यह साफ लग रहा था कि किसी भी विभाग के किसी भी अधिकारी के पास समस्या के समाधान के लिए कोई आयडिया नहीं था। सभी चुपचाप घ्रटों तमाशा देख रहे थे। उनके नाकामी के कारण महानगर के पॉश इलाके की पॉश बिल्डिंग में लगी आग के कारण 25 लोगों को जान से हाथ धोना पड़ं और दर्जनों घायल हो गए। कुड का तो पता ही नहीं चला।

ज्ब आग लगी तो फायर ब्रिगेड और पुलिस के अधिकारी गण कुछ घ्रटों के लिए मूक तमाशा देखते रहे। उन्हें पता ही नहीं चला कि उन्हें क्या करना चाहिए। यदि परवेज जैसे लोकल लोगों ने अपनी बुद्धि नहीं लगाई होती और अपने स्तर से राहत कार्य नहीं किया होता तो मरने वालों की संख्या और भी ज्यादा होती।

उन लोगों ने पुलिस प्रतिरोध को दरकिनार कर सुलगती आग में प्रवेश किया और उनके लोगों को जलने से बचाया। उनमें से कुछ ने तो आग से घिरे लोगों के पास रस्से फेंके और उन्हें निकलने का मौका दिया। बचाने वाले तो कुछ अस्पताल भी पहुच गए। उस बीच फायर ब्रिगेड और पुलिस अधिकारी तमाशा देखते रहे।

पश्चिम बंगाल सरकार में एक फायर ब्रिगेड मंत्री हैं। यह एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां यह मंत्रालय है। अन्य राज्यों में फायर ब्रिगेड सिविल डिफेंस विभाग के अंदर होता है, लेकिन अलग से फायर ब्रिगेड मंत्री होने के बावजूद उस मंत्री ने घटना की जगह आने की जहमत नहीं उठाई। दमसरी तरफ रेलमंत्री ममता बनर्जी घटना स्थल पर आकर डटी रही।

फायर ब्रिगेड के पास जरूरी सामान तक नहीं थे, जिनसे बाग बुझाई जा सके और लोगों को बचाया जा सके। उसके पास नेठ नहीं थे, जिस पर ऊपर से कोई कुद सके। उसके पास लैडर भी नहीं था। उसके कारण दो घ्रटे तक उनके पाय तमाशा देखने के अलावा कुछ भ नहीं था। पास के एक शहर से दो घंटे के बाद राहत काम बढ़ाने के लिए कुछ सामान आए। जिस महानगर में लोगों की आबादी एक करोड़ से भी ज्यादा हो, वहां फायर ब्रिगेड के पास संसाधनों की वह कमी राज्य सरकार की कुशलता की कहानी कहती है। वहां फायर ब्रिगेड के पास सिर्फ पानी की पतली बौछार करने वाला उपकरण था, लेकिन उसका पानी उसे जगह पहु्रच ही नहीं रहा था, जहां आग नगी हुई थी। (संवाद)