कहने की जरूरत नहीं कि बजट बहुत ही महत्वाकांक्षी है और यह पूरे देश को विकास करने करने के मंशे से बना होने का दावा करता है। इसमें गांवों के लिए भी कुछ है, तो शहरों क लिए भी कुछ है। किसानों के लिए भी इसमें बहुत कुछ है। वैसे किसानों के लिए एक योजना तो मोदी सरकार ने चुनाव के पहले ही चला थी और उसका लाभ भी चुनावों में उठा चुके हैं, लेकिन क्या किसान मोदी सरकार के गठन का लाभ उठा पाएंगे, यह एक बड़ा सवाला है, जिसका उत्तर समय ही देगा, पर वित्तमंत्री सीतारमण ने दावा किया है 2022 तक किसानों की आय दोगुनी हो जाएगी।
सरकारी नियंत्रण हटने और निजीकरण के बाद केन्द्र सरकार की बजट घोषणाएं पहले जैसी महत्वपूर्ण नहीं रहीं। एक समय था, जब उन घोषणाओं का देश की अर्थव्यवस्था और बाजार पर बहुत असर पड़ता था। अनेक वस्तुओं की कीमतें सरकार निर्धारित करती थीं और उनसे संबंधित घोषणाओं का इंतजार बाजार और आम लोगों को होता है। सरकार की कर नीतियों की भी बहुत शिद्दत से प्रतीक्षा की जाती थी, लेकिन अब जीएसटी के बाद तो अधिकांश परोक्ष करें केन्द्र सरकार के कार्यक्षेत्र से ही बाहर हो गए हैं और उनका निर्धारणन जीएसटी काउंसिल में होता है, हांलांकि जीएसटी कांउसिल की प्रमुख केन्द्रीय वित्तमंत्री ही होता है।
प्रत्यक्ष आयकर से संबंधित सबसे महत्वपूर्ण घोषणा अधिक आय वाले लोगों पर ज्यादा आयकर भार से संबंधित है। इसका स्वागत ही किया जाना चाहिए। अधिक आय वाले लोगों पर 3 प्रतिशत और उनसे भी ज्यादा आयकरने वालों को 7 प्रतिशत आयकर ज्यादा देने होंगे। सरकारी राजस्व बढ़ाने के लिए यह जरूरी था, हालांकि शेयर बाजार ने इसका स्वागत नहीं किया। लेकिन सरकार की समस्या राजस्व बढ़ाना है और पैसे तो वहीं से आएंगे, जहां वे हैं। अब अधिकतक आयकर 37 प्रतिशत हो गया है।
मध्यवर्ग उम्मीद कर रहा था कि सरकार सबसे नीचे वाला आयकर स्लैब समाप्त कर देगी। यह स्लैब पांच लाख रुपये तक का है। चुनाव के पहले पेश किए गए अंतरिम बजट में ही 5 लाख रुपये तक की आय वाले व्यक्ति को आयकर देने से छूट दे दी गई थी, लेकिन वह स्लैब समाप्त नहीं हुआ था। स्लैब अभी भी समाप्त नहीं हुआ है। इसका मतलब यह है कि जो आयकर रिटर्न दाखिल कर रहे हैं, उन्हें आगे भी आयकर रिटर्न दाखिल करता रहना पड़ेगा, भले वे आयकर देते हों या नहीं देते हैं। दरअसल सरकार चाहती है कि ज्यादा से ज्यादा लोग उनके आयकर विभाग के दायरे में आ जाएं। हालांकि इससे लोगों का नुकसान भी नहीं है। वित्तमंत्री ने तो घोषणा कर दी है कि अब आयकर दाताओं को एक प्रस्तावित आयकर रिटर्न के दस्तावेज हासिल हो जाएंगे और यदि उनसे वे संतुष्ट हो जाएं, तो उन्हें ही दाखिल कर दें।
काॅर्पोरेट सेक्टर को भी सरकार ने कुछ राहत दी है। अब 400 करोड़ रुपये तक के टर्नओवर वाली कंपनियों को 25 फीसदी तक ही काॅर्पोरेट टैक्स देना होगा। पहले यह सीमा 250 करोड़ तक की ही थी। अब ऐसी कंपनियों की संख्या एक प्रतिशत भी नहीं हैं, जिन्हें 3 फीसदी कार्पोरेट टैक्स देना पड़ेगा। काॅर्पोरेट सेक्टर शायद बड़ी रियायतों की उम्मीद कर रहा था, लेकिन वे रियायतें उन्हें नहीं मिली। शायद इसी की प्रतिक्रिया शेयर बाजार दिखा रहा है।
आज देश के सामने बेरोजगारी सबसे बड़ी समस्या और सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती के रूप में मौजूद है। बेरोजगारी ही गरीबी का कारण भी है। इस समस्या के प्रति अपनी संवेदनशीलता दिखाने के बावजूद वित्तमंत्री ने सरकार की यह स्थिति स्पष्ट कर दी है कि रोजगार के लिए लोग सरकारी नौकरियांे की ओर नहीं देखें। सरकार अपने तरीके से रोजगार की समस्या को हल करना चाहती है। रोजगार की समस्या को हल करने के लिए उसने निजी सेक्टर को जिम्मा सौंप रखा है और उसका जोर ऐसे लाखों उद्यमी तैयार करना है, जो करोड़ों रोजगार पैदा करें। निजी उद्यमियों और उनमें काम करने वाले कामगारों के बीच संबंधो को स्पष्ट करने के लिए श्रम कानूनों में व्यापक बदलाव करने की घोषणा भी वित्तमंत्री ने कर डाली है। वर्तमान श्रम कानूनों की जगह चार श्रमिक कोड तैयार किए जाएंगे। ये कोड क्या होंगे, इसका पता तो तभी ही चलेगा, जब इनसे संबंधित विधेयक सामने आएगा, लेकिन सरकारी पार्टी के दर्शन को देखते हुए हम अनुमान लगा सकते हैं कि श्रमिक संगठनों के लिए उन श्रमिक कोडों को पचाना आसान नहीं होगा।
सरकार अपने स्वच्छता मिशन की कामयाबी पर इतरा रही है और वित्तमंत्री का दावा है कि आगामी 2 अक्टूबर तक स्वच्छता मिशन का लक्ष्य हासिल कर लिया जाएगा। लेकिन जब हम चारों तरफ नजरें उठा कर देखते हैं, तो सरकार के इस दावे पर शक होता है। गंदगी अभी भी एक बड़ी समस्या है। सरकारी कागजों पर सरकार चाहे जो लक्ष्य हासिल कर ले, लेकिन उसका उद्देश्य पूरा होता नहीं दिखता है। अब तो हम जो हवा सांस में ले रहे हैं वह भी गंदी है और लगातार गंदी होती जा रही है।
पानी का संकट हम देख रहे हैं। यह लगातार गहराता जा रहा है। सरकार दावा कर रही है कि देश के सभी घरों में वह नल का पानी मुहैया कराएगी। सचाई यह है कि पीने योग्य पानी लगातार कम होता जा रहा है। नदियां उथली होती जा रही हैं और जमीन के नीचे पानी का स्तर लगातार गिर रहा है। लेकिन पानी की उपलब्धता को बढ़ाने के लिए बजट में कोई गंभीर प्रावधान नहीं किए गए हैं। देश के एक भाग को दूसरे भागों से कनेक्ट करने का अभियान सही है और इसके लिए तेल उत्पादों पर लगाए गए सेस भी गलत नहीं हैं। लेकिन देखना होगा कि वित्तमंत्री के कितने दावे सही होते हैं। (संवाद)
सीतारमण का निर्मल बजट: दावे कितने सही हो पाएंगे?
उपेन्द्र प्रसाद - 2019-07-05 10:42
पहली पूर्णकालिक महिला वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने मोदी सरकार का बजट पेश करते हुए यह साबित करने की कोशिश की है कि उनमें एक अर्थशास्त्री की दृष्टि है। यह दृष्टि उनके पूर्ववर्ती अरुण जेटली में नहीं थी, क्योंकि वे अर्थशास्त्र की पृष्ठभूमि से थे ही नहीं। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की अर्थशास्त्र की छात्रा रहीं निर्मला सीतारमण ने वह सब करने की कोशिश की है, जो करने का वायदा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पिछले दिनों संपन्न लोकसभा के चुनाव प्रचार के दौरान कर रहे थे।