वैसे जबतक अंतिम रूप से कोई अध्यक्ष के पद पर आसीन नहीं हो जाता, तब तक राहुल गांधी के इस पद पर बने रहने की संभावना को पूरी तरह नकारा भी नहीं जा सकता, क्योंकि कांग्रेस के अन्दर के चापलूस इतनी आसानी से हार मानने वाले नहीं हैं। खुद सोनिया और प्रियंका भी इतनी आसानी से कांग्रेस के अध्यक्ष का पद परिवार के बाहर नहीं जाने देंगी, क्योकि ऐसा होने में खुद उनकी सत्ता के क्षरण की संभावना है। आखिर हम छह महीने पहले देख चुके हैं कि राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्रियों के चयन में न केवल सोनिया गांधी ने, बल्कि प्रियंका गांधी ने भी बहुत दिलचस्पी दिखाई थी। सोनिय को तो खैर कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर रह चुकी हैं और उन्हें कांग्रेस की सुप्रीम लीडर भी हम कह सकते हैं, लेकिन प्रियंका गांधी किस हैसियत से उस समय मुख्यमंत्री के चयन मे दिलचस्पी ले रही थीं? उस समय तो वह कांग्रेस की सक्रिय कार्यकत्र्ता भी नहीं थीं। उनकी भूमिका तो अमेठी और रायबरेली में अपनी मां और भाई के लिए चुनाव प्रचार तक ही सीमित हुआ करती थी। उन्होंने तीनों प्रदेशों में हुए चुनावों में कांग्रेस की ओर से प्रचार तक नहीं किया था।

जाहिर है, परिवार से बाहर के व्यक्ति के कांग्रेस अध्यक्ष बनने से परिवार के सभी सदस्यों के राजनैतिक रूतबे में कमी का खतरा है, लेकिन यह परिवार के लिए भले ही नुकसानदेह हो, लेकिन यह कांग्रेस के लिए बेहतर होगा, क्योंकि सोनिया परिवार के नेतृत्व में कांग्रेस लगातार अपने अंत की ओर बढ़ रही है। पिछले साल तीन प्रदेशों के चुनावों में कांग्रेस की सरकार बनना सोनिया या राहुल के कारण संभव नहीं हुआ था, बल्कि कांग्रेस की अपनी बची खुची अंदरूनी ताकत और भारतीय जनता पार्टी की प्रदेश सरकारों के खिलाफ असंतोष का नतीजा था। उसी तरह गुजरात में कांग्रेस के बेहतर प्रदर्शन के पीछे भी कांग्रेस की अपनी अंदरूनी ताकत ही काम कर रही थी। राहुल गांधी के जनेऊ प्रदर्शन या मंदिर भ्रमण का उसमें रत्ती भर भी योगदान नहीं था।

यदि वास्तव में तीनों प्रदेशों में कांग्रेस की जीत के पीछे राहुल गांधी का हाथ होता, तो वह लोकसभा चुनावों में भी दिखता। लोकसभा चुनाव राहुल बनाम मोदी के बीच में कम से कम उन प्रदेशों में हो रहा था, जहां कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधा मुकाबला होता है, लेकिन उन राज्यों में कांग्रेस की बुरी हार हुई। मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ मे छह महीने पहले सरकार बनाने वाली कांग्रेस को वहां की 75 सीटों में से मात्र 3 सीटों पर जीत हासिल हो सकी। राजस्थान में तो एक भी सीट नहीं मिली, जबकि वहां कांग्रेस की बहुमत वाली सरकार है। मध्यप्रदेश मे वहां उसे मात्र एक सीट मिली, जबकि विधानसभा चुनाव में मात्र दो सीटें उसे बहुमत से कम मिली थीं। छत्तीसगढ़ में तो चमत्कार हो गया। वहां विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 75 फीसदी से भी ज्यादा सीटें मिली थीं, लेकिन लोकसभा चुनाव में उसे सिर्फ दो सीटो से ही संतोष करना पड़ा।

जाहिर है, जहां खुद राहुल की निजी प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई थी, वहां कांग्रेस की हार भयानक हार हुई। उत्तर प्रदेश मे तो प्रियंका गांधी को मैदान में उतारकर कांग्रेस सोच रही थी कि वह चुनावी मैदान मार ही लेगी, लेकिन वहां खुद राहुल गांधी चुनाव हार गए। गनीमत है कि वे केरल की एक सीट से भी चुनाव लड़ रहे थे, इसलिए अमेठी से हारने के बावजूद वे लोकसभा में दिखाई देगे, अन्यथा वे संसद से बाहर रहने को मजबूर हो जाते। उत्तर प्रदेश में सिर्फ सोनिया गांधी ही जीत सकीं और वह भी शायद इसलिए संभव हो सका, क्योकि उन्हे सपा और बसपा का समर्थन हासिल था। उस समर्थन के बावजूद वह चुनाव हार सकती थीं, यदि भारतीय जनता पार्टी ने उमा भारती या सुषमा स्वराज जैसी किसी नामी गिरामी नेता को उनके खिलाफ खड़ा कर दिया होता।

सच कहा जाय, तो सोनिया परिवार कांग्रेस पर अब बोझ बन चुका है। कांग्रेस के कुछ चापलूस टाइप के नेता और कुछ राजनैतिक विश्लेषक भी यह कहते नहीं थकते कि सोनिया परिवार ही कांग्रेस को एक रख सकता है, अन्यथा यह बिखर जाएगी, लेकिन पार्टी को एक रखने से क्या फायदा जब परिवार के नेतृत्व में पार्टी तिल तिल कर मर रही हो। सच कहा जाय, तो सोनिया द्वारा पार्टी का नेतृत्व अपने हाथ मे लेने के साथ ही कांग्रेस मरने लगी थी। 1998 में सीताराम केसरी के नेतृत्व में कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में 140 सीटें मिली थीं, लेकिन 1999 में सोनिया के नेतृत्व में वह घटकर 112 हो गई थी। 2004 में कांग्रेस की सरकार उसकी अपनी ताकत से नहीं बनी थी, बल्कि वामपंथियों और लालू- पासवान के समर्थन के कारण बनी थी। तब उत्तर प्रदेश में भाजपा को कांग्रेस ने नहीं, बल्कि सपा- और बसपा ने हराया था। गौरतलब हो कि 2004 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 1998 और 1996 की तरह ही 140 के आसपास सीटें मिली थीं। 2009 की कांग्रेस की सफलता मनमोहन सिंह के कारण मिली थी, जिन्होंने वैश्विक आर्थिक मंदी के दुष्परिणाम से देश को मुक्त रखा था। इसलिए सोनिया परिवार की कांग्रेस की राजनैतिक उपयोगिता के बारे में कही गई बातें बकवास से ज्यादा कुछ नहीं। अच्छा हो, सोनिया परिवार की छत्रछाया से कांग्रेस जल्द से जल्द बाहर आ जाए। (संवाद)