने के लिए नवजात शिशुओं से लेकर पांच वर्ष तक के बच्चों को पोलियो की खुराक पिलाई जाती है लेकिन देश के करोड़ों बच्चों के स्वास्थ्य के साथ बहुत बड़े पैमाने पर इस प्रकार की लापरवाही को अनदेखा नहीं किया जा सकता। दरअसल ऐसी किसी भी दवा या वैक्सीन को लेकर आमजन का सरकार तथा चिकित्सा तंत्र के दावों पर पूरा विश्वास होता है लेकिन स्वास्थ्य तंत्र की ऐसी लापरवाहियों से यह भरोसा डगमगाने का खतरा उत्पन्न होता है, जो किसी के भी हित में नहीं हांता। एक ओर जहां 13 जनवरी 2014 को पोलियों से करीब साढ़े तीन दशक की लंबी लड़ाई के बाद भारत को विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा ‘पोलियो मुक्त’ घोषित किया गया था, वहीं गत वर्ष एक साथ अलग-अलग स्थानों पर पोलियो के कई मामले सामने आना हमारे स्वास्थ्य तंत्र के नाकरापन का ही शर्मनाक उदाहरण था क्योंकि पोलियो टीकाकरण अभियान पर अरबों-खरबों रुपये के खर्च तथा हजारों लोगों की दिन-रात की कड़ी मेहनत के बाद देश पोलियो मुक्त घोषित हुआ था लेकिन गत वर्ष पोलियो वायरस ‘पीवी-2’ से संक्रमित दवा कई राज्यों में बच्चों को पिलाये जाने के बाद देश के पोलियो अभियान को बड़ा पलीता लगा और अब देश को फिर से पूरी तरह पोलियो मुक्त घोषित करने के लिए पुनः अरबों रुपये के खर्च के साथ देशभर में युद्धस्तर पर पल्स पोलियो अभियान चलाना पड़ेगा।
आश्चर्य की बात है कि पल्स पोलियो टीकाकरण अभियान से पहले केन्द्रीय एजेंसियां यह जांच करती हैं कि पोलियो वैक्सीन में कहीं पोलियो का कोई वायरस तो मौजूद नहीं है लेकिन इस कड़ी जांच के बावजूद बहुत बड़े स्तर पर वैक्सीन में वायरस की मौजूदगी इन एजेंसियों के काम-काज के तौर-तरीकों पर गंभीर सवाल खड़े करती है। हैरानी की बात यह रही कि पोलियो वैक्सीन देशभर में केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के माध्यम से ही भेजी जाती है, फिर भी गाजियाबाद की कम्पनी ‘बायोमेड’ द्वारा बनाई गई विषाणुयुक्त पोलियो वैक्सीन बगैर जांच के इतने सारे बच्चों की कैसे पिला दी गई थी? देश के पोलियो मुक्त घोषित होने के बाद स्वास्थ्य मंत्रालय के आदेशानुसार सभी दवा कम्पनियों को 25 अप्रैल 2016 तक पीवी-2 वायरस वाले वैक्सीन को नष्ट कर दिया जाना अनिवार्य था, फिर भी बायोमेड द्वारा इसे नष्ट क्यों नहीं किया गया और उस कम्पनी को बगैर यह वैक्सीन नष्ट किए पोलियो सर्विलांस विभाग द्वारा वैक्सीन नष्ट करने का प्रमाणपत्र कैसे मिल गया था? दरअसल अलग-अलग स्थानों पर कई बच्चों में एक साथ पोलियो जैसे लक्षण देखे जाने के बाद यह सनसनीखेज खुलासा हुआ था कि वैक्सीन की जांच करने वाली ये एजेंसियां बगैर जांच के ही यह मानकर चल रही थी कि दुनिया से पोलियो के टाइप-2 वायरस का पहले ही खात्मा हो चुका है, इसलिए इन एजेंसियों द्वारा सिर्फ टाइप-1 और टाइप-3 वायरस की ही जांच की जाती रही जबकि जांच के दौरान वैक्सीन में टाइप-2 मौजूद रहा।
उल्लेखनीय है कि पोलियो के तीन तरह के वायरस होते हैं पीवी-1, पीवी-2 और पीवी-3 और दो वर्ष पूर्व तक पीवी-2 वायरस से ही देश में पोलियो की वैक्सीन बनाई जाती रही है लेकिन पूरी दुनिया के साथ-साथ भारत को भी टाइप-2 पोलियो वायरस से मुक्त देश घोषित किए जाने के बाद वैश्विक स्तर पर सबसे खतरनाक माने जाते रहे टाइप-2 वायरस से वैक्सीन का निर्माण बंद कर दिया गया था और इस वायरस को भी नष्ट कर दिया गया था। इसके बावजूद अगर दो वर्षों तक लगातार बच्चों को इसी वायरस से संक्रमित दवा पिलाई जाती रही। कितने आश्चर्य की बात है कि इसी वायरस से युक्त पोलियो वैक्सीन की डेढ़ लाख शीशियां मौजूद होने की पुष्टि हुई थी और दो साल के भीतर करीब एक करोड़ बच्चों को यह संक्रमित खुराक पिला दी गई लेकिन स्वास्थ्य एजेंसियों को इसी भनक तक नहीं लगी कि बच्चों को पोलियो रोधी दवा के साथ इस बीमारी के लिए जिम्मेदार खतरनाक वायरस भी पिलाया जा रहा है।
पोलियो का कोई इलाज नहीं होता लेकिन पोलियो का टीका बार-बार देने से बच्चों को जीवन भर इससे सुरक्षा मिल जाती है। पोलियो एक ऐसा रोग है, जिसने कई बार वर्षभर में ही हजारों बच्चों को पंगु बना डाला था। वर्ष 1988 में तो पोलियो के सर्वाधिक मामले सामने आए थे, जब करीब साढ़े तीन लाख बच्चे इससे संक्रमित हुए थे लेकिन पल्स पोलियो अभियान के चलते वर्ष 2015 में दुनिया भर से पोलियो के मात्र 74 मामले ही सामने आए थे। अक्तूबर 1994 में देशभर में ‘पोलियो उन्मूलन अभियान’ की शुरूआत की गई थी, जिसके सकारात्मक परिणाम सामने आए। पोलियो को जड़ से उखाड़ फैंकने के अभियान को ‘दो बूंद जिंदगी की’ नाम दिया गया था। 20 लाख से अधिक कार्यकर्ताओं ने इस अभियान से जुड़कर घर-घर जाकर पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों को पोलियो की खुराक पिलाकर देश को पोलियो मुक्त बनाने में अमूल्य योगदान दिया था।
पोलियो के करीब 95 फीसदी मामलों में बच्चों में कोई लक्षण नहीं दिखाई देता, जिन्हें असिम्प्टोमैटिक (स्पर्शोन्मुखी) मामले कहा जाता है। शेष 5 फीसदी मामलों को अबाॅर्टिव पोलियो, नन-पैरालिटिक पोलियो और पैरालिटिक पोलियो में वर्गीकृत किया जाता है। अबाॅर्टिव पोलियो में बुखार, थकावट, सिरदर्द, गले में खराश, मितली, दस्त जैसे लक्षण नजर आते हैं। नन-पैरालिटिक पोलियो में अबाॅर्टिव पोलियो के लक्षण तो शामिल होते ही हैं, साथ ही रोशनी के प्रति संवेदनशीलता और गर्दन की अकड़न जैसे कुछ न्यूरोलाॅजिकल लक्षण भी दिखाई देते हैं। पैरालिटिक पोलियो में वायरल जैसे लक्षणों के बाद मांसपेशियों में दर्द और असंयमित पक्षाघात जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। पोलियो एक बहुत ही संक्रामक बीमारी है, जो लोगों के बीच सम्पर्क से, नाक और मुंह के स्रावों द्वारा और संदूषित विष्ठा के संपर्क में आने फैलता है। पोलियो वायरस शरीर में मुंह के जरिये प्रवेश करता है, पाचन नली में द्विगुणित होता है, जहां यह आगे भी द्विगुणित होता रहता है।
गत वर्ष पल्स पोलियो टीकाकरण अभियान में बहुत बड़ी लापरवाही सामने आने के बाद स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा पोलियो टीकाकरण अभियान को स्थगित कर दिया गया था। अब एक बार फिर यह अभियान शुरू किया गया है। पोलियो टीकाकरण अभियान के दौरान अक्सर कहा जाता रहा है कि एक भी बच्चा छूट गया तो सुरक्षा चक्र टूट गया, इसलिए ऐसे में इस अभियान के प्रति लोगों का भरोसा बनाए रखने के लिए यह सुनिश्चित किया जाना बेहद जरूरी है कि भविष्य में इस अभियान में किसी भी प्रकार की चूक के लिए लेशमात्र भी गुंजाइश न रहे। (संवाद)
फिर कभी लकवाग्रस्त न हो पोलियो टीकाकरण अभियान
टूटने न पाए पोलियो सुरक्षा चक्र
योगेश कुमार गोयल - 2019-04-27 12:23
पोलियो के खतरे को देखते हुए हाल ही में एक बार फिर देशभर में पल्स पोलियो अभियान की शुरूआत की गई और देशभर में लाखों बच्चों को पोलियो की खुराक पिलाई गई। इस बार का पोलियो अभियान चर्चा में इसलिए रहा क्योंकि एक तरफ जहां भारत वर्ष 2014 में ही पोलियो को जड़ से मिटाने का दावा करते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन से भी इसका प्रमाणपत्र हासिल कर चुका था और विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा पोलियो के टाइप-2 वायरस से दुनियाभर से खात्मे की घोषणा भी 25 अप्रैल 2016 को कर दी गई थी, वहीं पिछले ही साल देश के कई राज्यों में करीब एक करोड़ बच्चों को पिलाई गई पोलियो खुराक में पीवी-2 विषाणु की मौजूदगी की पुष्टि होने के बाद हड़कम्प मच गया था, जिसके बाद आनन-फानन में वह वैक्सीन तो सभी स्थानों से वापस मंगा ली गई थी किन्तु इतने सारे मासूमों को संक्रमित वैक्सीन की खुराक दिए जाने के बाद पोलियो के फिर पैर पसारने की आशंका जताई जाने लगी थी।