पर गठबंधन नहीं हो सका, क्योंकि कांग्रेस ऐसा चाहती ही नहीं थी। वह भाजपा को हराने के लिए बहुत उत्सुक है, ऐसा दिखाने के लिए वह गठबंधन प्रयास का ढोंग कर रखी थी और इसके लिए उसने दिल्ली के कांग्रेस प्रभारी पीसी चाको को मोर्चे पर लगा रखा था। आम आदमी पार्टी चाहती थी कि कांग्रेस के साथ वह दिल्ली के साथ साथ हरियाणा, पंजाब, चंडीगढ़ और गोवा में भी देश की सबसे पुरानी पार्टी के साथ गठबंधन करे। पर गोवा और पंजाब में गठबंधन करने से कांग्रेस ने साफ इनकार कर दिया और कहा कि उन दोनों राज्यों मे वह अकेली ही भाजपा और सहयोगियों को हरा देगी।

लेकिन हरियाणा को लेकर कांग्रेस का ऐसा दावा कभी नहीं था। वहां की जमीनी हकीकत यही है कि वहां भारतीय जनता पार्टी बहुत मजबूत है और वह एक बार फिर 2014 की चुनावी सफलता को दुहराने की स्थिति में है। वहां आम आदमी पार्टी का ओमप्रकाश चैटाला के बड़े बेटे अजय चैटाला की पार्टी से गठबंधन है। केजरीवाल चाहते थे कि कांग्रेस भी उस गठबंधन में शामिल हो जाए और खुद वहां की 10 में से 6 सीटों में लड़े, तीन पर अजय चैटाला की पार्टी और एक पर आम आदमी पार्टी को लड़ने दे।

पर कांग्रेस ने हरियाणा मे भी आम आदमी पार्टी की बात मानने से इनकार कर दिया और सिर्फ दिल्ली में गठबंधन करने और उसमें भी दिल्ली की 7 में से 3 सीटों पर चुनाव लड़ने की मंशा जताई। दिल्ली में कांग्रेस के पास विधानसभा में एक भी सीट नहीं है। लोकसभा चुनाव में उसके सारे उम्मीदवार 2014 में तीसरे स्थान पर रहे थे। इसके बावजूद कांग्रेस चाहती थी कि उसे तीन सीटें मिले। उसे तीन सीटें गठबंधन के तहत दी भी जा रही थीं, लेकिन बदले में शर्त थी हरियाणा में गठबंधन करने की। दोनों राज्यों को मिलाकर 17 सीटें हैं लोकसभा की। यदि यह गठबंधन हो जाता तो भाजपा को सभी 17 सीटों पर हराया जा सकता था। पर कांग्रेस की हठधर्मिता के कारण गठबंधन नहीं हो सका और इसकी प्रबल संभावना है कि इन 17 सीटों में से अधिकांश पर भाजपा के उम्मीदवार जीत जाएं।

दिल्ली में अब त्रिकोणात्मक संघर्ष की स्थिति बन गई है, लेकिन मुख्य मुकाबले में भाजपा और आम आदमी पार्टी ही है। कांग्रेस सभी सीटों पर तीसरे स्थान पर ही दिखाई पड़ रही है। उसका समर्थन आधार खिसक चुका है। हालांकि कांग्रेस ने चुनाव जीतने के लिए अपनी सारी ताकत लगा दी है। उसने अपने वरिष्ठ नेताओ को उम्मीदवार बना दिया है। चार सीटों पर चुनाव लड़ रहे उम्मीदवार या तो पूर्व अध्यक्ष रह चुके हैं या वर्तमान में अध्यक्ष हैं।

उत्तरी पूर्वी दिल्ली से पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित चुनाव लड़ रही हैं। वे इस समय पार्टी की प्रदेश अध्यक्ष हैं और पहले भी इस पद की कभी शोभा बढ़ाया करती थीं। लेकिन उनका स्वास्थ्य बहुत खराब चल रहा है। वह ढंग से न तो बोल पाती हैं और न ही चल पाती हैं। चुनाव अभियान के दौरान अपनी सक्रियता बनाए रखना उनके लिए बहुत बड़ी चुनौती है। जाहिर है, बड़ा नाम होने के बावजूद वे न तो अपने लिए और न ही अपनी पार्टी के अन्य उम्मीदवारों के लिए वोट जुगाड़े नेता हो पाने की स्थिति में है। फिलहाल उनकी ताकत दूसरे नंबर की उम्मीदवार बनने की है।

एक अन्य पूर्व अध्यक्ष जयप्रकाश अग्रवाल चांदनी चैक से चुनाव लड़ रहे हैं। वहां से पहले कपिल सिब्बल ताल ठोंक रहे थे। वे कह रहे थे कि गठबंधन हो या नहीं हो, वे चांदनी चैक से चुनाव जरूर लड़ेंगे। अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि वे खुद चुनाव मैदान से बाहर हो गए या पार्टी ने उनको टिकट नहीं दिया।

नई दिल्ली लोकसभा क्षेत्र से एक अन्य पूर्व अध्यक्ष अजय माकन चुनाव लड़ रहे हैं। वे कांग्रेस के अन्य उम्मीदवारों से बेहतर स्थिति में हैं। सच कहा जाय तो कांग्रेस के वे सबसे मजबूत उम्मीदवार हैं और सिर्फ वे ही जीत की कुछ उम्मीद कर सकते हैं। उनके कारण असली त्रिकोणीय मुकाबला नई दिल्ली लोकसभा क्षेत्र में ही हो रहा है। लेकिन इसके कारण भाजपा उम्मीदवार की स्थिति वहां बेहतर बन गई है।

कांग्रेस के चैथे पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली हैं, जो पूर्वी दिल्ली से चुनाव लड़ रहे हैं। कांग्रेस अघ्यक्ष रहने के बाद वे भाजपा में शामिल हो गए थे, लेकिन वहां उनको कोई भाव नहीं मिला और वे वापस कांग्रेस में आ गए। अब उन्हें पार्टी ने पूर्वी दिल्ली से उम्मीदवार बना दिया है, जहां उनका सामना आम आदमी पार्टी की आतिशी और भाजपा के गौतम गंभीर से हो रही है।

चुनावी प्रक्रिया के आगे बढ़ने के साथ साथ आम आदमी पार्टी के पक्ष में हवा बनने लगी है और उसका चुनाव प्रचार भी भाजपा के चुनाव प्रचार से ज्यादा व्यवस्थ्ति तरीके से चल रहा है। टेक्नालाॅजी का इस्तेमाल कर अरविंद केजरीवाल अपनी उपलब्धियों के आधार पर लोगों से वोट मांग रहे हैं और उन्हें काम करने से कैसे केन्द्र की सरकार ने रोका इसको भी बयां कर रहे हैं।

आम आदमी पार्टी ने अपने सातों उम्मीदवारों के नाम बहुत पहले ही घोषित कर दिए थे, इसका भी लाभ उसे मिल रहा है। नामांकन करने के पहले ही उसके सातों उम्मीदवार दिल्ली की गलियों के चक्कर लगा चुका है, जबकि देर से उम्मीदवारी घोषित होने के कारण कांग्रेस और भाजपा के उम्मीदवार चुनाव प्रचार में बहुत पिछड़ गए हैं।

लोगों के मूड के बारे में अभी अनुमान लगाना जल्दबाजी होगी, लेकिन इतना तो तय है कि दिल्ली में लोकसभा का चुनाव भारतीय जनता पार्टी के लिए बहुत आसान नहीं होने जा रहा है। (संवाद)