कांग्रेस के व्यालार रवि ने आइपील को काले धन से खेला जा रहा सबसे बड़ा जुआ बताया था। वामपंथी नेता आइपीएल के सभी मामले की संयुक्त संसदीय समिति से जांव करने की मांग कर रहे थे। दिल्ली उच्च न्यायालय में एक याचिका दाखिल करके आइपीएल में हो रहे घोटाले की सीबीआई से जांच करवाने की मांग की गई थी। उच्च न्यायालय ने उस याचिका को खारिज कर दिया।

वित्त मंत्री द्वारा जांच की शुरुआत कर दिए जाने की घोषणा के बाद इस मसले पर की जा रही राजनीति में थोड़ी कमी आ जाएगी। संसद में हो रहे हंगामे शायद शांत हो जाएंगे। पर रवाल यह है कि क्या आइपीएल की जांच पुरी हो भी पाएगी।

आइपीएल में उठे विवाद का पहला शिकार शशि थरूर हो चुके हैं, जिन्हें अपने मंत्रालय से हाथ घोना पड़ा। मंत्री पद से आरोपों के बाद अनेक लोगों ने इस्तीफा दिया है, लेकिन जिस तरह से थरूर सरकार से बाहर निकाले गए, वैसा उदाहरण कम मिलता है।

उन्होंने अपनी कुर्सी बचाने के लिए सभी प्रकार के प्रयास किए। नरेन्द्र मोदी का नाम बेवजह विवाद से जोड़ दिया गया और कहवाया गया कि थरूर कि खिलाफ असली मोर्चा ललित मोदी ने नहीं, बल्कि नरेन्द्र मादी ने खोल रखा है। उन्होंने सोचा होगा कि नरेन्द्र मादी बनाम थरूर का मसला बनने पर शायद भाजपा विरोधी दलों और खुद उनकी अपनी कांग्रेस का समर्थन उन्हें मिलने लगेगा। पर वैसा हुआ नहीं।

फिर उन्होंने विपक्ष बनाम कांग्रेस के मसले को भी खड़ा कर दिया। अपनी पार्टी के लोगों को कहने लगे कि उन्हें हटने का मतलब विपक्ष की जीत और कांग्रेस की हार होगी। इसलिए कांग्रेस की प्रतिष्ठा को बचाने के लिए उन्हें अपने पद पर बने रहना जरूरी है। पर उनकी पार्टी ने इसके बाद भी उनका समर्थन नहीं किया।

फिर थरूर ने क्षेत्रीयतावाद का पासा फेंका। उन्होंने कहा कि उनके हटाए जाने से केरल के लोगों के बीच गलत संदेश जाएगा। वे नाराज हो जाएंगे, क्योंकि उन्हें लगेगा कि थरूर को कोच्चि टीम बनाने के कारण हटाया जा रहा है। लेकिन क्षेत्रीयतावाद का यह तरीका भी कामयाब नहीं हुआ।

उसके बाद तो हड़बड़ी में थरूर ने वह कर डाला, जिससे उनका सरकार से हटना तय हो गया। उन्होंने अपनी महिला मित्र से उनके 70 करोड़ रुपए के शेयर वापस करवा दिए। उन्होंने सोचा होगा कि शेयर वापस करने के कारण प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को एक आधार मिल जाएबा और वे उस त्याग का उल्लेख करके उन्हें बचा लेेगे। लेकिन शेयर वापसी के बाद तो यह और जाहिर हो गया कि वे 70 करोड़ रुपए का उपहार वास्तव में थरूर को ही मिला था, जिसे अपनी कुर्सी बचाने के लिए वे वापस कर रहे हैं। उसके बाद तो विपक्ष और भी प्रबल हो गया और फिर तो प्रधानमंत्री के लिए भी यह संभव नहीं रहा कि वे थरूर को अपनी टीम में बनाए रखें।

थरूर सरकार से बाहर हो गए हैं और सरकार आइपीएल से जुड़े सारे मामले की जांच कर रही है। यह जांच प्रणब मुखर्जी खुद अपनी देखरेख में ही करवा रहे हैं, क्योंकि वित्त मंत्री होने के नाते आयकर विभाग उनके अधीन ही है। जांच तो शुरू हो गई हैख् लेेकिन इसके सफलतापूर्वक संपन्न होने में संदेह है।

इसका कारण यह नहीं है कि ललित मोदी बहुत प्रभाचशाली व्यक्ति हैं। बल्कि इसका कारण यह है कि क्रिकेट के व्यापार से राजनीतिज्ञ जुड़े हुए हैं। भाजपा के अरुण जेटली इसमें शामिल हैं। कृषि मंत्री शरद पवार की इसमें दखल है। केन्द्रीय मंत्री फारुक अब्दुल्ला भी क्रिकेट से जुड़े हुए है। कांग्रेसी सांसद राजीव शुक्ला बीसीसीआई के उपाध्यक्ष हैं। तेजी पकड़ने पर जांच के दायरे में ये सभी आ जाएंगे और ये थरूर जैसे कमजोर और नौसिखिए राजनीतिज्ञ नहीं हैं। शरद पवार के जांच के दायरे में आने के बाद केन्द्र सरकार की स्थिरता पर भी असर पड़ सकता है।

यही कारण है कि जबतक जांच पूरी नहीं हो जाती है तबतक इसकी सफल समाप्ति पर संशय बना रहेगा। (संवाद)