दरअसल भारत का दार्शनिक इतिहास और उसकी परंपराएं ही कुछ ऐसी रही हैं कि हम धन को माया समझते हैं और जाहिर है, जिसने धन इकट्ठा कर रखा हो, वह मायावी हुआ। मायावी मतलब छलिया और छलिया भारत के समाज में ही क्यों दुनिया के किसी भी समाज में आदरणीय स्थान हासिल नहीं करता। लेकिन मोदीजी को लगता है कि जो धन पैदा कर रहा है, उसे प्रोत्साहन मिलना चाहिए, ताकि अपने धन से वह समाज की सेवा कर सके। पर तथ्य यह भी है कि जो अपने धन से समाज सेवा करता है, समाज में उसका सम्मान भी होता है, लेकिन आमधारणा फिर भी यही रहती है, पैसा बनाने वाले लोग कुछ न कुछ गलत करके ही आगे बढ़ते हैं। बिना अनैतिक काम किए हुए आप अत्यधिक धनलाभ नहीं कर सकते। जैसे अगर व्यापार करना हो तो आपको झूठ बोलना ही पड़ेगा और झूठ बोलना गंदा काम है। बचपन से ही सिखाया जाता है कि झूठ बोलना पाप है और झूठ बोलकर ही सफल व्यापारी कोई हो सकता है। मतलब कि यदि आप धनवान हैं, तो आपने यह काम झूठ बोलने का पाप करके ही किया होगा।
यह तो हुआ धन और धनवानों को लेकर भारतीय पारंपरिक दर्शन, आधुनिक माक्र्सवादी दर्शन भी यही कहता है कि श्रम के शोषण से ही पूंजीपति धनवान बनते हैं। उत्पादन में श्रम का इस्तेमाल होता है और श्रम के इस्तेमाल से ही उत्पाद में कीमत आती है। पैदा हुई कीमत का एक बहुत ही छोटा हिस्सा उन मजदूरों को दिया जाता है, जिनके श्रम से वह उत्पादन होता है और उसके बहुत बड़े हिस्से को पूंजीपति डकार जाते हैं। भारत में कम्युनिस्ट चुनावी रूप से सफल नहीं रहे हैं, लेकिन श्रम, श्रमिक, पूंजी और पूंजीपति की उनकी अवधारणा ने समाज में अच्छा स्थान बना लिया है और इसके कारण उस तरह की अवधारणाओं को बल मिलता रहा है, जिस तरह की अवधारणाओं से प्रधानमंत्री चिंतित दिखाई पड़ रहे थे।
प्रधानमंत्री ने 2019 की लोकसभा चुनाव अभियान के दौरान कहा कि भारत में दो तरह के लोग हैं। पहली तरह के लोग वे हैं, जो गरीब हैं और दसरी तरह के लोग वे हैं, जिन्हें गरीबों की गरीबी दू करना है। जाहिर है समाज के सभी तबकों के प्रति प्रधानमंत्री सकरात्मक रवैया रखना और दिखाना चाहते हैं। वे माकर््सवादियों की तरह समाज को अमीर और गरीब के दो आपस में युद्ध करने वाले समूह की तरह नहीं देखते, बल्कि वे दोनों समूहों को एक दूसरे का पूरक बताना चाहते हैं।गरीबों के प्रति सहायता भाव पालो। उनकी सेवा करो। दरिद्र ही नारायण हैं। इस तरह की बातें हम सुनते रहे हैं और अब प्रधानमंत्री ने एक नया विमर्श सामने रखा है, जिसके तहत जो अमीर हैं, उनके प्रति असहिष्णुता का भाव मत रखो। उन्हें अपना वर्ग शत्रु मत समझो। उनके साथ सहयोग करो। सहयोग करोगे, तो वे और भी धन पैदा करेंगे और जब धन पैदा करेंगे, तो उनसे गरीबों का भी कल्याण होगा, क्योंकि धन गरीबों तक तभी पहुंचेगा, जब धन होगा और जब धन नहीं होगा, तो फिर किस धन का वितरण होगा।
जवाहरलाल नेहरू के प्रधानमंत्रित्व काल में जब भारत का समाजवादी पैटर्न का समाज बनाने का दबाव था और धन के समान वितरण की बात होती थी, तो अर्थशास्त्रियों का एक वर्ग आंकड़े लेकर खड़ा हो जाता था कि यदि देश के पूरे धन को लोगों के बीच बराबर बराबर बांट दिया जाय, तो फिर समाज कैसा रहेगा। वे कहते थे कि वैसी हालत में देश के सभी लोग गरीब हो जाएंगे। यानी समाजवादी समाज का मतलब अमीरी बांटना नहीं, बल्कि गरीबी बांटना हो जाएगा। इसलिए उन्होंने कहा कि फल को बांटे, उसके पहले फल को बड़ा तो हो जाने दो। यानी समाजवादी समाज के लिए जरूरी वितरण की समानता का उद्देश्य हासिल करने के लिए थोड़ा और धैर्य रखने के लिए कहा गया।
अब न तो नेहरू प्रधानमंत्री हैं और न ही कांग्रेस की सरकार है। अभी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हैं और सरकार भाजपा की है, जिसका दर्शन कांग्रेस के दर्शन से अलग है। हालांकि अपनी स्थापना के समय भारतीय जनता पार्टी ने 1980 में अपना उद्देश्य भारत में गांधीवादी समाजवाद लाना बताया था। उसका गांधीवादी समाजवाद क्या था, उसने कभी स्पष्ट नहीं किया और अब तो वे गांधीवादी समाजवाद की चर्चा भी नहीं करते।
वैसे गांधीजी का भी संपत्ति, संपत्ति अर्जन और संपत्ति धारण पर अपने विचार थे और उनके विचार गीता पर आधारित थे। गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है कि मेहनत से तुम्हें जो परिणाम या फल मिल रहा है, उस पर सिर्फ तुम्हारा अधिकार नहीं है। जिस तरह आज के अर्थशास्त्री उत्पादन के पांच साधन बताते हैं, उसी तरह गीता में भी पांच कारकों को किसी फल या उत्पादन के लिए जिम्मेदार बताया गया है। उनके नाम भी दिए गए हैं। उद्यमी को कृष्ण पांच कारकों में से एक मानते हुए कहते है कि उस पर तुम्हारा अधिकार कैसे हो गया। उस पर समाज का अधिकार है। गांधीजी भी यही कहते थे कि सारी संपत्ति समाज की है, लेकिन वितरण प्रक्रिया में किसी के पास ज्यादा किसी के पास कम और किसी के पास कुछ है ही नहीं। माक्र्सवादी धन छीनने की बात करते थे, तो गांधीजी ने कहा कि धनी लोग धन को अपने पास ही रखें, लेकिन उसे समाज का धन मानते हुए रखें और यह मानें कि वे उस धन के ट्रस्टी हैं, मालिक नहीं। (संवाद)
धन अर्जित करने वालों का सम्मान
प्रधानमंत्री का लाल किले से भाषण
उपेन्द्र प्रसाद - 2019-08-17 17:22
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले 15 अगस्त के अपने भाषण में अनेक महत्वपूर्ण बातें कहीं और उनमें से एक बात धन पैदा करने वालो के प्रति हमारे देश के लोगों के रवैये से संबंधित है। उन्होंने सबकुछ स्पष्ट रूप से नहीं कहा, लेकिन जितना कहा उससे यह स्पष्ट होता है कि संपत्ति या धन पैदा करने वालों के प्रति लोगों के वर्तमान रवैये से निराश दिखे। यह कोई छिपी बात नहीं है कि धनवान और ज्यादा संपत्ति वालों को लेकर अनेक प्रकार के धार्मिक और धर्मनिरपेक्ष साहित्य हमारे देश में लिखे गए हैं और उनमें से अधिकांश देश के धनिकों को हेय भाव से देखते हैं। उन्हें कुछ इस तरह दिखाया जाता है, मानों उन्होंने कहीं से या किसी की चोरी करके वह धन इकट्ठा किया हो। उनके बारे में जो वर्तमान धारणा है, उनमें बदलाव की अपील मोदीजी ने 15 अगस्त के अपने भाषण में की हैं।