मह्रगाई अभी बनी हुई है। आवश्यक वस्तुओं की कीमतों की मुद्रास्फीति की दर तो 17 फीसदी के आसपास और उसके ऊपर पिछले कई महीनों से बनी हुई ही है थोक मूल्य सूचकांकों के आधार पर मुद्रास्फीति की दर भी अब दहाई अंकों में प्रवेश के मुहाने पर आकर खड़ी है। ताजा प्राप्त आंकड़ों के अनुसार यह 9 ़9 फीसदी हो गई है। वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी कह रहे हैं कि अगले जून महीने तक मुद्रास्फीति पर काबू पाया जा सकेगा।

जून में अभी देर है। सरकार को बजट सत्र का सामना करना है। और इस सत्र में विपक्ष उसके खिलाफ फिर एकताबद्ध होने लगा है। एक बार फिर तीसरा मोर्चा रूप लेता दिखाई पड़ रहा है। 13 गैर एनडीए विपक्षी पार्टियों ने एक बार फिर अपने आपको एक मंच पर खड़ा करना शुरू कर दिया है। केन्द्र सरकार के लिए यह चिंता का कारण है।

इन 13 दलों के लोकसभा सांसदों की संख्या कोई ज्यादा नहीं है। यह सिर्फ 88 ही है, लेकिन कांग्रेस के लिए चिंता की बात यह है कि इसमें मुलायम सिंह यादव और लालू यादव की पार्टियां भी शामिल हैं, जो अब तक कांग्रेस की यूपीए सरकार का समर्थन कर रही थी। महिला आरक्षण विधेयक पर केन्द्र सरकार से भारी मतभेद होने के बावजूद इन दोनो पार्टियों ने अभी तक राष्ट्रपति को समर्थन वापसी की चिट्ठी नहीं दी है। लेकिन अब वाम के नेत्त्व वाले वाममोर्चे में शामिल होकर इसने केन्दग सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी हैं, क्योंकि उनके समर्थन वापस लेने के बाद यूपीए सरकार का बहुमत बहुत थोड़ा रह जाता है।

समय समय पा तीसरे मोर्च का गठन होता रहता है। गठन के बाद इसका विघटन भी हो जाता है। लेकिन विघटन के बाद फिर इसका गठन होता है। फिलहाल इसका गठन हो रहा है। 13 पार्टियां एक साथ आ खड़ी हुई है। लोकसभा चुनाव में अभी 4 साल बाकी है। जाहिर है तीसरे मोर्च का गठन चुनाव को ध्यान में रखकर नहीं किया गया है। तीसरे मोर्चै के एक नेता लालू यादव ने साफ कर दिया कि इसका गठन मिलकर चुनाव लडत्रने के लिए नहीं हुआ है बल्कि सरकार की गलत नीतियों के खिलाफ साझा संघर्ष करने के लिए ही यह अस्तित्व में आया है।

सवाल उटता है कि तीसरा मोर्चा फिलहाल चाहता क्या है? दरअसल वित्तीय विधेयक पर कटौती प्रस्ताव लाने की एसकी घोषणा सरकार के लिए सबसे बड़ी चिेता का कारण है। 88 लोकसभा सांसदों के बूते यह केन्द्र सरकार का कुछ बिगाड़ नहीं सकती, लेकिन भाजपा ने भी संकेत देना शुरू कर दिया है कि वह दन 13 पार्टियों के मोर्चे के कटौती प्रस्ताव के साथ जा सकती है। कटौती प्रस्ताव पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों के बढ़ाने के खिलाफ लाया जा रहा है। भाजपा भी कीमतों के बढ़ने का लगातार विरोध कर रही है।

विराम के पहले सत्र के दौरान परमाणु विधेयक के खिलाफ पूरा विपक्ष एक हो गया था। उस एकता के आगे सरकार को झुकना पड़ा था। उसने विधेयक पेश ही नहीं किया। वह विधेयक को फिर से तैयार करने की बात कर रही है। जाहिर है साझा विपक्ष के सामने सरकार मजगूर हो जाती है। आने वाले दिनों में उसे साझा विपक्ष का सामना ही करना पड़ेगा, हालांकि सरकार की कोशिश विपक्ष की एकता को तोड़ने की होगी। (संवाद)