उसके बाद भारतीय रिजर्व बैंक ने यस बैंक के प्रमुख राणा कपूर को ही हटा दिया और उनकी जगह गिल साहब को उसे बचाने का जिम्मा दे दिया। बैंक राणा कपूर द्वारा ही स्थापित किया गया था। यह प्राइवेट सेक्टर का बैंक था और बहुत ही तेजी से आगे बढ़ रहा था। कहते हैं कि राणा कपूर के कुशल नेतृत्व के कारण बैंक तरक्की कर रहा था। आईसीआईसीआई बैंक और एचडीएफसी बैंक जैसे बैंक गैर वित्तीय संस्थान के रास्ते से बैंक बने थे, लेकिन यस बैंक की स्थापना सीधे बैंक के रूप में की गई थी। इस तरह के बैंक की स्थापना कर उसे तरक्की के रास्ते पर ले जाने में राणा कपूर बेहद सफल रहे और जल्द ही यह बैंक देश के सबसे बड़े 5 निजी बैंकों की सूची में शुमार हो गया। यह बैंक अधिक ब्याज दर पर लोगों की जमा को स्वीकार करता था। जाहिर है, मुनाफा में आने के लिए यह जमा राशि का निवेश भी बेहतर तरीके से ज्यादा विकास पर करता होगा। यानी प्रबंधकीय कुशलता का एक नमूना यह बैंक पेश कर रहा था।
लेकिन 2017 से इसकी स्थिति क्यों खराब होने लगी और वह भी इतनी खराब होने लगी कि जिस प्रबंधन ने इसको उतनी ऊंचाई पर चढ़ाया था, वह इसे इसके पतन से बचा नहीं सका? केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि यूपीए सरकार के कारण यह संकट पैदा हुआ। पर सच्चाई यह है कि वर्तमान मोदी सरकार पिछले 6 साल से केन्द्र की सत्ता में है। 2014 के शुरुआती महने तक ही यूपीए की सरकार सत्ता में थी। तब तो यस बैंक की स्थिति बहुत अच्छी थी। सच कहा जाय, तो यस बैंक ने यूपीए के कार्यकाल के 10 वर्षो के दौरान ही सफलता के एक से एक कीर्तिमान स्थापित किए थे। उसने अपनी सफलता की कहानी मनमोहन सिंह सरकार के कार्यकाल में लिखी थी। इसके बावजूद केन्द्र की मौजूदा सरकार कह रही है कि यूपीए सरकार के कारण उसका यह वर्तमान संकट है।
सच कहा जाय, तो यस बैंक की सफलता और विफलता के बीच में नवंबर 2016 की हुई नोटबंदी है। उस नोटबंदी ने न केवल यस बैंक का, बल्कि पूरी बैंकिंग व्यवस्था की चूलें हिला कर रख दी थी। वैसा अवविवेकपूर्ण फैसला प्रधानमंत्री ने क्यो किया, इस पर अभी भी तरह तरह के कयास लगाए जा रहे हैं, लेकिन वह देश की पूरी अर्थव्यवस्था के लिए एक महाविनाशी तूफान से कम नहीं था, जिसका असर आज भी देखा जा सकता है और लगता है कि आने वाले वर्षो में भी उस नोटबंदी का असर देश देखता रहेगा।
जब नोटबंदी घोषित की गई थी, तो उसके विरोधी कह रहे थे कि बैंकों को बैड लोन से राहत देने के लिए वह निर्णय किया गया था, ताकि बैंकांे की द्रवता बढ़ जाय। बैंकों की द्रवता बढ़ने का मतलब होता है, बैंक में सभी लोगों के पैसे ज्यादा से ज्यादा जमा हो जाएं, ताकि कंगाल हो रहे बैंक अपनी जमाराशि बढ़ाकर अपना स्वास्थ्य ठीक कर सकें। लेकिन बैंकों की जमा राशि बैंकों के लिए एसेट तभी है, जब उस जमाराशि को बैंक लोन के रूप में उद्योगपतियों और व्यापारियों को दे सके। बैंक कम ब्याज पर जमाराशि स्वीकार करते हैं और अधिक राशि पर उसी को लोन के रूप में बाजार को देते हैं, लेकिन नोटबंदी के बाद यह दूसरी पूरी नहीं हुई। जमा राशि तो बहुत बढ़ गई, लेकिन नोटबंदी ने व्यापार और उत्पादन के माहौल को ही तबाह कर दिया था, जिसके कारण बढ़े डिपोजिट का लेनदार मिलना मुश्किल हो रहा था।
अब मान लीजिए कि 8 लाख करोड़े रुपये बैंकों में नोटबंदी के कारण आ गए, तो यह भी मानना पड़ेगा कि उन पर बैंकों को करीब 60 हजार करोड़ रुपये एक साल में ही जमाकत्र्ताओं के खाते में डालने पड़े। अब सवाल यह उठता है कि क्या नोटबंदी के पहले साल में बैंकों को लोन लेने वाले लोग मिल गए थे, जिनसे 60 हजार करोड़ के इस ब्याज की खानापूर्ति हो जाती? काॅमन सेंस तो यही कहता है कि उस समय अर्थव्यवस्था लगभग पंगु हो गई थी और वैसे में लोन लेने वाले लोग कम ही थे। बैंक के सामने दो ही विकल्प थे- या तो जमाकर्ताओं को दिए जा रहे ब्याज रुपी घाटों को वे सहें, या अधिक जोखिम उठाकर ऐसे लोगों को भी कर्ज दे दें, जहां डूबने का भी खतरा हो। दोनों ही हालतों में बैंकों का ही नुकसान होना था।
यस बैंक के साथ भी यही हुआ। उसने अनेक ऐसे संस्थानों और फर्मों को कर्ज दे डाले, जो बाद में खुद दिवालिया होते चले गए। वे खुद दिवालिया नोटबंदी के कारण ही हो रहे थे। एस्सेल ग्रुप की हालत खराब हो गई। उसने भी इससे लोन ले रखा है। देश का सबसे बड़ी गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी पिछले साल डूबी। उसने भी यस बैंक से लोन ले रखा है। यानी ऐसे ऐसे फर्मो को यस बैंक ने कर्ज दे डाले, जो एक के बाद एक डूबते गए और उसके बाद फिर यस बैंक को कैैसे बचाया जा सकता था। फिलहाल भारतीय स्टेट बैंक द्वारा इसे बचाने की उम्मीद है, लेकिन डर है कि निजी क्षेत्र के बैंेकों को बचाने के चक्कर में सरकारी बैंक ही बीमार न पड़ने लगें। (संवाद)
यस बैंक की बदहाली के लिए कौन जिम्मेदार
अन्य बैंक भी हो सकते हैं अव्यवस्था के शिकार
उपेन्द्र प्रसाद - 2020-03-07 12:14
यस बैंक डूब रहा है। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण कह रही हैं कि वह बैंक को डूबने नहीं देगी। भारतीय रिजर्व बैंक भी कह रहा है कि वह बैंक को डूबने नहीं देगा। पिछले महीन भारतीय स्टेट बैंक के प्रमुख कह रहे थे कि वे यस बैंक को डूबने नहीं देंगे। जब भारतीय स्टेट बैंक के चेयरमैन वैसा कह रहे थे, उस समय तक बैंक के डूबने की खबर भी नहीं आई थी। हां, बैंक डांवाडोल चल रहा था, इसके बारे में जानकारी 2017 से ही थी। भारतीय रिजर्व बैंक उस समय से ही उसे संभालने की कोशिश कर रहा था और बढ़ते एनपीए की समस्या का सामना करने के लिए बैंक अपनी तरफ से तरह तरह के उपाय कर रहा था, लेकिन वह कारगर नहीं हो पा रहा था।