बहरहाल, गुरु नानक देव की 550 वी जयंती के मौके पर करतारपुर साहिब गलियारे को खोलने की पाकिस्तान की पहलकदमी भारत के सिख श्रद्धालुओं के लिए बहुत बडी राहत है। इस फैसले से भारत के सिख श्रद्धालु तो गदगद है ही, साथ ही दोनों देशों के वे तमाम लोग भी खुश हैं, जो चाहते हैं कि भारत और पाकिस्तान के तनाव भरे रिश्ते खत्म हो, सीमाओं के बंधन शिथिल हों और लोगों की आवाजाही बढे।

करतारपुर साहिब सिखों के सबसे पवित्र आस्था केंद्रों मे शुमार होता है। गुरू नानक ने अपने जीवन के 18 वर्ष यहीं बिताए थे और यहीं पर उनका देहावसान हुआ था। उनकी पवित्र स्मृति में यहां पटियाला के राजा भूपिंदर सिंह की दी हुई दान की राशि से गुरू द्वारा बनाया गया था। यह स्थान पंजाब के गुरदासपुर जिले में भारतीय सीमा से करीब चार किलोमीटर दूर पाकिस्तान वाले पंजाब के नारोवाल जिले में रावी नदी के तट पर स्थित है। दोनों देशों के बीच बेबनाव के चलते इतनी सी दूरी के बावजूद भारतीय सिखों को दूरबीन से अपने इस आस्था-स्थल के दर्शन करके संतोष करना पड़ता था।

महज एक साल पहले दोनों देशों मे बनी सहमति के मुताबिक भारत सरकार ने गुरदासपुर जिला स्थित डेरा बाबा नानक से अंतरराष्ट्रीय सीमा तक गलियारे का निर्माण किया और सरहद से करतारपुर साहिब तक गलियारे के निर्माण का जिम्मा पाकिस्तान सरकार ने उठाया। दोनों ही तरफ निर्माण कार्य तेजी से हुआ और महज दस महीने के भीतर गलियारा बन कर तैयार हो गया- आस्था का और रिश्तों का गलियारा। इस गलियारे का बनना और श्रद्धालुओं के लिए उसका खुलना बताता है कि रिश्तों के बुरे दौर में भी सद्भाव बनाने वाले कुछ कदमों के जरिए तनाव का माहौल कुछ हल्का किया जा सकता है।

हालांकि दोनों के बीच रिश्तों में सुधार के लिए पिछले वर्षों में कई प्रयास हुए लेकिन कोई भी सिरे नहीं चढ पाया। जब भी कोई बडी पहल हुई, पाकिस्तान की धरती पर पलने वाले आतंकवादी गुटों ने किसी न किसी वारदात के जरिए उस पहल को बेअसर करने का काम किया। उधर पाकिस्तानी हुकूमत भी ऐसा कोई कदम नही उठा सकी, जिससे यह लगे कि वह आतंकवादियों पर नकेल कसने के प्रति गंभीर है। जिस तरह भारत की ओर से रिश्तों में सुधार के लिए की गई कोशिशों पर अक्सर पाकिस्तान में पलने वाले आतंकवादियों, वहां के खुदगर्ज सैन्य अधिकारियों और कट्टरपंथी तत्वों ने पानी फेरने और दोनों देशों के बीच तनाव बढाने का काम किया, उसी तरह यही काम हमारी तरफ से भी पिछले कुछ वर्षों के दौरान हो रहा है। हमारे यहां यह काम सरकार के स्तर पर भी हो रहा है और उससे इतर सरकार तथा सत्तारूढ दल के समर्थक कुछ पूर्व सैन्य अधिकारी और मीडिया के एक बड़ा हिस्सा इसमें भी बढ़-चढ़कर भागीदारी कर रहा है। पिछले कुछ महीनों के दौरान तो जितने भी चुनाव हुए, सभी में खुद प्रधानमंत्री ने और उनकी पार्टी ने सबसे बडा मुद्दा ही पाकिस्तान को बनाया और उनके सुर में सुर मिलाते हुए टेलीविजन चैनलों ने पूरे देश में युद्धोन्माद पैदा किया।

चुनावों के दौरान जैसे हमारे यहां ‘पाकिस्तान’ का इस्तेमाल मतदाताओं के ध्रुवीकरण के लिए होता है, उसी तरह पाकिस्तान की राजनीतिक जमातें भी अपने यहां चुनाव के वक्त भारत के खिलाफ जहरबूझे बयानों के जरिए भारत विरोधी माहौल बनाती हैं। जिस दौरान करतारपुर गलियारे की तैयारियों की खबरें आ रही थीं, उस दौरान भी अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा खत्म करने को लेकर पाकिस्तान में युद्धोन्माद फैलाया जा रहा था। खुद प्रधानमंत्री इमरान खान भी और उनके मंत्री तथा सैन्य अधिकारी भी युद्ध की भाषा बोल रहे थे। उसकी प्रतिक्रिया में भारत की ओर से भी राजनीतिक और सैन्य नेतृत्व वैसी ही गरमी दिखा रहा था।

बहरहाल दोनों देशों के बीच तनाव के चलते औपचारिक संवाद न होते हुए भी दोनों देशों ने करतारपुर साहिब संबंधी प्रस्ताव को आगे बढाया और पाकिस्तान ने इस पर सकारात्मक फैसला किया, जो बताता है कि रिश्तों में सुधार की इच्छा दोनों तरफ कायम है। पाकिस्तान ने तो अपने हिस्से वाले करतारपुर गलियारे के शिलान्यास कार्यक्रम में शिरकत करने के लिए भारत की तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को भी न्योता दिया था, लेकिन वे नहीं गईं या उन्हें नहीं जाने दिया गया। अगर वे जातीं तो एक सकारात्मक संदेश भारत की ओर से जाता और दोनों देशों के रिश्तों पर जमी बर्फ आंशिक रूप से ही सही, मगर पिघलती जरुर। सुषमा स्वराज उस समय पूरी तरह स्वस्थ तो नहीं थीं, फिर भी सक्रिय थीं और वे जा सकती थीं। लेकिन उन्होंने न जा पाने की वजह बताई थी, वह बेहद पिलपिली थी। उन्होंने कहा था कि तेलंगाना में चुनाव प्रचार सहित पहले निर्धारित अन्य कार्यक्रमों में अपनी व्यस्तता के चलते वे इस कार्यक्रम में शामिल नहीं हो पा रही हैं।

खैर, दोनों तरफ करतापुर गलियारे के उद्घाटन के मौके पर दोनों देशों की ओर से सकारात्मक बातें ही कही गई हैं। भारत की ओर जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान और करतारपुर गलियारे के पाकिस्तानी हिस्से के निर्माण को मूर्त रूप देने वाले कामगारों को बधाई और धन्यवाद दिया, वहीं इमरान खान ने भी बातचीत की अपनी पूर्व में ठुकराई गई पेशकश का जिक्र करते हुए एक बार फिर बातचीत की इच्छा जाहिर की है। जो भी हो, इस समय तो करतारपुर गलियारा खुलने और सिख श्रद्धालुओं की वहां आवाजाही शुरू होने से एक उम्मीद जागी है। (संवाद)