एक दिन कांग्रेस के नियमित संवाददाता सम्मेलन में प्रवक्त जयंती नटराजन इससे संबंधित सारे प्रश्नों को पहले टालतीं रहीं, फिर भी जब प्रश्न बंद नहीं हुए तो उन्होंने आग्रह किया‘ क्या हम दूसरे विषय की ओर मुड़ सकते हैं।’ वास्तव में कांग्रेस पार्टी ने अमिताभ बच्चन द्वारा गुजरात पर्यटन का ब्रांड अम्बासडर बनने के निर्णय का जिस हास्यास्पद तरीके से विरोध किया वह दुर्भाग्यपूर्ण था। हालांकि कांग्रेस के कुछ प्रवक्ता अभी भी अपने उस स्टैण्ड को लोकतंत्र में अपने विरोध के अधिकार का प्रतीक बताते हुए उसे सही ठहराने का प्रयत्न करते हैं, पर चूंकि इस रवैये को कहीं से समर्थन मिलने की संभावना नहीं थी, इसलिए पार्टी के पास इस अध्याय को बंद करने के अलावा कोई चारा नहीं है।

कांग्रेस केवल देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी ही नहीं है, उसके हाथों इस समय देश का नेतृत्व है। इस कारण देश में सामाजिक, सांस्कुतिक और राजनीतिक सद्भाव कायम रखने का मुख्य उत्तरदायित्व उसी का है। उसके एक-एक नेता का आचरण ऐसा होना चाहिए जिससे वातावरण बेहतर बनाने में मदद मिले। अमिताभ बनाम कांग्रेस प्रसंग में नेताओं का रवैया इसके विपरीत रहा है। क्या गुजरात पर्यटन का ब्रांड अम्बासडर बनना देश विरोधी कदम है? क्या इससे हमारे सेक्यूलर चरित्र को धक्का लगा है? क्या अमिताभ का यह कदम कौमी एकता या सांप्रदायिक सद्भाव के ख्लिाफ है? सच कहा जाए तो ऐसे व्यक्तियों को ब्रांड अम्बासडर बनाने से तात्कालिक तौर पर अवश्य लोगों का आकर्षण होता है, पर इससे समाज को कभी सही प्रेरणा या दिशा नहीं मिलती। आखिर अमिताभ या उनके जैसे अभिनेता जो एक-एक फिल्म के लिए, कुछ मिनट या सेकेण्ड के विज्ञापन के लिए करोड़ों रुपए लेते हैं उनसे समाज अगर कोई प्रेरणा ग्रहण करता है तो बस येन-केन-प्रकारेण धन संग्रह का, उपभोग सामग्रियों के संचय का। ये केवल बाजार के चेहरे हैं, जिनका व्यावसायिक लाभ के लिए फिल्म निर्माता एवं सामानों के उत्पादक उपयोग करते हैं। अगर कांग्रेस इस आधार पर अमिताभ एवं दूसरे ऐसे व्यक्तियों का विरोध करे तो इसे नैतिक एवं उचित कहा जाता है, किंतु कांग्रेस को अमिताभ या ऐसे किसी व्यक्ति के इस चरित्र पर आपत्ति नहीं है। हो भी नहीं सकती, क्योंकि बाजार अर्थव्यवस्था की चकाचौंध ही तो इनके लिए विकास का सर्वप्रमुख प्रतिमान है। इस प्रकार यह मुद्दा है ही नहीं।

लोकतंत्र में किसी व्यक्ति के कदम से आप असहमत हों तो उसका विरोध करने का आपको अधिकार है। इसलिए पार्टी के नाते कांग्रेस यदि अमिताभ के कदम को गलत मानती है तो उसे उनका विरोध करना चाहिए। किंतु एक जिम्मेवार पार्टी के लिए विरोध का तार्किक और नैतिक आधार भी तो होना चाहिए। कांग्रेस के प्रवक्ताओं को देखिए कि वे अमिताभ से गुजरात दंगों का कारण पूछने लगे। अमिताभ का गुजरात दंगा से क्या लेना-देना है? इसी प्रकार गुजरात पर्यटन का ब्रांड अम्बासडर बनने से दंगों का क्या लेना-देना हो सकता है? किंतु यह कांग्रेस पार्टी है, जहां नेताओं का ध्यान केवल एक परिवार की सोच का अनुमान लगाने पर रहता है। उस परिवार से बच्चन परिवार के बीच संबंध छत्तीस के हैं, इसलिए वीर रस के कवियों की तरह सब एक दूसरे से ज्यादा आाक्रामक तेवर में ऐसे तर्क देने लगे जैसे अमिताभ ने देश के विरुद्ध कुछ कर दिया हो। बेचारे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चव्हान की तो मानो शामत आ गई। वे स्वयं अमिताभ के प्रशंसक एवं फैन हैं। ब्रांद्रा वर्ली सी लिंक दो के उद्घाटन समारोह में वे कितने प्रसन्न मुद्रा में अमिताभ बच्चन से बातचीत कर रहे थे, यह हम सबने देखा, लेकिन पार्टी में उनके राजनीतिक विरोधियों ने सवाल उठाया और उन्हें अपने बचाव को मजबूर होना पड़ा। हालांकि उनका तर्क लचर था। उन्होंने कहा कि कार्यक्रम में अमिताभ को निमंत्रित करने की सूचना उन्हें नहीं थी। क्या कोई इस पर विश्वास कर सकत है कि मुख्यमंत्री के सुरक्षा विभाग ने मंच पर कौन उपस्थित होंगे इसकी पूर्व सूचना नहीं ली हो। बेचारे चव्हाण को पुणे में मराठी साहित्य के एक कार्यक्रम मेें अमिताभ के साथ आने से परहेज करना पड़ा। दिल्ली में अर्थ आवर के पोस्टर से अमिताभ के पुत्र अभिषेक का पोस्टर गायब हो गया। उस वीडियो क्लिपिंग दिखाने पर अघोषित प्रतिबंध लग गया, जिसमें अभिषेेक एक समयावधि के बीच बत्तियां बंद करने की अपील करते हैं। दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित भी चव्हाण की ही मुद्रा में कहतीं दिखीं कि उन्हें नहीं पता कि अभिषेक इसके ब्रांड अम्बासडर थे। लगे हाथों सुरेश कलमाड़ी ने कह दिया कि अमिताभ राष्ट्रमंडल खेलों के ब्रांड अम्बासडर नहीं हैं, क्योंकि इसके लिए युवा चेहरे चाहिए।

यह कांग्रेस द्वारा एक संगठन एवं जहां उनकी सरकार हैं, वहां के लिए अमिताभ को जाति बहिष्कृत करने या तड़ीपार करने जैसा रवैया है। ऐसा व्यवहार समाज की सोच के अनुसार किसी पापी या अपराधी के साथ किया जाता है। इसे किसी भी दृष्टि से सही नहीं ठहराया जा सकता। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी का राजनीतिक विरेाध एक बात है, हालांकि यहां भी राजनीतिक अतिवाद का खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ रहा है, पर अमिताभ मोदी या उनकी राजनीति के अम्बासडर नहीं बने हैं। यह बात सही है कि उनके प्रचार से परोक्ष तौर पर मोदी को राजनीतिक लाभ मिल सकता है। किंतु यह तो राज्य विरोध हो गया। आखिर गुजरात भारत देश का एक राज्य है। वहां यदि पर्यटक आते हैं और आय बढ़ती है तो यह देश की आय में जुड़ेगा। क्या सकल राष्ट्रीय विकास का आंकड़ा निकालते समय गुजरात के आंकड़ें को आप अलग कर देते हैं? कांग्रेस के नेतागण यह कैसे भूल गए कि गुजरात का विकास देश का विकास है। अगर वे यह चाहते हैं कि मोदी के रहते गुजरात को कोई बाहरी समर्थन न मिले ताकि उनकी लोकप्रियता गिरे तो यह केवल मोदी विरोधी नहीं, जन विरेाधी एवं गुजरात विरोधी सोच होगी। इससे क्षति पूरे गुजरात की होगी। मजे की बात देखिए कि देश के तमाम बड़े उद्योगपति मोदी की विकास नीति की प्रशंसा करते हुए वहां उद्योग एवं कारोबार का विस्तार कर रहे हैं, पर कांग्रेस पार्टी उन सबको बहिष्कृत नहीं करती। रतन टाटा ने प. बंगाल से नैनो को गुजरात ही तो स्थानांतरित किया। कांग्रेस को उनका भी बहिष्कार करना चाहिए। केवल अमिताभ ही निशाना क्यांे? साफ है कि इसके पीछे कोई ऊंची नैतिक या सांप्रदायिक सद्भाव की सोच नहीं, बल्कि यह केवल कांग्रेस का नेतृत्व संभालने वाली एक परिवार की नजर मंे अपनी निष्ठा साबित करने की पार्टी की अंदरुनी होड़ की परिणति थी। यह बात दीगर है कि उस परिवार को ऐसा रवैया पसंद है या नहीं, इसकी पुष्टि करने वाला कोई नहीं। इस प्रकार कांग्रेस का यह रवैया शर्मनाक है। इस प्रश्न का जवाब तो कांग्रेस की दे सकती है कि नेताआंे को किसने कहा कि अमिताभ के साथ मंच पर न बैठें या उनका बहिष्कार करे। अगर यही बात थी तो पहले दि नही साफ की जानी चाहिए थी। स्पष्ट है कि कांग्रेस में 10 जनपथ से संकेत के बगैर किसी को पता नहीं होता कि उन्हंे करना क्या है। देश की सबसे बड़ी और केन्द्र एवं सबसे ज्यादा राज्यों में सत्तारुढ़ पार्टी का यह चरित्र अत्यंत चिंताजनक है। (संवाद)