इसके पहले उसकी नीति रही थी कि उपचुनाव नहीं लड़े जाएं। इसके पीछे तर्क यह था कि उपचुनाव में सत्तारूढ़ दल विपक्षी उम्मीदवारों को चुनाव नही जीतने देते और सत्ता का इस्तेमाल कर वे किसी तरह खुद ही चुनाव जीत जाते हैं। लेकिन मायावती ने अब अपनी नीति बदल डाली है।

इस बार उनकी नजर 2022 के विधानसभा चुनावों पर है और उनकी कोशिश यह रहेगी कि उनकी पार्टी के उम्मीदवार समाजवादी पार्टी के उम्म्ीदवार से बेहतर प्रदर्शन करें, बेशक भाजपा उम्मीदवारों से वे चुनाव हार जाएं। 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में मुस्लिम और भाजपा विरोधी मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए बसपा को सपा से बेहतर प्रदर्शन करना होगा।

समाजवादी पार्टी को दरकिनार करने के बाद बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने दिल्ली और लखनऊ में समीक्षा बैठकें कीं और यादव वोटों को बसपा उम्मीदवारों को हस्तांतरित करने में अपनी विफलता के लिए समाजवादी पार्टी को दोषी ठहराया।

यह दावा सही नहीं है। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार यादवों ने बसपा के उम्मीदवारों को वोट दिया, लेकिन इसके विपरीत मायावती समाजवादी पार्टी के उम्मीदवारों को अपना वोट हस्तांतरित करने में विफल रहीं। यह एक ज्ञात तथ्य है कि बसपा को कभी भी मुसलमानों के वोट नहीं मिले क्योंकि उसे अल्पसंख्यकों के लिए भरोसेमंद नहीं माना जाता था।

मुसलमानों ने बसपा को वोट देने से परहेज किया क्योंकि मायावती भाजपा के समर्थन से तीन बार सीएम बनीं। इतना ही नहीं, उन्होंने गुजरात में भाजपा के लिए प्रचार भी किया और श्री मोदी के साथ मंच भी साझा किया।

2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान, बसपा मुस्लिम वोट पाने में सफल रही, क्योंकि वह गठबंधन का हिस्सा थी। गतबंधन से अब बसपा को उपचुनावों के दौरान मुस्लिम वोट हासिल करने में कठिनाई का सामना करना पड़ेगा।

बसपा पर परिवार के हितों को बढ़ावा देने का भी आरोप होगा क्योंकि उन्होंने अपने छोटे भाई आनंद को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और उनके बेटे आकाश को राष्ट्रीय समन्वयक बनाया था। दलित विशेषज्ञों की बहुत आलोचना हुई है कि मायावती संस्थापक कांसीराम की विचारधारा से भटक कर परिवार को बढ़ावा देने में व्यस्त हैं।

पदाधिकारियों के साथ समीक्षा बैठकों के दौरान, मायावती ने गठबंधन से बाहर आने के कारणों को समझाया और उन्होंने उन्हें कड़ी मेहनत करने और जनता के बीच पहुंचने और पिछली बसपा सरकारों के अच्छे कार्यों का संदेश फैलाने के लिए कहा।

गौरतलब है कि समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मायावती द्वारा सार्वजनिक किए गए आरोपों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि विपक्षी मतों में विभाजन के कारण, बसपा सपा और कांग्रेस के लिए चुनावों का सामना करना मुश्किल होगा। लेकिन सभी दल विधानसभा सीटों के लिए आगामी उपचुनावों में बसपा की संभावनाओं पर नजर लगाए हुए हैं। (संवाद)