उत्तर प्रदेश की कथित 17 ओबीसी जातियों की स्थिति आज त्रिशंकु की तरह ही हो गई है। योगी सरकार ने उन्हें एससी का सर्टिफिकेट जारी करने का आदेश जारी कर दिया है, ताकि उन्हें एससी को मिलने वाली सुविधाएं सरकार दे सके। लेकिन केन्द्र सरकार ने संसद मे उत्तर प्रदेश की सरकार के उस आदेश को असंवैधानिक और गैरकानूनी घोषित कर डाला है और कहा है कि योगी सरकार अपना वह निर्णय वापस ले। सबसे दिलचस्प बात यह है कि केन्द्र और उत्तर प्रदेश दोनों जगह भाजपा की ही सरकार है और जब योगी सरकार ने यह आदेश जारी किया था, तो भाजपा विरोधियों ने आरोप लगाया था कि उत्तर प्रदेश के आगामी उपचुनावों में राजनैतिक लाभ उठाने के लिए भाजपा सरकार ने वह कदम उठाया है।

यह मामला इतना सीधा नहीं है, जितना यह लगता है। दरअसल योगी सरकार ने यह कदम एकाएक नहीं उठाया है, बल्कि इसकी एक पृष्ठभूमि है। मुलायम सरकार ने 2004 और 2007 के बीच अपने कार्यकाल में इन सत्रह जातियों को ओबीसी की सूची से निकालकर एससी सूची में डाल दिया था। उस आदेश को अदालत मे चुनौती दी गई और अदालत ने आदेश पर रोक लगा दी। दरअसल एससी की सूची मे संशोधन का अधिकार राज्य सरकार को क्या, केन्द्र सरकार को भी नहीं है। यह सूची संविधान का हिस्सा है और संविधान में संशोधन करके ही उसमें किसी अन्य जाति को डाला जा सकता है और संविधान संशोधन के लिए दोनों सदनों के दो तिहाई सांसदों के समर्थन की जरूरत पड़ती है। लिहाजा, यह संसद का अधिकार है, जिसे नजरअंदाज करके मुलायम सिंह सरकार ने इन 17 जातियों को एससी की सूची में डाल दिया था।

मुलायम सरकार के उस निर्णय और उस पर लगी अदालती रोक के कारण ये जातियां न तो ओबीसी रह गई थी और न ही एससी बन पाईं। उनको दोनों सुविधाओं से वंचित होना पड़ रहा था। मुलायम के बाद मायावती की सरकार 2007 में आई और उस सरकार ने मुलायम सरकार के उस आदेश को वापस ले लिया और फिर उन 17 जातियों का ओबीसी स्टैटस वापस आ गया। 2012 में अखिलेश की सरकार आई और 2016 में उसने एक बार फिर वही किया, जो एक दशक पहले मुलायम सरकार ने किया था। उस पर अदालत ने फिर रोक लगा दी। लेकिन पिछले अप्रैल महीने में एलाहाबाद हाई कोर्ट ने उस आदेश पर लगाई गई रोक को हटा लिया और उत्तर प्रदेश सरकार को इजाजत दे दी कि वह अखिलेश सरकार के आदेश पर आगे बढ़कर एससी का जाति प्रमाण पत्र जारी कर सकती है। लेकिन इसके साथ शर्त यह थी कि उसके अंतिम फैसले से यह तय होगा कि उसके द्वारा जारी किए गए प्रमाण पत्र वैध हैं या नहीं।

जब हाई कोर्ट ने अपनी रोक हटा ली थी, तो उस समय लोकसभा का चुनाव हो रहा था। इसके कारण योगी सरकार ने मामले को ठंढे बस्ते में रखा। और अब उसने एससी का प्रमाणपत्र उन ओबीसी जातियों के लिए जारी करने करने का आदेश पारित कर दिया है। यदि राज्य सरकार किसी को एससी का सर्टिफिकेट जारी कर रही है, तो उसे ओबीसी का सर्टिफिकेट जारी नहीं कर सकती, लेकिन केन्द्र सरकार ने साफ कह दिया है कि राज्य सरकार को ऐसा करने का अधिकार है ही नहीं। जाहिर है, राज्य सरकार द्वारा जारी किए गए एससी सर्टिफिकेट का इस्तेमाल केन्द्र की नौकरियों और केन्द्रीय संस्थानों में प्रवेश के लिए नहीं हो पाएगा और ओबीसी सर्टिफिकेट नहीं मिल पाने के कारण 17 जातियों के लोग ओबीसी का लाभ भी हासिल नहीं कर पाएंगे।

जहां तक प्रदेश सरकार की नियुक्तियों का सवाल है, तो वे नियुक्तियां भी हाई कोर्ट के अंतिम फैसले का इंतजार करेंगी और यह देखेंगी कि वह वैध है या अवैध। अब चूंकि उन्हें ओबीसी सर्टिफिकेट नहीं मिलेगा, इसलिए उन्हें प्रदेश की सेवाओं में एससी बनकर जाना पड़ेगा और यह खतरा बना रहेगा कि उनकी नियुक्तियां अदालत द्वारा अवैध घोषित कर दिए जाएं। यह भी हमें नहीं भूलना चाहिए कि हाई कोर्ट के ऊपर सुप्रीम कोर्ट भी है। यदि हाई कोर्ट ने उन नियुक्तियों को वैध घोषित भी कर दिया, तो सुप्रीम कोर्ट से अवैध होने का खतरा तो बना रहेगा ही।

इस तरह ये ओबीसी जातियां आरक्षण की राजनीति की शिकार हो गई हैं। उनका वोट पाने के लिए नेता उन्हें एससी कैटेगरी में डालते हैं और यह जानते हुए डालते हैं कि ऐसा करने का उनको अधिकार नहीं है। यह बताना दिलचस्प होगा कि योगी सरकार ने कोर्ट को बताया कि वे उन ओबीसी जातियों को एससी का दर्जा नहीं दे रहे है, क्योंकि वह तो संसद का अधिकार है और हम केवल उन्हे एससी की सुविधाएं दे रहे हैं। यह विचित्र तर्क है। जिसे एससी का दर्जा ही नहीं मिलेगा, उसे एससी की सुविधाएं एससी के रूप में कैसे मिलेंगी?

दरअसल किसी जाति को एससी में रखने के अपने एक मापदंड हैं और वह मापदंड छुआछूत से जुडा हुआ है। जो जातियां छुआछूत की शिकार रही हैं, वे ही एससी कैटेगरी में शामिल हो सकती हैं। ये जातियां दावा कर सकती हैं कि इनके साथ भी छुआछूत का व्यवहार किया गया है, लेकिन उनके दावे से एससी कमीशन और भारत के रजिस्ट्रार जनरल को भी संतुष्ट होना पड़ेगा। उसके बाद ही सरकार संसद में संशोधन का विधेयक ला सकती है। फिलहाल ये शर्ते पूरी होने की संभावना नहीं है और इस बीच इन सत्रह जातियों की स्थिति त्रिशंकु की बनी रहेगी। (संवाद)