भारत को दमनकारी ताकतों के खिलाफ दूसरे स्वतंत्रता संग्राम को जीतने के लिए नये तरीके से तैयार कांग्रेस की जरूरत है। पार्टी को हैवी लिफ्टिंग करनी चाहिए। ‘‘हमने राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और झारखंड में अपेक्षित से बेहतर प्रदर्शन करके राजनीतिक पंडितों को आश्चर्यचकित कर दिया’’, ऐसा कांग्रेस के नेता कह रहे थे। लेकिन कठोर सत्य यह है कि पार्टी गंभीर दोषों से ग्रस्त है। वह नई राजनैतिक चुनौतियों की तीव्र प्रतिक्रिया देने में विफल है। वह दिशाहीन है। उसे पता नहीं चल रहा है कि उसे आगे क्या करना है। वह गुटीस लड़ाई से भी ग्रस्त है। छोटे छोटे मुद्दों पर वह लड़ाई हो रही है।
पार्टी के सामने नेतृत्व का संकट भी मंडरा है। राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिए हुए 10 महीने हो गए हैं। लेकिन अभी तक उनकी जगह कोई नहीं ले सका है। अभी भी कांग्रेस के पूर्णकालिक अध्यक्ष का चुनाव नहीं हो सका है और सोनिया गांधी खराब स्वास्थ्य होने के बावजूद अंतरिम अध्यक्ष के रूप में पार्टी का काम देख रही हैं। पूर्णकालिक अध्यक्ष नहीं होने के कारण कांग्रेस में ऊपर से नीचे तक हताशा और निराशा है। यह एक साहसिक बदलाव करने का समय है। ऐसा नहीं किया गया तो यह हानिकारक साबित होगा। पार्टी के नेताओं के लिए सबसे आशाजनक बात यह है कि 2014 के खराब प्रदर्शन के बावजूद पार्टी को कुल मतों का लगभग 20 फीसदी प्राप्त होता है।
1984 के आम चुनावों में, कांग्रेस 404 लोकसभा सीटों पर जीती थी, जबकि पिछले दो आम चुनावों को मिलाकर, पार्टी केवल 96 सीटों पर ही पहुँच सकती थी। विशेष रूप से पेचीदा यह है कि बीजेपी ने 2019 में खराब अर्थव्यवस्था, रिकॉर्ड बेरोजगारी, ग्रामीण संकट, उग्र शासन व्यवस्था, दलितों को हाशिए पर रखने, अल्पसंख्यकों (विशेष रूप से मुस्लिमों) की क्रूरता और मीडिया पर कब्जा करने के बावजूद जीत हासिल की। अगर भारत के लोगों को अभी भी कांग्रेस में कोई विकल्प नहीं दिखाई दे रहा है, तो इसका मतलब है कि पार्टी जमीनी वास्तविकताओं से कटी हुई है। इसके अलावा, एक चुनौती देने वाली पार्टी को उस महत्वपूर्ण अमूर्त तत्व की आवश्यकता होती है जिसे ‘जीतने की भूख’ कहा जाता है। सच कहा जाय तो कांग्रेस की जीत की भूख भी मर चुकी है।
कांग्रेस पार्टी को आंतरिक लोकतंत्र से लवरेज एक संगठन होना चाहिए। उसके पास उदाहरण के लिए एक आदर्श होना चाहिए और अनुकरणीय योग्यता के लिए एक मॉडल होना चाहिए। पुराने जमाने के मजबूर प्रतिनिधित्व मॉडल और बड़े आकार की समितियां जो को डंप करने की आवश्यकता हैं। इसके बजाय परिणाम-संचालित समूह होने की जरूरत है।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने सुझाव दिया है कि कांग्रेस अध्यक्ष और सीडब्ल्यूसी के पद पर चुनाव होना चाहिए, जो एक प्रक्रिया सुनिश्चित तय करके प्रख्यात नागरिकों के एक स्वतंत्र गैर-पक्षपातपूर्ण निकाय के तहत होना चाहिए। सूरज की रोशनी, जैसा कि वे कहते हैं, सबसे अच्छा कीटाणुनाशक है। और, यह अगले तीन से छह महीनों के भीतर होना चाहिए। दूसरा, एआईसीसी के पुनर्गठन और पार्टी के अंदर अधिक विकेंद्रीकरण की आवश्यकता है। कांग्रेस को भारत के 28 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को कवर करने के लिए चार क्षेत्रीय उपाध्यक्षों की नियुक्ति पर विचार करना चाहिए।
तीसरा, कांग्रेस के पास प्रचुर प्रतिभा है। इसे देखते हुए, सरकार को निरंतर चुनौती देते रहने के लिए पार्टी एक औपचारिक छाया कैबिनेट नियुक्त कर सकती है। कांग्रेस पार्टी में उत्कृष्ट प्रतिभा है, लेकिन उनकी सामूहिक प्रतिभा अछूती नहीं है, पार्टी को स्वतंत्र विचार के नेताओं की आवश्यकता है।
भाजपा के बहुसंख्यकवादी राष्ट्रवाद और अलगाववादी राजनीति के खिलाफ कांग्रेस की प्रतिक्रिया भ्रमित रही है। यह आश्चर्य की बात है कि जिस पार्टी का भारत के ऐतिहासिक स्वतंत्रता संग्राम में महान योगदान है और जिसने पाकिस्तान के खिलाफ लगातार युद्ध जीते हैं, उसे भाजपा के अति-लोकलुभावन राष्ट्रवाद पर हमला करने के लिए निष्पक्ष और मुखर होना चाहिए। सीएए, एनपीआर और एनआरसी पर इसका स्पष्ट रुख एक ताजा बदलाव है। वैचारिक स्पष्टता मदद करती है। (संवाद)
भारत को अब एक पुनर्जागृत कांग्रेस की जरूरत
भाजपा के तानाशाही रथ को सिर्फ यही रोक सकती है
हरिहर स्वरूप - 2020-03-09 14:45
क्या भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अस्तित्वगत संकट का सामना कर रही है? इसका जवाब है, दुखद रूप से, हाँ। एक नाटकीय मोड़ की आवश्यकता है क्योंकि केवल कांग्रेस ही भाजपा की सत्ता के खिलाफ गोलबंद है। भाजपा के नेतृत्व वाला शासन संस्थानों का विघटन कर रहा है, समाज का ध्रुवीकरण कर रहा है, वंचित वर्गों को हाशिए पर ला रहा है और भारतीय लोकतंत्र की मूल नींव को नष्ट कर रहा है। हाल के दिल्ली के दंगे भाजपा के कपटी राजनीतिक एजेंडे की नवीनतम अभिव्यक्ति हैं और इसके कारण सभी के लिए घातक परिणाम देखने को मिले हैं।