इस बजट सत्र दिखा दिया है कि यदि वामपंथी और भाजपा चाहें तो संसद चलने देने में वे सरकार की मदद कर सकते हैं और यदि वे चाहें तो सरकार का काम कठिन कर दें।वामपंथी दलं भाजपा के साथ दूरी बनाते हैं पर विडंबना देखिए कि कुछ मुद्दो पर वे भाजपा के साथ मिल कर चलने में उन्हें कोई आपत्ति नहीं हुई। उदाहरण के लिए महिला आरक्षण विधेयक पर दोनो ने सरकार का साथ दिया और उनके समर्थन से ही सरकार महिला आरक्षण विधेयक को राज्य सभा से पास करा सकी। इसे पास कराने के लिए मतदान कर रहे सांसदों के दो तिहाई समर्थन की जरूरत थी, जबकि कांग्रेस के पास राज्य सभा मे 30 सीट ही हैं।

बजट सत्र में सरकार ने क्या गड़बड़ी की वह देखने लायक है। अब सरकार के लोग भी कह रहे हैं कि उन्होने वित्तीय विधेयकों को पास कराने के पहले महिला आरक्षण विधेयक राज्य सभा में लाकर गलती कर दी। महिला आरक्षण विधेयक के कारण समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल ने सरकार से समर्थन वापस लेने की घोषणा कर दी है। बहुजन समाज पार्टी का समर्थन भी अब संदेहास्पद हो गया है। उनके समर्थन हट जाने के कारण अब केन्द्र की सरकार को वित्तीय विधेयक पारित कराने के लिए काफी मशक्कत करनी होगी। उसे हमेशा संसद में उपस्थित अपने समर्थक सांसदों की गिनती करते रहना होगा। थोड़ी भी चूक सरकार के पतन का कारण बन सकती है, क्योंकि लोकसभा में किसी वित्तीय विधेयक के गिरने का मतलब होता है सरकार का ही गिर जाना। सपा, बसपा और राजद के समर्थन संदिग्ध हो जाने के कारण यूपीए के छोटे घटक दलों का भाव भी बढ़ गया है।

महिला आरक्षण विधेयक एक अपवाद है। अन्य अनेक मसलों पर विपक्ष ने संसद मे सरकार की हालत खराब कर दी। सत्र शुरु होते ही मूल्यवृद्धि और खाद्य सुरक्षा के मसले पर सयुक्त विपक्ष ने सरकार की नाक में दम कर दिया। कहा जा रहा है कि इन दोनों मसलों पर विपक्ष की एकता से घबराकर ही सरकार ने महिला आरक्षण विधेयक को संसद में पेश कर दिया ताकि उनकी एकता टूट जाए। लेकिन सवाल उठता है कि महिला आरक्षण जैसे कितने ऐसे मसले सरकार के पास हैं, जिनका इस्तेमाल कर सरकार विपक्ष की एकता को तोड़ सकती है?

भाजपा के साथ वाम मोचा। अपने को खड़ा नहीं देखना चाहती हैख् इसके बावजूद अब केन्द्र सरकार के खिलाफ दोनों एक साथ दिख रही है। आखिर ऐसा क्यो हो रहा है? इसका उक कारण तो यह हे कि कुछ मसले पर दोनों की राय उक जैसी है, इसलिए दोनो को एक साथ होना होता है। महिला आरक्षण विधेयक एक ताजा उदाहरण है। इसके अलावे आज राजनैतिक स्थितियां ऐसी बन गई हैं कि दोनांे अब कांग्रेस को ही अपना मुख्य प्रतिद्वंद्वी मान रही है।

कांग्रेस को यह एहसास होना चाहिए कि उसे राज्य सभा में बहुमत नहीं है. उसे विपक्ष ही नहीं, बल्कि राकांपा और तृणमूल का भी ध्यान रखना है। वे कह रही हें कि वे महिला बिल या असैनिक परमाणु दायित्व बिल पर उनसे परामर्श नहीं किया गया। जब सरकार को पता है कि राजद और सपा द्वारा समर्थन वापस लेने के बाद बहुमत क्षीण हो गया है. तो सरकार को अपने ऊपर ज्यादा गुमान नहीं करना चाहिए। सरकार को सरकार चलाने के लिए आमसहमति का रास्ता अख्तियार करना चाहिए और अपनी ओर से टकराव को आमंत्रित करने से परहेज करना चाहिए। (संवाद)