दूसरा सबक भावनात्मक मुद्दों की हरियाणा और महाराष्ट्र में विफलता से संबंधित है। धारा 370 समाप्त करने और तीन तलाक कानून पास कराने के बाद ये चुनाव हो रहे थे। इन दोनों मसलों पर मोदी सरकार को देश के अधिकांश लोगों का भावनात्मक समर्थन मिल रहा था, लेकिन वह समर्थन मतों में परिवर्तित नहीं हो सका। दोनों राज्यों में धारा 370 के तहत कश्मीर को मिले विशेष दर्जे को भाजपा ने सबसे प्रमुख मुद्दा बनाया था। इसके बावजूद उसका प्रदर्शन खराब रहा। राम मंदिर के रूप में उसके पास एक और भावनात्मक मुद्दा है। अभी भी मंदिर वाला पक्ष इस मुकदमे में जीता है और इसका श्रेय निश्चय रूप से भाजपा लेगी। लेकिन धारा 370 जब काम नहीं किया, तो इस मसले के काम करने की भी संभावना दूर दूर तक नहीं दिखाई पड़ती। वैसे राम मंदिर मुद्दे का टेस्ट भी दिल्ली चुनाव के पहले झारखंड में हो जाएगा।

बहरहाल, विधानसभा चुनावों में भावनात्मक मुद्दों की विफलता दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा की चिंता और भी बढ़ाने वाली है। इसका कारण यह है कि उसका सामना यहां आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल से है। जब सामना कांग्रेस से हो, तो भाजपा का काम आसान हो जाता है। कांग्रेस हमले के लिए अनेक टार्गेट उसे दे देती है, लेकिन अरविंद केजरीवाल की बात दूसरी है। वे पिछले पांच साल से सत्ता में हैं और उनका काम पहले के किसी भी सरकार के काम से बेहतर है। केजरीवाल सरकार की शक्तियां सीमित हैं, लेकिन उन सीमित शक्तियों के तहत उन्होंने जो कुछ किया है, उसके कारण उनको हरा पाना असंभव नहीं, तो बहुत कठिन जरूर है। 20 हजार लीटर प्रति माह पानी का इस्तेमाल करने वालों को मुफ्त में पानी दिया जा रहा है। दो सौ यूनिट प्रति माह बिजली लोगों को माफ है। अब तो डीटीसी बसों में महिलाएं मुफ्त में यात्रा कर रही हैं। शिक्षा और स्कूलों की स्थिति बहुत बेहतर हो गई है। दिल्ली के सरकारी स्कूलों के बच्चों के परीक्षा नतीजे प्राइवेट स्कूलों के बच्चों से बेहतर हो रहे हैं। दिल्ली सरकार के अस्पतालों की स्थिति भी बेहतर हो गई है और सबसे बड़ी बात यह है कि केजरीवाल सरकार के मातहत कार्यालयों में भ्रष्टाचार बहुत कम हो गया है। अब अपना वाजिब काम करवाने के लिए रिश्वत देने की विवशता किसी की नहीं रही।

वैसे विरोधी से सामना करना भारतीय जनता पार्टी के बहुत ही टेढ़ी खीर है। लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने केजरीवाल सरकार की मुफ्त में चलने वाल स्कीम का तोड़ निकालने के लिए अनधिकृत काॅलोलियों को अधिकृत करने का चाल चला है। दिल्ली के 40 लाख से भी ज्यादा लोग इस तरह की काॅलोनियों में रहते हैं और इस काॅलोनियों को नियमित करने की उनकी मांग उतनी ही पुरानी है, जितनी पुरानी ये काॅलोनियां हैं। भूमि चूंकि केन्द्र सरकार का मसला है, इसलिए केन्द्र की भाजपा सरकार ही इसे नियमित कर सकती है और उसने पिछले महीने उसने घोषणा भी कर दी कि वह 1731 काॅलोनियों को नियमित कर रही है। दिल्ली में कुल 1800 इस तरह की काॅलोनियां हैं। 69 को छोड़कर उसने अन्य सारी काॅलोनियों को नियमित करने की घोषणा कर दी।

लेकिन काॅलोनियां तो वास्तव में तब नियमित समझी जाएंगी, जब इसके सारे मकान केजरीवाल की दिल्ली सरकार के राजस्व विभाग से पंजीकृत हो। केजरीवाल ने नहले पर दहला मारते हुए कहा कि केन्द्र सरकार इससे संबंधित अध्यादेश जारी कर दे और तब दिल्ली प्रदेश की सरकार कैंप लगा-लगाकर दो महीने के अंदर सभी लोगों के मकानों की रजिस्ट्री बहुत ही मामूली रजिस्ट्री फी लेकर कर देगी। केजरीवाल के वार से बचते हुए केन्द्रीय सरकार के मंत्री ने कहा कि अध्यादेश की जरूरत नहीं है, अगले शीतकालीन सत्र में सरकार विधेयक लाकर कानून ही बना देगी।

पर शीतकालीन सत्र में जिन विधेयकों को सूचीबद्ध किया गया है, उनमें दिल्ली की अवैध काॅलोनियों को नियमित किया जाने वाला विधेयक ही नहीं है। आम आदमी को मौका मिल गया और उसने भाजपा और केन्द्र सरकार के खिलाफ धोखा दिवस आयोजित कर डाला और कहा कि केन्द्र सरकार दिल्ली की अनियमित काॅलोनियों में रहने वाले लोगों को धोखा दे रही है और अपनी पूर्व घोषणा के मुताबिक इस पर कानून बनाने की कोई मंशा नहीं है। आम आदमी पार्टी के वार से बचने के लिए अब केन्द्र सरकार ने अब दिल्ली के उपराज्यपाल को आगे किया है। उपराज्यपाल ने नियमितकरण के लिए चलाई जाने वाली योजना का नाम भी बता दिया है। वह नाम है प्रधानमंत्री उदय योजना और उन्होंने कहा है कि इन काॅलोनियों में रहने वाले लोग अपने मकानों को पंजीकृत भी करवा सकेंगे। लेकिन अनेक सवाल अनुत्तरित हैं। वे कब पंजीकृत करा सकेंगे और किसी अथाॅरिटी के पास जाकर करा सकेंगे, इसके बारे में केन्द्र सरकार के पास कहने को कुछ नहीं है, क्योंकि दिल्ली का राजस्व विभाग केजरीवाल सरकार के पास है और मकानों को अधिकृत होने का दस्तावेज वही दे सकती है। लेकिन केन्द्र सरकार किसी भी तरह का श्रेय आम आदमी पार्टी और उसके सरकार को देना नहीं चाहती।

वैसे नियमितकरण की इस प्रक्रिया को अदालत का भी टेस्ट पास करना है। वहां पहले से ही इसका मामला चल रहा है और जिन काॅलोनियों को नियमित होने की सूची में नहीं रखा गया है, वे भी अदालत जाने की तैयारी कर रहे हैं। यानी नियमितकरण का मामला आसान नहीं है। लेकिन इस पर राजनीति करना तो आसान है और वह हो रही है। (संवाद)