ऐसे में बीस साल पुरानी उस घटना को याद कर स्वाभाविक सवाल है कि क्या आईसी 814 अपहरण को टाला जा सकता था ?क्या विमान में कैद 155 मुसाफिरों में से चंद भी होशियार होते, तो पांच अपहर्ताओं के मंसूबे पर पानी फेरना कोई बडा काम नहीं था? क्योंकि ऐसे नापाक कोशिशों को व्यक्तिविशेष के हाथों विफल करने के शौर्य की कई कहानियों से इतिहास भरा पड़ा है। इसके अलावा भी सवाल है किक्या विमान को कमांडो कार्रवाई से अमृतसर के राजसांसी हवाईअड्डे औऱ यूएई के दुबई अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डा पर अपहर्ताओं से मुक्त कराया जा सकता था ? क्या विमान को तालिबान शासित अफगानिस्तान के कंधार पहुंचने से रोका जा सकता था ? क्याअपहर्ताओं के बजाय तालिबान सरकार से ही सौदेबाजी कर बड़ी सफलता का मिलना संभव था? क्या अपहर्ताओं को सौदे में मौलाना अजहर मसूद और उमर शेख सईद जैसे खुखांर आंतकवादियों की रिहाई से कम पर मनाया जा सकता था? आप पड़ताल से निकले जवाब से चौंक सकते हैं किइन तमाम सवालों के जवाब “हां” में हैं। बस जरुरत सुरक्षा और कूटनीतिक एजेंसियों की ओर से सिर्फ दक्षता और शौर्य के प्रदर्शन की थी।
इंडियन एयरलाइंस आईसी 814 विमान अपहरण की सीबीआई जांच में सामने आए तथ्य और समय समय पर इसमें शामिल सुरक्षा और खुफिया अधिकारियों से निजी मुलाकातों के अनुभव से मिली मेरी गवाही कहती है कि टाला जा सकता था इंडियन एयरलाइंस आईसी 814 विमान का अपहरण। क्योंकि एजेंसी के पास थी विमान अपहरण कीशुरुआती जानकारी थी। उन जानकारियों के आधार पर ही विमान अपहरण की खबर के साथ ही मुंबई के हैंडलर मोहम्मद लतीफ को सुरक्षा घेरे में ले लिया गया था। भारतीय एजेंसियों के पास आईएसआई के सरंक्षण में भारतीय विमान के अपहरण की साजिश की जानकारी थी। लिहाजा,काठमांडू के त्रिभुवन अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट पर अपहरण के अंदेशे को लेकर खास अलर्टजारी कर रखा गया था। बल्कि तत्कालीन रॉ चीफ ए एस दुल्लत के हवाले से आई जानकारी बताती है कि उनके काठमांडू ऑफिस स्थित रॉ अधिकारी शशिभूषण सिंह तोमर जानकारी को लेकर गंभीर तो आतंकियों का कथित फूलप्रूफ प्लान विफल हो सकता था।
तथ्य हैं कि काठमांडू के रॉ आफिस में तैनात यूवी सिंह ने आईपीएस अधिकारी शशिभूषण सिंह तोमर कोभारतीय विमान के अपहरण की जानकारी दी थी।लेकिन वरिष्ठ अधिकारी तोमर ने मातहत अधिकारी की जानकारी को गंभीरता से नहीं लिया।कथित लापरवाही का आलम रहा कि अपहरण के अंदेशे कोअफवाह बताकर उन्होंने नजरअंदाज कर दिया। यह जानकारी पूछताछ की रिकार्ड में दर्ज है।इतना ही नहीं रॉ अधिकारी शशिभूषण सिंह तोमर के साथ एक बड़ा इत्तेफाक हुआ। जासूसी की दुनिया में इत्तेफाक की कोई जगह नहीं होती है लेकिन काठमांडू में तैनात शशिभूषण सिंह तोमर को अचानक से दिल्ली जाने का कार्यक्रम बनाना पड़ा। इत्तेफाक से वह इंडियन एयरलाइंस के अपहृत विमान कीसीट नंबर 16 सी के मुसाफिर थे। सुरक्षा एजेंसियों की पूछताछ में उन्होंने अपने इस सफर की वजह पत्नी सोनिया तोमर के इलाज की जरुरत बताया। उनको डाक्टरी सलाह के मुताबिक पत्नी के फैक्चर से जुड़ी तकलीफ से निदान के लिए अचानक दिल्ली में किसी बडे हॉस्पिटल से परामर्श का एप्वाईंटमेंट मिला था।
रिश्तेदारी के लिहाज से भी उनदिनों आईपीएस अधिकारी तोमर बेहद महत्वपूर्ण व्यक्ति थे। उनकी बीमार पत्नी सोनिया सिंह तोमर प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के सचिव एनके सिंह की बहन थी। संभव है कि इस खास रिश्तेदार की मौजूदगी की वजह से भी अपहृत विमान को छुड़ाने के लिए सख्त कार्रवाई से परहेज बरता गया हो। इस दिशा में तत्कालीन रॉ चीफ ए एस दुल्लत ने अपनी किताब में संकेतों से बहुत कुछ कहा है। काठमांडू के रॉ का ऑपरेशंस देख रहे आईपीएस शशिभूषण सिंह तोमर की एक अन्य रिश्तेदारी भी महत्वपूर्ण थी। वह नेशनल सेक्यूरिटी गार्ड्स के तत्कालीन प्रमुख आईपीएस अधिकारी निखिल कुमार के साढू भाई थे। विमान को अगर कमांडो कार्रवाई से छुड़ाने का फैसला होता, तो एनएसजी चीफ निखिल कुमार से उस बाबत परामर्श लिया जाता। यह इत्तफाक नहीं बल्कि रिश्तों के त्रिकोण का सच था कि निखिल कुमार की पत्नी श्यामा सिंह जो कि पूर्व सांसद भी थी और शशिभूषण सिंह तोमर की पत्नी सोनिया तोमर आपस में बहनें थी। श्यामा सिंह और सोनिया सिंह तोमर दोनों ही प्रधानमंत्री से सचिव एन के सिंह की बहनें थी। लिहाजा संभव है कि भावुकता में सख्त कार्रवाई से गुरेज किया गया हो।
क्योंकि सात दिनों तक चले विमान अपहरण की घटना के दौरान एक नहीं बल्कि कई मौके आए जब कमांडो कार्रवाई का फैसला लिया जा सकता था। पहला मौका अपहरण की घटना के तत्काल बाद दिल्ली जा रहीअपहृत विमान के पायलट देवी शरण ने होशियारी से आया। उन्होंने आतंकियों को बता दिया कि लंबी उड़ान भरने के लिए विमान में पर्याप्त इंधन नहीं है। उस हालात में विमान को अमृतसर के राजसांसी हवाई अड्डे पर लैंड कराया गया। अमृतसर में विमान 45 मिनट तक मौजूद रहा। लेकिन तथ्य हैं किदिल्ली ने कोई फैसला लेने में की अनावश्यक विलंब किया। आखिरी पल में पंजाब पुलिस से विमान को उड़ान भरने में बाधा खड़ी करने को कहा गया। तेल टैंकर को हवाईपट्टी की ओर रवाना किया गया। हलचल को भांपते ही आतंकियों ने पायलट देवीशरण को उड़ान भरने के लिए मजबूर किया। विमान के क्रू मेंबर्स ने सीबीआई को पूछताछ में बताया कि हडबड़ीज में उड़ी विमान चंद फीट के फासले से क्रैश होने से बची थी।
बीस साल बाद जब विमान अपहरण से बचने की संभावनाओं का विश्लेषण कर रहे हैं, तो यह भी गौर करने वाली बात है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी विमान अपहरण की खबर एक घंटे 40 मिनट की देरी से लगी। तब विमान से सफर कर रहे प्रधानमंत्री को ऐसे किसी साधन से अपातकालीन सूचना देने की कोशिश नहीं की गई जिससे समय पर कमांडो कार्रवाई का निर्णय लेना मुमकीन हो पाता। भारतीय आकाश क्षेत्र में उड रहे विमान को घेरने के कई उपाय संभव थे लिहाजा अपहर्ताओं ने अमृतसर से उडाकर पाकिस्तान के हवाई इलाके में ले जाने का फैसला लिया। पाकिस्तान ने भी अपनी भूमिका पाकसाफ होने का नाटक दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उसने लाहौर में अपहृत विमान को लैंडिग सुविधा देने से इंकार करते हुए एटीएस को हवाईअड्डे की बत्तियां गुल करने का आदेश दिया। अपहर्ताओं के निर्देश से विमान के क्रू मेंबर्स ने चिरौरी की। उसके बाद इंधन के लिए पाकिस्तानी हवाई अड्डे पर विमान को लैंड करने दिया गया। ढाई घटे तक पाकिस्तान में अपहृत विमान लैंड किए रहा। वहां अंधेरे का फायदा उठाकर अपर्हताओं को सपोर्ट समाग्री के तौर पर असलाह दिए गए। वहीं विमान के मुसाफिरों को धमाके के लिए अपहर्ताओं ने चाकू से हमले किए।
प्रतिरोध करने वाला एक मुसाफिर रुपेन कात्याल बुरी तरह जख्मी हो गया। दुश्मन मुल्क पाकिस्तान ने बिना किसी कार्रवाई के अपहृत विमान को उड़ने की इजाजत दे दी। वहांयूएई के दुबई एयरपोर्ट पर विमान ने लैंडिंग की। कूटनीतिक प्रयास से यूएई पर थोडा दबाव बनना संभव हुआ। मुस्लिम धर्मगुरुओं से अपहर्ताओं का संपर्क कराया गया जिससे विमान से महिला औऱ बच्चों समेत घायल 27 यात्रियों को रिहा कराना संभव हुआ। लेकिन बताते हैं कि दुबई प्रशासन पर जरुरी दबाव बनाया गया होता, तो वह कमांडो कार्रवाई के जरिए विमान को द्रवित हुए अपहर्ताओं से मुक्त कराया जा सकता था।
कई स्तरों की तहकीकात में खास मुसाफिरों की वजह से विमान को मुक्ति कराने के लिए कड़े कार्रवाई से बचने का एतिहात बरतने की बात कही जा रही है। प्रधानमंत्री कार्यालय के सचिव एन के सिंह के निजी रिश्तेदार के अलावा विमान बेल्जियम का एक रसूखदार शख्स भी मौजूद था। वह उस फर्म का मालिक बताया जाता है जिसके जिम्मे तब भारतीय मुद्रा छापने की ठेकादारी थी। बेल्जियम नागरिक के अलावा विमान में अमेरिका, स्पेन, जापान और नेपाल के यात्री मौजूद थे। अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति के लिहाज से 155 मुसाफिरों में इन विदेशी मुसाफिरों की जान को खास अहमियत दी गई।
अपहृत विमान दुबई से मस्कट के रास्ते उड़कर अफगानिस्तान के उस कांधार एयरपोर्ट पर पहुंच गया जहांतालिबान का शासन था। तालिबान की सरकार को भारत ने मान्यता नहीं दी थी। लिहाजा कोई कूटनीतिक संबंध बहाल नहीं थे। कंधार एयरपोर्ट के एटीएस की जिम्मेदारी आईएसआई के हैंडलर्स के हाथों में थी। मौजूदा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत कुमार डोवाल उस वक्त आईबी के स्पेशल डायरेक्टर आपरेशन थे। तब पचपन साल के खुफिया अधिकारी के तौर पर उनके पास आतंकियों से निगोशिएशन का खासा अनुभव था। लेकिन बताते हैं कि आईएसआई के कारिंदों को जैसे ही पता लगा कि डोवाल को भारत की ओर से चीफ निगोशिएटर बनाया गया है, उनके वाररुम में खुशी की लहर दौड़ गई। क्योंकि डोवाल का लॉगबुक बता रहा था कि वह निगोशिएशन को लंबा खिंचने में माहिर हैं। भारत को आतंकवाद का गहरा जख्म देने पर आतुर आईएसआई साल के आखिरी शुक्रवार यानी 24 दिसंबर की शाम अपहृत इस विमान के निगोशिएशन को नई शताब्दी की आखिरी तारीख तक खींच ले जाना चाहता था। और इसमें उसे सफलता मिली।
विमान अपहरण सौदे में आईएसआई को सबसे बड़ी सफलता जम्मू जेल में बंद दुर्दांत आतंकवादी मौलाना अजहर मसूद को छुड़ाने में मिली। जिसके सहारे वह आज भी निरंतर परोक्ष युद्ध में भारत को आतंक का गहरा जख्म दिए जा रहा है। अपहर्ताओं के लिए बड़ी रकम के साथ अजहर मसूद अलावा पाकिस्तानी मूल के ब्रिटिश नागरिक उमर शेख सईद और कश्मीरी मूल के मुश्ताक जरगर की सौदे में रिहा किया गया। अपहर्ताओं के साथ रिहा हुए तीनों आतंकी पाकिस्तान पहुंच गए। बिना दिशा का मिसाइल बताया जाने वाला आतंकी उमर शेख ने वहां पहुंचकर भी अपना उत्पाद जारी रखा। उसे पाकिस्तान में अमेरिकी पत्रकार डेनियल पर्ल के अपहरण औऱ हत्या के मामले में सजा हुई। मुश्ताक जरगर आतंक फैलाने लौटकर जम्मू-कश्मीर आया, जहां उसकी मुठभेड़ में मौत हुई। जबकि मौलाना अजहर मसूद बहावलपुर व पाकिस्तान स्थित अन्य प्रशिक्षण कैंपों में जाकर भारत के खिलाफ आंतकवादी तैयार करने के काम को बदस्तूर जारी रखे हैं।
सौदे में आतंकियों के रिहाई के फैसले को लेकर तब के रॉ चीफ एएस दुल्लत ने दिलचस्प वाकए को शेयर करते हुए बताया कि जब वह जम्मू की जेल में कैद अजहर मसूद औऱ मुश्ताक जरगर को लाने के फैसले पर अमल के लिए जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला के सामने पहुंचे, तो उनको देखते ही फारुख बेहद नाराज हुए। फटकार लगाते हुए कहा, “आप दोबारा फिर एक और मनहूस फैसले पर अमल कराने आए हैं। याद है न, आपने ही 1989 में रुबिया सईद को अपहर्ताओं से रिहा कराने के लिए पांच आतंकियों को हमसे छुडवाकर ले गए थे। तब भी मेरी राय थी कि सौदे में आतंकियों को रिहा करना अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि कमजोर मुल्क के तौर पर पेश करती है।“
टाला जा सकता था आईसी 814 विमान अपहरण
विमान अपहरण के बीस साल
आलोक कुमार - 2019-12-26 11:40
इंडियन एयरलाइंस की विमान आईसी 814 के अपहरण के बीस साल पूरे हो गए। आतंकवाद के इतिहास में इसे भूलना मुमकिन नहीं। बीती सदी के आखिरी दिनइससेपाक परस्त आतंकवाद ने हमें गहरा जख्म दिया था। हमारे सुरक्षा तंत्र को निशक्त किया गया। विमान अपहरण के नाम पर पाकिस्तानपरस्त आतंकियों के आगे हमें घुटने टेकने को मजबूर होने पड़े। एयरबस 3000 श्रेणी के इस भारतीय विमान में फंसे 155 मुसाफिर औऱ 15 क्रू मेंबर्स की जान की कीमत पर काफी मंहगा सौदा करना पड़ा। सौदे में जम्मू जेल से छूटा खूंखार आतंकी मौलाना अजहर मसूद आजतक निरंतर भारत पर बड़ा से बड़ा आतंकी हमला किए जा रहा है। उसे अंतर्राष्ट्रीय आंतकवादी करार देने में हमें चीन के आगे कूटनीतिक मुश्किलों का सामना करना पड़ा है।