मुलायम सिंह यादव के साथ पूर्व मंत्री और सुहेलदेव भारत समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रकाश राजभर की हालिया बैठक राजनैतिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण है। बैठक के बाद ओमप्रकाश राजभर ने कहा कि वह चुनाव का सामना करने के लिए पिछड़े दलितों और अल्पसंख्यकों के गठबंधन की आवश्यकता पर मुलायम सिंह यादव के साथ अपनी बैठक से संतुष्ट थे। राजभर ने आगे कहा कि मुलायम सिंह यादव ने जल्द से जल्द गठबंधन बनाने की अपनी प्रतिबद्धता का वादा किया है।

गौरतलब हो कि ओम प्रकाश राजभर गठबंधन के लिए अतीत में कांग्रेस के साथ संपर्क में भी थे।

ओमप्रकाश राजभर योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री थे और एनडीए के सदस्य थे। उनकी पार्टी के कुछ नेताओं को सरकार में भी समायोजित किया गया था। लेकिन राजभर ने भाजपा आलाकमान से अधिक सीटों की मांग की।

ओमप्रकाश राजभर आरक्षण के लिए ओबीसी कोटे को दो भाग में बांटने का लगातार प्रयास कर रहे थे। वे चाहते थे कि पिछड़े वर्गों के अति पिछड़े समुदायों को अलग से आरक्षण दिया जाय, क्योंकि वे ओबीसी की सबल जातियं से प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाते। वह चाहते हैं कि ओबीसी के लिए कोटा को सबसे पिछड़े और अति पिछड़े को समायोजित करने के लिए तीन भागों में विभाजित किया जाए। उन्होंने आरोप लगाया कि आरक्षण का अधिकतम लाभ शक्तिशाली ओबीसी को जा रहा है। 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद राजभर को मंत्री पद से बर्खास्त कर दिया गया था। तब से, वह अति पिछड़ों की माँगों को उठा रहे हैं।

यहां यह उल्लेखनीय होगा कि ओमप्रकाश राजभर का पूर्वी यूपी में अच्छा प्रभाव है और एक शक्तिशाली पार्टी के साथ गठबंधन में वह गेम चेंजर हो सकते हैं। गौरतलब है कि ओमप्रकाश राजभर ने हाल ही में भीम आर्मी के चंद्रशेखर रावण से मुलाकात की, जिसका पश्चिमी यूपी में दलितों पर जबरदस्त प्रभाव है। रावण उसी जाति के हैं जो बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती की है, इसीलिए बसपा उनकी बढ़ती लोकप्रियता से डरती है। उन्होंने जंतर मंतर, नई दिल्ली में प्रदर्शन की श्रृंखला के माध्यम से अल्पसंख्यकों की मदद से पश्चिमी यूपी के दलितों पर अपनी पकड़ का प्रदर्शन किया।

मायावती के विपरीत, जो अपनी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए दुर्गम हैं, चंद्रशेखर रावण हमेशा पार्टी कार्यकर्ताओं से घिरे रहते हैं। चंद्रशेखर रावण की राजनीतिक महत्वाकांक्षा है और वह इसी महीने एक राजनीतिक पार्टी के गठन की घोषणा करने के इच्छुक हैं। दलितों की भारी भागीदारी के कारण जामा-मस्जिद दिल्ली में उनका मार्च काफी प्रभावशाली रहा था।

मायावती के बेहद करीबी रहे पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा ने जन अधिकार पार्टी का गठन किया है और विभिन्न जिलों में कुशवाहा पिछड़े समुदाय की बैठकों में भाग लिया।

चूंकि समाजवादी पार्टी राज्य में मुख्य विपक्षी पार्टी है, इसलिए भाजपा की राजनीति का विरोध करने वाले सभी छोटे समूह और दल बड़े गठबंधन की ओर देख रहे हैं।

अखिलेश यादव मुख्य रूप से गैर बसपा दलों के बड़े पैमाने पर लोगों और समूहों के विलय को बढ़ावा दे रहे हैं।

सीएए और एनआरसी और इसी तरह के मुद्दों पर अल्पसंख्यकों में भारी पैमाने पर रोष पैदा हो रहा है। वे अखिलेश यादव की ओर भी देख रहे हैं, बशर्ते वह सड़कों पर बीजेपी का सामना करें और छोटे दलों के साथ सहयोग करने के लिए अपने आरामगाह से बाहर आने की पहल करें। (संवाद)