2014 में दिल्ली मे मोदी का जादू चल रहा था और अपने न्यूनतम आधार के अलावा भाजपा को 10 फीसदी और वोट मिले थे। इसके कारण सातों सीटों पर भाजपा की जीत हुई थी। लेकिन कांग्रेस की बुरी गति हो गई थी। उसके उम्मीदवार किसी भी लोकसभा क्षेत्र में दूसरे स्थान पर भी नहीं आ पाए थे। सभी सीटों पर आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार ही दूसरे स्थान पर आए थे। 2014 की लोकसभा चुनाव के बाद 2015 में हुए विधानसभा चुनाव में तो कंाग्रेस की और भी बड़ी दुर्गति हुई थी। दिल्ली विधानसभा के चुनाव के इतिहास में यह पहला मौका था, जब कांग्रेस का कोई उम्मीदवार जीत कर विधानसभा नहीं पहुंच पाया था।

हालांकि नगर निगम के चुनावों में कांग्रेस के वोट प्रतिशत में वृद्धि हुई और उसके पार्षदों की संख्या आम आदमी पार्टी के पार्षदों की संख्या से कम होने के बाद भी सम्मानजनक रही। उस चुनाव में आम आदमी पार्टी की हार करारी थी, क्योंकि विधानसभा चुनाव में ऐतिहासिक जीत दर्ज करने के बाद उसके उस तरह के परिणाम की उम्मीद नहीं की जा रही थी। दिल्ली में तीन नगर निगम हैं और तीनों में ही भारतीय जनता पार्टी काबिज हो गई और आम आदमी पार्टी को प्रमुख विपक्ष की भूमिका से ही संतुष्ट रहना पड़ा।

2013 में विधानसभा का जो चुनाव हुआ था, उसमें भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी, लेकिन बहुमत से उसे कुछ कम सीटे मिली थीं। सबको चैंकाते हुए अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी दूसरे स्थान पर पहुंच गई थी और उसकी सीटों की संख्या भाजपा की सीटों की संख्या से कुछ ही कम थीं। कांग्रेस को 7 सीटें मिली थीं और कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी को समर्थन देकर उसकी सरकार बनवा दी और फिर गिरवा भी दी। अरविंद केजरीवाल की सरकार का गठन करवाकर कांग्रेस यह साबित करने की कोशिश कर रही थी कि नई बनी आम आदमी पार्टी सरकार चला ही नहीं सकती। वह अपने तरीके से केजरीवाल को ब्लैकमेल करने की कोशिश करती रही और अरविंद केजरीवाल पब्लिक में कांग्रेस की छवि खराब करते रहे। अंत में वही हुआ, जो होना था। केजरीवाल की सरकार गिर गई और फिर करीब एक साल के बाद दिल्ली विधानसभा के दुबारा चुनाह हुए। 2015 की तरह 2013 में भी भारतीय जनता पार्टी को अपने न्यूनतम वोटों के आधार पर निर्भर रहना पड़ा था और यह न्यूनमत मत आधार 33 से 35 फीसदी है।

अब इस लोकसभा चुनाव की बात करें, तो यहां हो रहे त्रिकोणात्मक मुकाबले में भारतीय जनता पार्टी को कम से कम 35 फीसदी मत मिलने ही मिलने हैं। मतों का प्रतिशत उससे ज्यादा ही होगा, क्योंकि मोदी मैजिक खत्म होने के बावजूद उसका हैंगओवर तो कुछ न कुछ होगा ही। मतदाताओ का एक वर्ग फेंस सीटर होता है और वह उसे वोट देता है, जो जीत रहा हो। उन्हें लगता है कि यदि उन्होंने हारते हुए उम्मीदवार को वोट दिया, तो उनका वोट बर्बाद हो जाएगा। जाहिर है, भारतीय जनता पार्टी को इस प्रकार के वोटरों को आकर्षित करने की क्षमता भी है।

अरविंद केजरीवाल को दिल्ली की इस राजनैतिक हकीकत के बारे में जानकारी थी, इसलिए उन्होंने अंत अंत तक कांग्रेस के साथ गठबंधन बनाने की कोशिश की। कांग्रेस के नेता भी उनसे बातचीत करते रहे, लेकिन वे पूरे मन से बातचीत नहीं कर रहे थे। उनकी रणनीति थी कि भाजपा विरोधी मतदाताओं को यह नहीं लगे कि कांग्रेस गठबंधन से भाग रही है। इसलिए वे बातचीत का नाटक करते रहे और अंत में उन्होंने वही किया, जो वे करना चाहते थे। दिल्ली में उनकी मुख्य समस्या भाजपा नहीं है, बल्कि आम आदमी पार्टी है, जिसने उसके मतदाता आधार पर करीब करीब कब्जा कर लिया है। इसलिए कांग्रेस चाहती है कि दिल्ली में भले भाजपा सातों सीटें जीत जाय, लेकिन आम आदमी पार्टी का नाश हो, ताकि उनकी ओर गया हुआ उनका राजनैतिक आधार उन्हें वापस मिल सके।

यही कारण है कि दिल्ली में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा का गठबंधन नहीं हो सका और इसका फायदा भारतीय जनता पार्टी को हो रहा है। उसने अपने पूर्व पांच सांसदों को फिर से उम्मीदवार बनाया है। हर्षवद्र्धन को छोड़कर सभी के सभी अपने अपने क्षेत्रों में बेहद अलोकप्रिय हैं। भाजपा का केन्द्रीय नेतृत्व उन्हें दुबारा टिकट नहीं देना चाहता था, लेकिन उनसे बेहतर उम्मीदवार उन्हें मिल ही नहीं रहा था। इसलिए उन्हें मजबूर होकर अपने पुराने घोड़ों पर ही दावं लगाना पड़ा। लेकिन उनमें से अधिकांश दुबारा जीत कर वापस लोकसभा में आ सकते हैं, क्योंकि कांग्रेस के कारण स्थितियां उनके पक्ष मंे बन गई हैं।

कांग्रेस ने तो अपनी ओर से भाजपा को दिल्ली की सातों सीटें गिफ्ट कर दी हैं, लेकिन कुछ सीटों पर आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार भाजपा उम्मीदवारों को कड़ी टक्कर दे रहे हैं। पूर्वी दिल्ली में आम आदमी पार्टी की आतिशी भाजपा उम्मीदवार गौतम गंभीर को हरा भी सकती हैं। उसी तरह दक्षिण दिल्ली में आप के राघव चड़ढा भी भाजपा के रमेश विधूड़ी को कांटे की टक्कर दे रहे हैं। पर नतीजे निकलने के बाद ही कहा जा सकता है कि त्रिकोणात्मक मुकाबले में भाजपा अपनी कितनी सीटें खोती हैं। फिलहाल तो यही कहा जा सकता है कि कांग्रेस ने उसे सातों सीटें गिफ्ट कर दी हैं। (संवाद)