पहले भी बाबाओं ने पार्टी बनाई अथवा राजनीति में रहे। करपात्री महाराज ने भी एक पाटी्र बनाई थी। पहली लोकसभा का चुनाव भी उनकी पार्टी ने लड़ा था। सफलता नहीं मिली हालांकि उनकी पार्टी के 3 सांसद लांकसभा में चुनकर आए थे। उसके बाद फिर पार्टी का कहीं अता पता नहीं रहा।

एक अन्य योगगुरू की राजनीति में थे। वे थे स्वामी धीरेन्द्र ब्रह्मचारी। उन्होंने कोई पार्टी तो नहीं बनाई थी, लेकिन इन्दिरा गांधी और उनके परिवार के सदस्यों को वे याग सिखाते सिखाते राजनैतिक महत्वाकांक्षा पालने लगे थे। लेकिन वे राजनीति में आगे नहीं बढ़ पाए। सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या रामदेव का भी हश्र करपात्री महाराज जैसा ही होगा अथवा वे कुछ कर पाएंगे।

बाबा रामदेव एक सफल योगगुरू हैं। वे हरियाणा में 1953 में पैदा हुए। लकवा से पीड़ित होकर वे योग की ओर बढ़े। योग द्वारा उनके लकवे का इलाज हो रहा था। वे उससे मुक्त भी हो गए और इसी दौरान वे योग विद्याा में पारंगत भी हो गए। फिर उन्होंने लोगों को मुफ्त याग सिखाना भी शुरू कर दिया। योग का प्रचार करते करते और लोगों को बीमारियों से मुक्ति दिलाते दिलाते उन्हें भारी प्रसिद्धि हासिल कर ली। प्रसिद्धि का कारण अपने योग प्रचार में उनके द्वारा टीवी चैनलों का किया गया इस्तेमाल था। आयुर्वेद की दवाओं और धरेलू नुस्खों का योग के साथ साथ प्रचसर करते करते बाबा रामदेव देश और विदेश के करोड़ों लोगों के बीच में एक परिचित चेहरा और चर्चित नाम हो गए।

बाबा रामदेव के आज करोड़ों प्रशंसक हैं और उनके अनुयाइयों की संख्या भी लाखों मंे हैं। उनका अपना योग और आयुर्वेद का साम्राज्य है, जो अरबों मे है। उनका यह साम्राज्य दिनो दिन फेलता जा रहा है। 6000 लोगों को तो उन्होंने अपने उद्योगों में सीधे सीघे नौकरी दे रखी है। उनके व्यापारिक साम्राज्य से रोजगार के अन्य लाखों अवसर पैदा हुए हैं। वे करपात्री महाराज से बेहतर स्थिति में हैंख् जिन्होने राम राज्य परिषद बनाकर राजनीति में प्रवेश किया था। वे धीरेन्द्र ब्रह्मचारी से भी बेहतर स्थिति में हैं, जिनकी राजनीति इन्दिरा गांधी पर निर्भर थी।

बाबा रामदेव की अपील किसी विशेष संप्रदाय अथवा जाति तक सीमित नहीं है। वे कोई साुप्रदायिक अथवा जातिवादी मसला उठा भी नहीं रहे हैं। उन्होंने देवबंद के जमात ए उलेमा का निमंत्रण स्वीकार कर उनके मंच से हजारो मुस्लिम धार्मिक नेताओं को संबोधित किया था और योग पर प्रवचन देकर उन सबकी वाहवाही हासिल की थी।

राजनैतिक मसलों में उनके लिए सबसे बड़ा मसला भ्रष्टाचार का है। वे राजनीति से भ्रष्टाचार को समाप्त करने की कसमें खाते हुए राजनीति मे आ रहे हैं। किसानों के मसलों को भी वे उठाते हैं। स्वदेशी का भी वे प्रचार करते रहे हैं। जाहिर है उनके पाय अपना एक सुचिंतित दृष्टिकोण है।

लेकिन रामदेव की राजनैतिक यात्रा आसान नहीं है। उन्होंने अपने इर्द गिर्द जो आभा खड़ी की है, उसके पीछे अनेक मुख्यमंत्रियों और केन्द्र के मं़ित्रयो से उनकी नजदीकी भी शामिल रही है। लालू यादव से लेकर नरेन्द्र मोदी तक उनके मुरीद हैं। हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपींदर सिंह हुड्डा से भी उनके बहुत अच्छे संबंध हैं। जाहिर है, उनके मुरीद अनेक पार्टियों में हैं। जब वे खुद राजनीति में आएंगे, तो उन राजनीतिज्ञों से उनके संबंघ प्रभावित होंगे। यह उनके लिए एक समस्या बनकर आ सकती है।

उनकी दूसरी समस्या उनका अरबों का औद्योगिक साम्राज्य है। वे राजनीति और अपने औद्योगिक साम्राज्य के बीच समन्वय बैठाने की चुनौती का भी सामना करते दिखाई पड़ेंगे। वे कह रहे हैं कि आगामी लोकसभा चुनाव में वे सभी 543 सीटों से अपना उम्मीदवार खड़ा करेंगे। उनकी प्रसिद्धि उत्तर भारत में है और दक्षिण भारत में तो योग के क्षेत्र में भी उनके प्रतिद्वद्वी हैं। सवाल उठता है कि क्या सभी सीटों से उन्हे सही उम्मीदवार मिल भी पाएंगे।

जाहिर है राजनीति की डगर योगगुरू के लिए आसान नहीं होगी। (संवाद)