उल्लेखनीय होगा कि उत्तर प्रदेश की कुल आबादी में 20 प्रतिशत की उपस्थिति के साथ मुस्लिम समुदाय वोट की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कुछ लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों में, चुनाव के दौरान मुस्लिम निर्णायक भूमिका निभाते हैं।
मुस्लिम समुदाय इस तथ्य से अवगत है कि कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बसपा ने फैसले का स्वागत किया है। दूसरी ओर एमआईएम के असदुद्दीन ओवेसी ने फैसले की खुलकर आलोचना की है।
मुस्लिम समुदाय इस तथ्य से भी अवगत है कि इसने कई दशकों तक कांग्रेस का समर्थन किया था और मंत्रालय और प्रशासन में सत्ता और हिस्सेदारी का आनंद भी लिया था।
यह एन डी तिवारी के शासन के दौरान अयोध्या में शिलान्यास के बाद ही मुसलमानों ने कांग्रेस का साथ छोड़ा था।
यूपी के तत्कालीन सीएम मुलायम सिंह यादव पूरे देश में मुस्लिम समुदाय के नायक उस समय बने, जब उन्होंने 1990 में बाबरी मस्जिद की रक्षा के लिए अयोध्या में कारसेवकों पर गोलीबारी करने का आदेश दिया। रातोंरात मुलायम सिंह यादव उन मुसलमानों के लिए हीरो बन गए, जो पहले कांग्रेस के कट्टर समर्थक हुआ करते थे। उसके बाद चुनाव दर चुनाव मुसलमाना मुलायम सिंह की पार्टी को वोट देते रहे और उनके समर्थन के कारण मुलायम सिंह की सरकार कई बार प्रदेश की सत्ता में आई और एक बार तो केन्द्र में भी सत्ता में भागीदारी की।
बहुजन समाज पार्टी और उसकी नेता मायावती ने भी मुस्लिम कार्ड खेला। कई बार तो बहुत ही फूहड़ता के साथ मुस्लिम कार्ड खेला। लोकसभा और विधानसभा चुनावों में मुसलमानों को भारी संख्या में टिकट भी बांटे, लेकिन उन्हें समुदाय का समर्थन आमतौर पर नहीं मिला। मुसलमानों ने मायावती से परहेज किया क्योंकि वह भाजपा की मदद से तीन बार सत्ता में आईं थी। उन्हें हमेशा यह डर सताता रहा कि उनके वोट से जीतकर मायावती की पार्टी कभी भी बीजेपी के साथ फिर से हाथ मिला सकती है। यही कारण है कि मुसलमानों का झुकाव कभी भी बसपा की ओर नहीं हुआ। हां, बसपा के मुस्लिम उम्मीदवारों के लिए वे कभी कभी वोट कर दिया करते हैं।
2017 के विधानसभा चुनावों के दौरान, मायावती ने आक्रामक मुस्लिम कार्ड खेला था, लेकिन मुस्लिम समुदाय का उन्हें समुदाय से समर्थन नहीं मिला। इसके विपरीत, मायावती की रणनीति ने बीजेपी को हिंदू वोटों के एकीकरण में मदद की जिसके परिणामस्वरूप अच्छी संख्या में भाजपा को सीटें मिलीं।
वर्तमान में प्रगतिशील मुसलमान मौलवियों से दूरी बनाए रखना चाहते हैं और अपने हितों की रक्षा के लिए राष्ट्रीय पार्टी से हाथ मिलाना चाहते हैं। यह राय मुस्लिम समुदाय में जोर पकड़ रही है कि क्षेत्रीय दल उनके हितों की रक्षा नहीं कर पाएंगे।
इसके साथ ही मुस्लिम समुदाय का एक वर्ग है जो फायरब्रांड नेता असदुद्दीन ओवैसी की ओर आकर्षित हो रहा है, जो भाजपा और संघ परिवार को खुली चुनौती देते हैं। लेकिन मुसलमानों को पता है कि ओवेसी के साथ जाने से बीजेपी और संघ परिवार को मदद मिलेगी और वह और भी मजबूत होगी। (संवाद)
अयोध्या पर फैसला और उसके बाद
क्षेत्रीय दलों में उत्तर प्रदेश मुस्लिम के विश्वास डिग रहे हैं
प्रदीप कपूर - 2019-11-20 09:53
लखनऊः अयोध्या के फैसले के बाद, मुस्लिम समुदाय उत्तर प्रदेश में बहस कर रहा है कि भविष्य में किस पार्टी को समर्थन देना है। गौरतलब हो कि अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला मुसलमानों के मन मुताबिक नहीं गया है। वे चाहते थे कि बाबरी मस्जिद जिस भूखंड पर खड़ी थी, वह भूखंड उन्हें मिले। पर सुप्रीम कोर्ट ने उस भूखंड के बदले अयोध्या में किसी और जगह मुसलमानों को 5 एकड़ जमीन आबंटित करने का आदेश उत्तर प्रदेश की सरकार को दिया है।