यही कारण है कि 22 देशों ने चीन की आलोचना करते हुए आरोप लगाया कि वह शिनझियांग प्रांत के उयिधर मुसलमानों के धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकारो का हनन कर रहा है, बल्कि उनके ऊपर भारी अत्याचार कर रहा है। कहा जाता है कि चीन ने करीब 20 लाख उयिघर मुसलमानों को बंदी बना रखा है और उनको प्रशिक्षित करने के नाम पर उनपर भारी जुल्म किए जा रहे हैं। चीन अपने कदम को यह कहते हुए उसे न्यायसंगत बताता है कि वह आतंकवाद और इस्लामी अलगाववाद के खिलाफ वहां के नागरिकों को शिक्षित कर रहा है। लेकिन शिक्षित करने के नाम पर जो कुछ किया जा रहा है, उसे इस्लामी दृष्टिकोण से शिक्षा नहीं कहा जा सकता।
एक आस्थावादी मुसलमान रमजान के महीनों मेेें रोजा रखना अपना धार्मिक दायित्व मानता है, लेकिन रमजान के दौरान रोजा रखने की इजाजत वहां प्रशासन नहीं देता। रोजा रखने वालों को जर्बदस्ती खिलाकर या पिलाकर उनका उपवास तुड़वा दिया जाता है। रोजा के दौरान खाने पीने के दुकानो को खुले रखने के लिए बाध्य किया जाता है। अनेक ऐसे मुस्लिम नाम हैं, जो वहां के लोग रख नहीं सकते। खबर तो यह भी है कि मस्जिदों को वहां गिराया जा रहा है। पुरूषों को वहां दाढ़ी नहीं रखने दी जाती और महिलाओं के लिए बुर्का पहनना प्रतिबंधित कर दिया गया है। इस्लामी शिक्षा पर प्रतिबंध लगा हुआ है। खबर तो यहां तक जबतब आती रहती है कि कुरान पर भी वहां बैन लगा हुआ है।
जिन 20 लाख उयिघर मुसलमानों को शिक्षा और प्रशिक्षण कैंपों में बंद करके रखा गया है, उनके बारे में कहा जाता है कि उन्हें बंधुआ मजदूर बना कर वहां रखा गया है और बिना उनको कोई भुगतान किए हुए उनसे अमानवीय हालत में औद्योगिक ईकाइयों में काम कराया जाता है। उन मजदूरों को अपने परिवारों से दूर रखा जाता है। उनमें न सिर्फ पुरुष हैं, बल्कि महिलाएं भी हैं। आलोचको के अनुसार वह हिटलर के कांस्ट्रेशन कैंप्स जैसे हैं, जिसमें मानवाधिकार के लिए कोई जगह नहीं हैं।
जब संयुक्त राष्ट्र में यह मामला उठा और इसके 22 सदस्य देशों ने चीन की इसके लिए आलोचना की, तो चीन ने अपना बचाव करते हुए कहा कि वह जो कुछ कर रहा है वह आतंकवाद और मुस्लिम अलगाववाद का सामना करने के लिए कर रहा है और वे कैंप वास्तव में प्रशिक्षण कैंप हैं, जिनमें उयिघर मुसलमानों को व्यावसायिक प्रशिक्षण दिया जाता है। मानवाधिकार हनन के आरोप को चीन से सिरे से खारिज कर दिया।
आश्चर्य की बात है कि चीन अपने आपको यह कहते हुए अपनी पीठ थपथपा रहा था कि इस्लामी अलगाववाद के लिए वह ऐसा कर रहा है, लेकिन किसी मुस्लिम देश ने उसके खिलाफ कुछ नहीं कहा। जिस 22 देशों ने चीन की आलोचना की, वे ईसाई बहुमत वाले देश हैं। उनमें अमेरिका, आॅस्ट्रेलिया और यूरोपीय देश शामिल हैं, जहां ईसाई आबादी बहुमत में हैं। अपनी आलोचना को कमजोर करने के लिए चीन ने अभियान चलाया और उसके पक्ष में 37 देश खड़े हो गए। उन 37 देशों में अनेक इस्लामी देश शामिल हैं।
भारत का पड़ोसी देश पाकिस्तान, जिसका गठन ही इस्लाम के नाम पर हुआ था, इस मसले पर चीन के साथ है। वह चीन की हां में हां मिलाता हुआ कह रहा है कि वहां मानवाधिकारों का हनन नहीं हो रहा। कश्मीर में आतंकवाद और इस्लामी अलगाववाद को हवा देने वाला पाकिस्तान चीन में उयिघर मुसलमानों पर होने वाले अत्याचार को अत्याचार नहीं मानता। शायद उसकी कमजोरी है कि वह चीन को नाराज नहीं कर सकता, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय समुदाय में अलग थलग पड़ता जा रहा है और जबतब उसे चीन का समर्थन मिल जाता है। गौरतलब हो कि मसूद अजहर के मसले पर पाकिस्तान को लंबे समय तक चीन का समर्थन हासिल होता रहा। इसी बिना पर चीन पाकिस्तान को समर्थन कर रहा था कि शिनझियांग प्रांत में मुस्लिम अलगाववादियों के खिलाफ उठाए गए चीनी कदम का वह विरोध नहीं करेगा और अपने देश में सक्रिय आतंकवादियों को शिनझियांग में हस्तक्षेप नहीं करने देगा।
यानी हम पाकिस्तान की विवशता को समझ सकते हैं, लेकिन सऊदी अरब, सीरिया, यमन कतर और कुछ अन्य इस्लामिक देश भी इस मसले पर चीन की हां में हां मिला रहे हैं। उन सबका मानना है कि चीन मे मानवाधिकारों का हनन नहीं हो रहा है। यह कुछ अटपटी स्थिति बनी हुई है, जिसमें ईसाई देश मुसलमानों के खिला हो रही ज्यादती का विरोध कर रहे हैं, जबकि मुस्लिम देश उस ज्यादती को ज्यादती ही नहीं मानते। उनमें से कुछ देश चुप हैं, तो कुछ देश मुखर होकर चीन के साथ हैं।
मुस्लिम देशों के अलावा उन देशों को भी चीन को समर्थन मिल रहा है, जहां का मानवाधिकार का रिकाॅर्ड खराब है। जैसे रूस भी चीन का समर्थन कर रहा है और उत्तर कोरिया भी। म्यान्मार भी इस मसले पर चीन के साथ ही है। रूस, उत्तर कोरिया और म्यान्मार में मानवाधिकारों की क्या स्थिति है, यह किसी से छिपी हुई नहीं है। मानवाधिकार की स्थिति तो सऊदी अरब और सीरिया में भी खराब है। लेकिन इस्लाम के नाम पर कसमें खाने वाले ये देश चीन के मामले पर अपनी इस्लामियत क्योे भूल जाते हैं? जाहिर है, धर्म की ही राजनीति नहीं की जाती, बल्कि राजनीति का भी अपना धर्म होता है और इसी धर्म का ये देश पालन कर रहे हैं। (संवाद)
शिनझियांग मसले पर मुस्लिम देशों का चीन को समर्थन
धर्म की राजनीति या राजनीति का धर्म?
उपेन्द्र प्रसाद - 2019-07-15 09:53
शिनझियांग मसले पर अमेरिका और यूरोपीय देश खिन्न हैं, क्योंकि वहां के मुसलमानों की धार्मिक आस्था के अधिकार को चीन ने बाधित कर रखा है। गौरतलब हो कि शिनझियांग चीन का पश्चिमी प्रांत है, जो कभी तुर्कीस्तान का हिस्सा था। उसे आज भी चीनी तुर्कीस्तान कहा जाता है। यह क्षेत्रफल के लिहाज से चीन का सबसे बड़ा प्रांत है। लेकिन इस प्रांत में सबसे अधिक संख्या उन उयिघरों की है, जो मुसलमान हैं। चीन एक साम्यवादी धर्मनिरपेक्ष देश है, लेकिन उसकी धर्मनिरपेक्षता भारत वाली धर्मनिरपेक्षता नहीं है, जहां सभी लोगों को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार मिला हुआ है। चीन में धार्मिक स्वतंत्रता हो हतोत्साह ही नहीं, बल्कि बाधित भी किया जाता है।