उदारमना शिवाजी के नाम पर शिवसेना ने ऐसे काम किए जिनसे मुंबई की शक्ल ही बदल गई। ब्रिटिश राज के दौरान मुंबई आजादी के आंदोलन का सबसे मजबूत केन्द्र था। मुंबई में ही गांधीजी ने अंग्रेजों से कहा था ‘‘भारत छोड़ो‘‘। मुंबई में ही नौसैनिकों ने विद्रोह किया था। मुंबई प्रगतिशील, क्रांतिकारी विचारों का केन्द्र था। मुंबई ट्रेड यूनियन चेतना का प्रतीक था। मुंबई वास्तव मेें एक कास्मोपोलिटन शहर था। इसके साथ ही वह देश का औद्योगिक एवं व्यवसायिक केन्द्र भी था। शिवसेना ने मुंबई के इस चेहरे को बदलने का पूरा प्रयास किया। उसकी तस्वीर एक अत्यधिक साम्प्रदायिक संस्था के रूप में उभरी। शिवसेना ने सबसे पहले दक्षिण भारतीयों से कहा ‘मुंबई छोड़ो‘। दक्षिण भारतीय भाषाओं में लिखे सभी दुकानों और स्थानों के नाम पर कालिख पोत दी। इससे डरकर अनेक दक्षिण भारतीय मुंबई छोड़कर चले गए।
फिर शिवसेना ने अनेक बार घोषणा की कि वह पाकिस्तानियों को मुंबई मंे क्रिकेट नहीं खेलने देगी। जिन मैदानों पर क्रिकेट मैच होने वाला होता था उनकी पिचों को शिवसैनिक तहस-नहस कर देते थे। शिवसेना ने सार्वजनिक रूप से घोषणा की कि वे मुंबई में किसी भी पाकिस्तानी गायक का कार्यक्रम नहीं होेने देगी। इसके साथ ही शिवसेना ने मुसलमानोें के विरूद्ध लगातार विषवमन जारी रखा। मुंबई में होने वाली लगभग प्रत्येक मुस्लिम-विरोधी हिंसा में शिवसैनिक बढ़-चढ़कर भाग लेते थे। बाबरी मस्जिद के ध्वंस के बाद मुंबई मंे एक बड़ा दंगा हुआ। शिवसेना ने दावा किया कि इस दंगे में उसके स्वयंसेवकों ने भाग लिया। यहां तक कि बाला साहब ठाकरे ने यह दावा भी किया कि बाबरी मस्जिद को ‘मेेरे लड़कों ने तोड़ा‘।
मुंबई के दंगों की जांच न्यायमूर्ति श्रीकृष्ण ने की थी। उन्होंने स्पष्ट रूप से दंगों के लिए शिवसेना को दोषी ठहराया था। बालासाहेब ठाकरे से पुलिस प्रशासन समेत दूसरी पार्टियों, विशेषकर कांग्रेस के नेता आतंकित रहते थे। दंगों के दौरान मुंबई के पुलिस आयुक्त ने ठाकरे को गिरफ्तार करने की अनुमति तत्कालीन मुख्यमंत्री सुधाकर राव नाईक से मांगी थी। इसपर नाईक ने कहा कि यदि बाला साहेब ठाकरे को गिरफ्तार किया गया तो मुंबई जल उठेगा। इस पर पुलिस कमिश्नर ने कहा कि जैसे मुंबई इस समय नहीं जल रहा है।
शिवसेना ने बार-बार घोषणा की कि मुंबई मराठी भाषा भाषियों का है। मुंबई में मराठी ही रह सकते हैं बाकी सबको मुंबई छोड़कर चले जाना चाहिए। अनेक अवसरों पर उसने उत्तर भारतीयों के विरूद्ध अभियान चलाया। मुंबई में उत्तर भारतीय टैक्सी और आटो चलाते हैं। अनेक मौकों पर उनसे मुंबई छोड़ने को कहा गया। शिवसेना ने कहा कि वाहन चलाने की अनुमति उन्हीं को दी जाएगी जो मराठी ंभाषी हंै। मुंबई फिल्मों के निर्माण का बड़ा केन्द्र है। बीच-बीच में फिल्म निर्माण से जुड़े लोगों को भी धमकी दी जाती है। बाला साहब ठाकरे ने बार-बार कहा कि वे न्यायपालिका की रंच मात्र भी परवाह नहीं करते हैं। उनका दावा था कि पुलिस तो मेरे कब्जे में है। जब भी किसी पत्रकार या समाचार पत्र ने उनकी आलोचना की तो ऐसे पत्रकार या ऐसे समाचार पत्र के मालिक की टांग तोड़ दी जाती थी।
कुछ वर्ष पहले जब महाराष्ट्र में शिवसेना की सरकार थी उस दरम्यान मुंबई के एक बड़े शायर भोपाल आए थे। मैंने उनका साक्षात्कार लिया था। साक्षात्कार के दौरान मैंने उनसे पूछा कि शिवसेना के राज में दिन कैसे कट रहे हैं। उन्होंने कहा कि मेरे समेत मुंबई मंे रहने वाले मुसलमान बड़े मजे में हैं। उन्होंने कहा कि जब कांग्रेस के राज मंे दंगे होते थे तो शिवसैनिक हमें मारते थे और पुलिस भी हमारी रक्षा नहीं करती थी। कांग्र्रेसी तो घर में घुसे रहते थे। परंतु अब शिवसेना के राज में शिवसैनिक चुप रहते हैं। शिवसेना मंे बाला साहेब की आज्ञा के बिना एक पत्ता तक नहीं हिलता। लगता है अब मुंबई वासी दुबारा अपने आपको सुरक्षित महसूस करेंगे।
क्या अब इस बात की अपेक्षा की जा सकती है कि मुंबई फिर से एक कास्मोपालिटन शहर बन जाएगा? अभी तो पाकिस्तान से हमारे संबंध अच्छे नहीं हैं। परंतु क्या संबंध सुधरने के बाद मुंबई में पाकिस्तान के गायकों के कार्यक्रम हो सकेंगे, पाकिस्तानी खिलाड़ी क्रिकेट खेल सकेंगे, उत्तर भारतीय सुकून से टैक्सी-आटो चला सकेंगे, दक्षिण भारतीय अपनी संस्कृति कायम रख सकेंगे? क्या कांग्रेस व एनसीपी के साथ शासन करते हुए शिवसेना का एजेंडा बदल जाएगा? इस बात की पूरी संभावना है कि राज ठाकरे शिवसेना के एजेंडे के अनुरूप चलाने का प्रयाय करेंगे। ऐसा होने पर उद्धव ठाकरे राज ठाकरे को पूरी दमखम से दबाएंगे। यदि भाजपा, आरएसएस, विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल आदि मुंबई वासियों को शांति से नहीं जीने देंगे तो उद्धव ठाकरे उनका पूरी ताकत से मुकाबला करेंगे। यदि मुंबई शांत रहेगा तो उसका सकारात्मक प्रभाव पूरे देश पर पड़ेगा। (संवाद)
शिवसेना और कांग्रेस का साथ
क्या मुंबई पहले की तरह कास्मोपाॅलिटन नगर बन पाएगा?
एल एस हरदेनिया - 2019-11-30 15:48
अभी तक कांग्रेस का यह दावा था कि उसने कभी किसी साम्प्रदायिक दल से हाथ नहीं मिलाया। संभवतः उसे इस बात पर गर्व भी था। अब पहली बार ऐसा हो रहा है। इसके क्या दूरगामी परिणाम होंगे यह तो भविष्य में ही पता लगेगा। इस संदर्भ में शिवसेना के चरित्र को समझना आवश्यक है। शिवसेना स्वयं को शिवाजी महाराज का अनुयायी बताता है। परंतु इतिहास इस बात का गवाह है कि शिवाजी स्वयं एक अत्यंत उदारवादी राजा थे। उनके संबंध में एक अत्यधिक संवेदनशील कहानी प्रचलित है। एक युद्ध में एक मुस्लिम राजा को हराकर शिवाजी के सैनिक एक अत्यधिक सुंदर मुस्लिम रानी को ले आए। वे उसे शिवाजी को तोहफे के रूप में देना चाहते थे। उसे देखकर शिवाजी आक्रोषित हो गए। उन्होंने उसे तत्काल ससम्मान वापिस भेजने का आदेश दिया। आदेश देते हुए शिवाजी ने कहा, "काश मेरी मां इतनी सुंदर होती तो मैं भी उतना ही सुंदर होता"।