भारत में जब पहली बार कोरोना वायरस से ग्रस्त किसी व्यक्ति की पहचान हुई, उसके बाद का यह दूसरा सप्ताह चल रहा है और इस बीच यह लेख लिखे जाने के समय तक कम से कम 132 लोग इससे पीड़ित नजर आने लगे हैं। ज्यादातर पीड़ित वे हैं, जो विदेशों से लौटे हैं और उनके बाद उनकी संख्या है, जो उनके नजदीकी रहे हैं। सवाल उठता है कि समय रहते हमारी सरकार ने विदेशी यात्रा पर जाने वालों पर प्रतिबंध क्यों ेनहीं लगाया। प्रतिबंध तो लगाया था, लेकिन यह चीन, जापान और दक्षिण कोरिया की यात्रा पर ही आंशिक रूप से लगाया था, जबकि यूरोप और अमेरिका जाने वालों पर रोक नहीं लगाई थी।
हमारे देश में जिन पीड़ितों की शुरुआती पहचान हुई, वे इटली और ईरान से लौटे लोग थे। इटली के 17 पर्यटक भी इससे से ग्रस्त पाए गए। वे भारत के अस्पतालों में इलाज करवा रहे हैं। यदि सरकार ने समय रहते भारतीयों की विदेशी यात्राओं पर रोक लगा दी होती, तो इससे बहुत हद तक बचा जा सकता है। अब उसने ऐसा कर दिया है, लेकिन ऐसा करने में उसने बहुत देर कर दी है और कोरान वायरस के पीड़ितों की संख्या इतनी बढ़ गई है कि अब उनसे संक्रमण फैलने का खतरा पैदा हो गया है।
जनवरी महीने से ही कोरोना की खबरे अंतरराष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियां बनी हुई थीं। भारत द्वारा प्रतिबंध लगाने का सही समय वही था, लेकिन हमारे सत्ता में बैठे लोग चुनाव जीतने में इतने ज्यादा व्यस्त थे कि उन्हें आने वाले खतरों पर घ्यान ही नहीं गया। उन्होंने कोरोना को चीन की स्थानीय समस्या समझ ली। चीन के कोरोना ग्रस्त होने से भारत के आयात और निर्यात पर क्या असर पड़ेगा, इसकी चिंता ज्यादा दिख रही थी, वजाय इसके कि भारत को खुद उस समस्या से कैसे बचाया जाय।
जनवरी और फरवरी हमारे नीति निर्माताओं ने दिल्ली विधानसभा का चुनाव जीतने की कोशिशों में गंवा दी और चुनाव समाप्त होने के बाद हार का गम निकालने में। फिर दिल्ली ने एक ऐसा दंगा देखा, जिसके लिए दिल्ली पुलिस की नाकामियां जिम्मेदार थीं। दिल्ली पुलिस की नाकामियों के लिए कोई और नहीं बल्कि केन्द्र की सरकार जिम्मेदार थी, जिसके आदेश पर दिल्ली पुलिस काम करती है। नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ हो रहे आंदोलन को बातचीत से समाप्त करने में केन्द्र सरकार ने कभी कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई और उलटे सत्तारूढ़ पार्टी के लोग उस कानून के समर्थन में विरोधियो से टकराने निकल गए। जो जिम्मा सरकार का था, उस जिम्मे को सरकारी पार्टी ने अपने सिर पर ले लिया और हो गया दंगा।
यानी जब कोराना के खतरे से निपटने की तैयारी होनी थी, उस समय हमारे नीति निर्माता दंगों में उलझे हुए थे। कोरोना रोकने के लिए विदेशी यात्रा और यात्रियों को समय रहते प्रतिबंधित तो नहीं ही किया गया, उसके अलावा और सब जो इंतजाम किए जा सकते थे, वह भी नहीं किया। कुछ अन्य देशों की अपेक्षा तब भारत में कोरोना पीड़ितों की संख्या कम थी और इसका श्रेय केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन लेते दिख रहे थे। वे उस चीज के लिए श्रेय ले रहे थे, जो उनके कारण नहीं था। कोरोना को चीन के रास्ते नहीं आना था, बल्कि पश्चिम एशिया और यूरोप के रास्ते आना था, जहां जनवरी और फरवरी महीने में भारी संख्या में लोग गए थे और उनमें से कुछ उस वायरस को अपने साथ लेकर लौटे।
वीभीषिका बढ़ने के साथ भी हमारे नीति निर्माताओं ने अन्य कदम समय पर नहीं उठाए। पहले यहां भी समस्या को दबाने की कोशिश की गई और कोई अफरातफरी नहीं फैले, इसकी ज्यादा चिंता की गई। भारत में होली का त्यौहार था, जिसमें लोग एक दूसरे से रंग खेलते हैं और गले लगाते हैं। प्रधानमंत्री ने यह कह दिया कि कोरोना के कारण वे होली नहीं खेलेगे, लेकिन देश के लोगों में इस साल होली नहीं खेलने के लिए जागरूकता नहीं फैलाई गई।
भारत में धार्मिक लोगों की संख्या भी बहुत है। वे धार्मिक स्थलों पर भारी संख्या में उपस्थित होते हैं। सामूहिक धार्मिक उत्सवों में हिस्सा लेते हैं। उनसे वैसा नहीं करने का आदेश तो दूर अपील तक नहीं की गई। अयोध्या में रामनवमी का मामला ही देख लें। वहां 15 लाख लोग रामनवमी का उत्सव मनाने के लिए आते हैं। वहां के मुख्य चिकित्सा आयुक्त उस उत्सव को रद्द करने की मांग कर रहे हैं, क्योंकि उससे कोराना के महामारी तब्दील होने की आशंका है, लेकिन प्रदेश का राजनैतिक नेतृत्व अयोध्या में रामनवमी का मेला आयोजित कराने के लिए मचल रहा है।
शैक्षिक संस्थानों को तो देश भर में बंद कर दिया गया है, लेकिन धार्मिक जमावड़ों को भी पूरी तरह प्रतिबंधित किया जाना चाहिए था, जो अभी तक नहीं किया जा सका है। महाराष्ट्र सरकार ने देर से ही सही कुछ अच्छे फैसले लिए हैं और उसके कारण महाराष्ट्र के कुछ भीड़भाड़ वाले मंदिरों को बंद होना पड़ा है, लेकिन यह एक राष्ट्रीय समस्या है और इसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर ही फैसला लिया जाना ज्यादा कारगर होगा। उन राजनैतिक, व्यावसायिक, धार्मिक और वैवाहिक आयोजनों को देश भर में प्रतिबंधित कर दिया जाना चाहिए, जिनमें ज्यादा लोग हिस्सा लेते हैं। रामनवमी के जुलूसों पर पूरा प्रतिबंध देश भर में लगाया जाना चाहिए। सामूहिक नमाज पर भी रोक लगा दी जानी चाहिए। गुरुद्वारों और चर्चो के दरवाजे भी बंद कर दिए जाने चाहिए। मजारों के दरवाजे भी बंद होने चाहिए। और ऐसा करने के लिए कोरोना के मामलों को हजार में पहुंचने तक इंतजार नहीं करना चाहिए। (संवाद)
कोरोना वायरस और भारत
रामनवमी आयोजनों और सामूहिक नमाजों पर रोक लगे
उपेन्द्र प्रसाद - 2020-03-17 10:52
कोराना वायरस तेजी से भारत में पांव पसार रहा है। आने वाले दो सप्ताह बहुत निर्णायक साबित होने वाला है। यदि अन्य देशों के अनुभव भारत में दुहराए जाते हैं, तो यह हमारे लिए एक राष्ट्रीय आपदा का विषय होगा। हमें उम्मीद करनी चाहिए कि ऐसा नहीं हो और स्थिति संभल जाए। अब यह वायरस चीन से निकलकर अन्य देशों को ज्यादा तबाह कर रहा है। चीन ने तो स्थिति बहुत हद तक संभाल ली है और अब वहां नये मामले अन्य अनेक देशों की तुलना मे आना कम हो गए हैं। अब तो लग रहा है कि रोजाना नये मामले जितने भारत में आ रहे हैं, उनसे भी कम मामले चीन मे सामने आ रहे हैं।