जब प्रेस कान्फ्रेंस समाप्त हुआ, तो डिजिटल मीडिया ने स्पष्ट किया कि वह कान्फ्रेंस अमित शाह का था, जिसमे प्रधानमंत्री भी उपस्थित थे। जाहिर है, पांच साल में पहला प्रेस कान्फ्रेंस का पत्रकारों का दावा गलत साबित हुआ। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी किसी लोकतांत्रिक देश के एक मात्र शासन प्रमुख हैं, जिन्होंने अपने पूरे कार्यकाल में एक भी प्रेस कान्फ्रेंस का सामना नहीं किया। अमित शाह के कान्फ्रेंस के बीच में मोदीजी पत्रकारों को अपनी तरफ से संबोधित जरूर किया और उन्हें कहा कि वे कभी पत्रकारों से भाजपा के कार्यालय में इसी तरह घिरे रहते थे। वे 20 साल पहले की बात कर रहे थे, जब वे भारतीय जनता पार्टी के आधिकारिक प्रवक्ता हुआ करते थे। पत्रकारों से अपने अच्छे संबंधों की उन्होंने याद दिलाई, लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया कि अब वे पत्रकारों से दूर क्यों रहते हैं।
सबसे आश्चर्य की बात तो यह है कि किसी पत्रकार ने प्रधानमंत्री से यह सवाल पूछा ही नहीं कि वे पत्रकारों से क्यों दूर भागते रहे? आधिकारिक प्रवक्ता होने के कारण पत्रकारों से संवाद का उनका पुराना रिश्ता रहा है, लेकिन इसके बावजूद वे पत्रकारों को इतना भी महत्व नहीं देते हैं कि उनसे बातचीत कर सकें और उनके सवालों का जवाब दे सके। वैसे प्रेस कान्फ्रेंस तो अमित शाह का ही था और जवाब वे ही दे रहे थे, लेकिन सवाल प्रधानमंत्री से पूछे जा रहे थे। तो मौके का लाभ उठाकर प्रधानमंत्री से पूछा जा सकता था कि आखिर पत्रकारों से उनकी यह दूरी क्यों?
लेकिन पत्रकारो ने वह सवाल करना उचित नहीं समझा। देश के सामने अन्य अनेक ज्वलंत सवाल है, जो उनसे पूछा जा सकता था। रफेल विमान की कीमत पूछी जा सकती थी। 30 हजार करोड़ रुपये के आफसेट कंट्रेक्ट और अंबानी से जुड़े सवाल पूछे जा सकते थे। बीएसएनएल की दुर्दशा के बारे में भी पूछा जा सकता था कि उसे 4 जी का आबंटन क्यों नहीं किया गया। जियो की उन्नति और बीएसएनएल के पतन के संबंधों के बारे में पूछा जा सकता था। केन्द्र सरकार की 22 लाख रिक्तियों के बारे में पूछा जा सकता था। नोटबंदी की विफलता या सफलता पर सवाल पूछे जा सकते थे। देश की वित्तीय अवस्था और खासकर बैंकों की दुर्दशा पर भी सवाल पूछे जा सकते थे। जवाब तो प्रधानमंत्री नहीं ही देते। इन सवालों का जवाब अमित शाह ही देते या शायद वह भी नहीं देते, लेकिन पत्रकारों को तो अपने कर्तव्य का निर्वाह करना ही चाहिए था और देश व जनता के दिमाग को मथ रहे सवालों से तो प्रधानमंत्री को रूबरू कराया ही जाना चाहिए था। लेकिन वैसा कुछ भी नहीं हुआ। कुछ राजनैतिक सवाल पूछे गए, जिसका जवाब अमित शाह ने दिया।
जाहिर है, यह प्रेस कान्फ्रेंस नहीं, बल्कि प्रेस कान्फ्रेंस का मजाक था। प्रधानमंत्री चुनाव प्रचार के बीच चैनलों को अपना इंटरव्यू दे रहे हैं। लेकिन आरोप लग रहा है कि वे स्क्रिप्टेड होते हैं। यानी पहले ही सारे सवाल प्रधानमंत्री को भेज दिए जाते हैं या वे सवाल भी उनके ही लोग तैयार करते हैं। फिर सवाल भी तैयार कर दिया जाता है। सवाल प्रश्नकर्ता पत्रकार पढ़ता है और प्रधानमंत्री पहले से तैयार जवाब पढ़ देते हैं। एक चैनल के इंटरव्यू में यह प्रमाणित भी हो गया। प्रधानमंत्री से एक सवाल पूछा गया था, जिसके जवाब में उनको कथित रूप से स्वलिखित कविता पढ़नी थी। सवाल के बाद उन्होंने अपने एक कागज निकाला, जिसपर उनकी कविता लिखी हुई थी, लेकिन उसी पन्ने पर वह सवाल भी ऊपर में लिखा हुआ था, जिस सवाल को प्रश्नकर्ता पत्रकार ने पूछा था। पूछा गया सवाल और उस पन्ने पर लिखा गया सवाल अक्षरशः एक था। उसके बाद किसी प्रकार का संशय नहीं रहा कि न्यूज चैनल वाले अपने दर्शकों की आंखों में धूल झोंक रहे हैं। वे उसे इंटरव्यू कह रहे हैं, जो इंटरव्यू है ही नहीं।
उसी तरह से जिसे वे प्रधानमंत्री का प्रेस कान्फ्रेंस कह रहे थे, वह प्रधानमंत्री का प्रेस कान्फ्रेंस था ही नहीं, वह अमित शाह का प्रेस कान्फ्रेंस था। लेकिन जिस तरह के सवाल पूछे गए उससे तो यह लगता है कि वह प्रेस कान्फ्रेंस भी नहीं था। या तो इंटरव्यू की तरह वह भी पहले से ही नियोजित था या अब पत्रकारों में सवाल पूछने की ताकत ही नहीं रह गई है। वे डरे हुए थे कि कहीं अमित शाह या प्रधानमंत्री नाराज तो नहीं हो जाएंगे। उन्हें इस बात का भी डर सता रहा होगा कि कहीं अगली बार इस तरह के कथित प्रेस कान्फ्रेंस में उन्हें बुलावा ही नहीं मिले और यदि बुलावा नहीं मिला, तो फिर उनकी नौकरी ही चली जाएगी। तो आज पत्रकारिता का यह दौर आ गया है। यह लोकतंत्र के लिए सच में ही निराशा की घड़ी है। (संवाद)
प्रधानमंत्री का प्रेस कान्फ्रेंस जो हुआ ही नहीं
भारतीय लोकतंत्र के लिए निराशा की घड़ी
उपेन्द्र प्रसाद - 2019-05-18 19:04
सोशल मीडिया पर यह खबर तेजी से फैल गई कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने पांच साल के कार्यकाल में पहली बार प्रेस कान्फ्रेंस को संबोधित करने वाले हैं। सोशल मीडिया से यह खबर पाकर टीवी चैनलों को न देखने की कसम तोड़कर अनेक पत्रकार चैनलों पर जम गए यह देखने के लिए कि प्रधानमंत्री से क्या सवाल किए जा रहे हैं और वे क्या जवाब दे रहे हैं। लेकिन निराशा ही हाथ लगी, क्योंकि प्रधानमंत्री वहां सिर्फ सशरीर उपस्थित थे। प्रेस कान्फ्रेंस उनका नहीं था, बल्कि पार्टी अध्यक्ष अमित शाह का था। निम्नस्तरीय पत्रकारिता की अपनी ख्याति को बचाते हुए सभी चैनल बता रहे थे कि प्रधानमंत्री प्रेस कान्फ्रेंस कर रहे हैं और पांच साल में पहली बार कर रहे हैं। प्रेस कान्फ्रेंस समाप्त हो गया और उसके पहले प्रधानमंत्री ने एक भी सवाल का जवाब नहीं दिया। वह मोदी का प्रेस कान्फ्रेंस इस मायने में था कि सवाल मोदीजी से ही पूछे जा रहे थे, लेकिन उन्होंने एक सवाल का भी जवाब नहीं दिया। उनसे पूछे गए सारे सवालों के जवाब पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने ही दिए।