प्रधानमंत्री ने 3 अप्रैल को एक वीडियो जारी कर 5 अप्रैल को रात 9 बजे, 9 मिनट के लिए घर के दरवाजे पर या बालकनी में मोमबली, दीया, टॉर्च या मोबाइल की फ्लैशलाइट जलाने को कहा। एक ओर देश बड़े संकट से गुजर रहा है, जहां कोरोना का संक्रमण बढ़ता जा रहा है व इससे होने वाली मौतों की संख्या भी, वहीं दूसरी ओर एक बड़े तबके ने प्रधानमंत्री के इस कॉल को उत्सव के रूप में मनाया। जबकि लॉकडाउन के इस समय में गरीब परिवार जीवन के लिए संघर्ष करते नजर आ रहे हैं और मेडिकल स्टाफ जरूरी संसाधनों एवं सुरक्षा उपायों को लेकर जूझ रहे हैं।
प्रधानमंत्री ने इस आह्वान को कोरोना संकट से जो अंधकार और अनिश्चितता पैदा हुई है, उसे समाप्त करके उजाले और निश्चितता की की तरफ बढ़ने वाला कदम बताया और कोरोना संकट के अंधकार को प्रकाश की ताकत का परिचय कराना बताया। लोगों ने 5 मार्च को रात 9 बजे न केवल दीए जलाए, बल्कि झालर लाइट्स लगाए, मंत्रोच्चारण किए, शंख व घंटियां बजाए और पटाखे फोड़े। प्रधानमंत्री के इस कॉल पर शुरू से ही सवाल उठाए जा रहे थे। विपक्षी दलों ने भी इसे एक इवेंट करार देते हुए सवाल किया कि आखिर प्रधानमंत्री इस पर कुछ क्यों नहीं बोल रहे हैं कि वायरस से लड़ने के लिए क्या किया जा रहा है? मेडिकल प्रैक्टिसनर को कैसे सुरक्षित रखेंगे? टेस्ट किट कैसे मुहैया कराई जाएगी? टेस्ट सेंटर बढ़ाने और जिलों तक मेडिकल संसाधनों को उपलब्ध कराने के क्या कदम उठाए जा रहे हैं? ये सवाल अपनी जगह है, लेकिन 9 मार्च को रात 9 बजे के आयोजन में जिस तरह से पटाखे फोड़े गए, वह हैरान कर देने वाला है। साथ ही ताली-थाली की तरह रात 9 बजे 9 मिनट तक इस रोशनी की एकजुटता को लोगों ने अंधविश्वास के साथ जोड़ लिया।
रोशनी से कोरोना को भगाने संबंधी कई तरह के पोस्ट सोशल मीडिया पर घुमते रहे, भले ही प्रेस इंर्फोमेशन ब्यूरो ने एक विज्ञप्ति जारी कर यह कहा कि दीया, मोमबती, टॉर्च और फ्लैश लाइट की रोशनी से कोरोना वायरस खत्म नहीं होता।
इस इवेंट के बाद जब पटाखे फोड़े जाने और दिवाली की तरह झालर और रोशनी से घर सजाने को लेकर सवाल उठने लगे। कई लोगों ने व्हाट्सएप्प स्टेटस और फेसबुक पर सवाल खड़े करते हुए लिखा कि दुःख की इस घड़ी में पटाखे फोड़ कर खुशियां व्यक्त करते हुए लोगों को शर्म आना चाहिए। इसके बचाव में भी पोस्ट सोशल मीडिया पर घुमने लगे। जैसे - ‘‘कोरोना भारत में आकर परेशान ही है कि मैं बीमारी हूं या त्यौहार।’’ ‘‘वो कहता है कि थाली बजाओ/ भाई लोग परातें फोड़ देते हैं, वो कहता है दीए जलाओ/ भाई लोग बम पटाखे फोड़ देते हैं, ये परंपरा अनादि काल से चली आ रही है/प्रभु ने कहा था - हनुमान/ मैया सीता का पता लगाकर आओ/और हनुमान जी लंका फूंक आए थे/ प्रभु ने कहा कि संजीवनी बूटी लाओ/हनुमान जी पूरा पहाड़ उठा लाए, आज हमारी कोई गलती नहीं/ हम तो हैं ही हनुमान जी के भक्त।’’
इस मसले पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता के.के. मिश्रा का व्यंग्यात्मक लहजे में कहना है, ‘‘कोरोना ने बीती रात उसे दिए गए उत्सवी आत्मीय सम्मान के प्रति आभार जताया है। भारत में चैपट हो रही अर्थव्यवस्था, ध्वस्त उद्योग-धंधे, बेरोजगारी, भूख से मौतों, महामारी, लॉकडाउन, कफ्र्यू, इसके उल्लंघन में पिटना सहित तमाम दुश्वारियों के बाद भी अनपढ़ भक्तों से प्राप्त सम्मान से कोरोना अभिभूत है।’’
वरिष्ठ पत्रकार लज्जाशंकर हरदेनिया का कहना है, ‘‘भाजपा की राजनीतिक विचारधारा हिन्दुवादी राष्ट्रवाद की है। ऐसे में उनके किसी भी नेता के बयान को बहुत ही बारीकी से देखने की जरूरत होती है। प्रधानमंत्री चाहते, तो रोशनी के साथ एकजुटता दिखाने के लिए 7 या 8 बजे 5-10 मिनट का कर सकते थे, लेकिन उन्होंने 9 बजे 9 मिनट तक की रोशनी का चयन किया। हिन्दू धर्म में 9 का महत्व है, तो जाहिर है कि इसे लेकर ज्योतिष, धर्म और अंधविश्वास से भरी व्याख्या होनी ही थी, भले ही आप ऐसा करने के लिए न कहे। इसके साथ ही इस रोशनी की राजनीतिक एजेंडे से भी इनकार नहीं किया जा सकता। जाहिर है, जब पूरा देश इस महामारी से परेशान है और वह आर्थिक एवं स्वास्थ्य की चुनौतियों से जूझ रहा है, तो इस तरह के उत्सवधर्मी कॉल पर सवाल तो उठाए ही जाएंगे।’’ (संवाद)
कोरोना से बढ़ती मौतें और देश में दिवाली
राजु कुमार - 2020-04-08 10:23
पूरी दुनिया कोरोना संकट से जूझ रही है। लगभग सभी देश किसी न किसी रूप में लॉकडाउन को लागू किए हुए हैं। भारत भी लॉकडाउन की स्थिति से गुजर रहा है, लेकिन भारत कोरोना से मुकाबला करने में ज्यादा ध्यान देने के बजाय इवेंट में आगे दिख रहा है। ताली-थाली के बाद लोगों द्वारा दीये जलाने के साथ-साथ पटाखे फोड़कर दिवाली सा जश्न मनाना हैरान कर देना वाला है।