लेकिन लोकसभा चुनावों में मायावती की पार्टी बिधानसभा के अपने प्रदर्शन को दूहरा नहीं सकी। विघानसभा के नतीजों के आधार पर उनकी पार्टी को 40 से ज्यादा सीटें मिलनी चाहिए थीं, पर मिली सिर्फ 21। कांग्रेस और समाजवादी पार्टी को बसपा से ज्यादा सीटें मिली।
लोकसभा चुनावों के नतीजों से जाहिर हो गया कि ब्राह्मण अब कांग्रेस की ओर मुखातिब हैं। कांग्रेस के बेहतर प्रदर्शन की वजह ब्राह्मणों का उसकी ओर बढ़ा झुकाव था। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण राज्य की कुल आबादी के 9 फीसदी हैं।
लोकसभा चुनाव के बाद बसपा नेताओं ने महसूस किया कि ब्राह्मणों को पार्टी और सरकार में ज्यादा तवज्जों मिलने के कारण पार्टी का दलित आधार कमजोर हो रहा है। दलितों का समर्थन बसपा ने उन्हें सवर्ण जातियों के खिलाफ भड़काकर हासिल किया था। सवर्णों को तवज्जो मिलता देख बसपा से उनका मोह भंग हो रहा है, ऐसा पार्टी ने महसूस किया।
पार्टी के नेता अब सोशल इंजीनियरिेग की सफलता की बात को भी गलत मान रहे हैं। उनका कहना है कि पार्टी को उच्च जातियों का समर्थन किसी सोशल इुजीनियरिंग का परिणाम नहीं था, बल्कि वे लोग मुलायम सिंह की सरकार से छुटकारा चाहते थे और उससे छुटकारा पाने के लिए ही उन्होंने बसपा का समर्थन किया था।
लोकसभा के बाद हुए विधानसभा के कुछ उपचुनावों के नतीजों का विश्लेषण करने के बाद पार्टी के नेता इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि ब्राह्मणों का मत अब कांग्रेस को जा रहा है। इसके कारण अब पार्टी ब्राह्मणों के लिए अब अपने दलित मतों का नुकसान करना नहीे चाहती। यही कारण है कि अब वह ब्राह्मण अधिकारियों को प्रशासन के मुख्य पदों से हटा रही हैं और उनकी जगह दलित अधिकारियों को पदस्थापित कर रही हैं। सरकार ने एक झटके में 100 ब्राह्मण अधिकारियों को महत्वपूर्ण पदों से हटाकर सामान्य पदों पर उन्हें भेज दिया है।
सतीशचंद्र मिश्र पार्टी के ब्राहमण चेहरा रहे हैं। पार्टी में उन्हें मायावती के बाद दूसरा सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण व्यक्ति माना जाता है। अब उनको भी दरकिनार कर दिया गया है। पिछले दिनों आयोजित रैली में उन्हें कोई जिम्मेदारी नहीं दी गई थी। मंच से उन्हें बोलने को भी नहीं कहा गया। मायावती ने अपने दो घंटें के भाषण के दौरान कई संकेत दिए, जिनसे लोग समझें कि श्री मिश्र का पार्टी में सीमित महत्व है। मुख्यमंत्री ने अपने भाषण के दौरान कहा कि सतीशचंद्र मिश्र की भूमिका मुकदमों की पैरवी करने तक ही सीमित है। उन्हें पार्टी के कानूनी प्रकोष्ठ का अध्यक्ष बना दिया गया है। (संवाद)
मायावती फिर दलितों की शरण में
ब्राह्मणों को किनारे लगाने का काम शुरू
प्रदीप कपूर - 2010-03-30 14:06
लखनऊः बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो एक बार फिर अपने दलित एजेंडे की ओर वापस आ रही हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में उनकी सफलता को राजनैतिक पंडितों ने उनकी सोशल इेजीनियरिंग का नतीजा बताया था। उस चुनाव में मायावती ने उच्च जाति के लोगों- खासकर ब्राह्मणों को भारी संख्या में टिकट बांटे थे। उनमें से कई जीतकर आए भी। प्रशासन में भी उच्च जाति के लोगों को तवज्जो दिया गया। प्रशासन के मुख्य पदों पर अनेक ब्राह्मण अधिकारियों को बैठा दिया गया।